त्रेता युग में बूढ़ानाथ मंदिर की हुई थी स्थापना, जानिए... इसका इतिहास Bhagalpur News
दानवीर कर्ण की धरती का यह अत्यंत पुराना शिव मंदिर है। यहां का शिवलिंग बागेश्वर जैसी आभा लिए हुए है। गंगा तट पर अवस्थित होने के कारण इसका विशेष धार्मिक महत्व है।
भागलपुर [जेएनएन]। पतित पावनी गंगा के तट पर अवस्थित बाबा बूढ़ानाथ मंदिर का गौरवशाली, पौराणिक एवं धार्मिक इतिहास है। यह अंग क्षेत्र का अति प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि त्रेता युग में इस मंदिर की स्थापना ऋषि वशिष्ठ ने किया था। यह प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। इस मंदिर के संस्थापक गुरु वशिष्ठ अयोध्या के राजा दशरथ के राजगुरु भी हुआ करते थे।
सावन के पावन मौके पर मंदिर प्रागंण में विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मंदिर प्रबंधक बाल्मिकी सिंह ने बताया कि यहां प्रतिदिन सुबह चार बजे देवाधिदेव बाबा भोले शंकर का जलाभिषेक होता है। इसके बाद मंदिर का पट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। दिनभर श्रद्धालु बाबा की पूजा अर्चना कर मनोवांछित फल की कामना करते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवारी को भोलेनाथ की संध्या साढ़े आठ बजे विशेष श्रृंगार पूजा होती है। इसके बाद भजन कीर्तन के साथ महाआरती का आयोजन होता है। इस पावन बेला में स्थानीय कलाकार भक्तों के मनोरंजन के लिए भजन संध्या का भी आयोजन करते हैं।
दानवीर कर्ण की धरती का यह अत्यंत पुराना शिव मंदिर है। यहां का शिवलिंग बागेश्वर जैसी आभा लिए हुए है। गंगा तट पर अवस्थित होने के कारण इसका विशेष धार्मिक महत्व है। पहले इस मंदिर का नाम बाल वृद्ध मंदिर था, धीरे-धीरे यह बूढ़ानाथ मंदिर कहा जाने लगा। दूर दराज से यहां श्रद्धालु बाबा भोले नाथ की पूजा अर्चना करने आते हैं।
बूढ़ानाथ मंदिर के पंडित शिव नारायण गिरि ने कहा कि बाबा बूढ़ानाथ की महिमा अपरंपार है। यहां जो भी भक्त भोले नाथ की शरण में आते हैं उनकी हर मांगी मुरादें पूरी होती है। यही कारण है कि यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में दूर दराज से श्रद्धालु नर-नारियां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं।
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