डनलिन की अठखेलियों से गुलजार है भागलपुर गांगेय डाल्फिन आश्रयणी क्षेत्र, देखे गए 250 प्रजाति के प्रवासी पक्षी
डनलिन ने गांगेय डाल्फिन आश्रयणी क्षेत्र में डाला डेरा। पहली बार 200 की झुंड में देखा गया गया और भी पक्षी कर रहे अठखेलिंयां। आर्कटिक सर्किल से हिन्दुस्तान तक की लंबी दूरी तय कर पहुंचा भागलपुर। यहां सबसे ज्यादा प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं।
जागरण संवाददाता, भागलपुर : पक्षियों के कलरव से गांगेय डाल्फिन आश्रयणी क्षेत्र गुलजार है। डनलिन सहित सौ से अधिक प्रवासी पक्षियों ने डेरा डाल दिया है। इस पक्षी को पहली बार दो सौ के झुंड में देखा गया है। इसके पहले 20 के झुंड में देखा गया था। पक्षियों को देखने के लिए भारी संख्या में लोग गंगा नदी के किनारे पहुंच रहे हैं। ठंड के मौसम में प्रवासी पक्षियों का सबसे उपयुक्त स्थान विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन आश्रयणी बन गया है। भागलपुर में अभी तक 250 से ज्यादा प्रजाति के स्थानीय व प्रवासी पक्षियों को देखा गया है, जो दूसरे जिलों की तुलना में प्रथम स्थान पर है।
डनलिन एक छोटा वेडर है, जिसे पूर्व में भी विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन आश्रयणी में देखा गया है। वन प्रमंडल पदाधिकारी भरत चिंतपल्लि वन विभाग के अधिकारी व कर्मियों के साथ विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन आश्रयणी के निरीक्षण के क्रम में 200 से ज्यादा की संख्या में एक साथ डनलिन को देख कर आश्र्यचकित रह गए। इसके पूर्व डनलिन एक साथ 20 की संख्या में देखा गया था। डनलिन पक्षी की लंबाई 16 सेंटीमीटर से 20 सेंटीमीटर होता है। खुले पंख की लंबाई 35 सेंटीमीटर से 40 सेंटीमीटर तक होता है। वजन लगभग 40 ग्राम से 45 ग्राम होता है।
आर्कटिक सर्किल से हिंदुस्तान तक की लंबी दूरी तय कर जाड़े के मौसम में यह पक्षी यहां प्रवास करती है। मार्च के महीने आते-आते गर्मी बढ़ जाने के कारण पुन: अपने प्रजनन स्थल के लिए चली जाती है। जिला पशुपालन पदाधिकारी (वन) डा. संजीत कुमार ने बताया कि भागलपुरवासियों और पक्षी प्रेमियों के लिए विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन आश्रयणी एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। यहां स्थानीय व प्रवासी पक्षियों को एक साथ देखकर मनोरंजन के साथ-साथ शोध करने के लिए उपयुक्त स्थान है।
बरारी में गंगा नदी में दिखा था दुर्लभ घड़ियाल
बरारी में गंगा नदी में दस अक्टूबर को दुर्लभ घड़ियाल को देखा गया था। घडिय़ाल की सूचना मिलने पर वन प्रमंडल पदाधिकारी भरत चिन्तपल्ली, पशु चिकित्सा पदाधिकारी डा. संजीत कुमार के साथ गंगा नदी में दुर्लभ घडिय़ाल देखा था। गंगा नदी में चार से पांच बार घडिय़ाल दिखाई दिया था। पशु चिकित्सा पदाधिकारी डा. संजीत कुमार ने बताया कि 2007 में आयूसीएन के द्वारा घडिय़ाल को घोर-संकटग्रस्त प्रजाति में रखा है। इसकी संख्या 1930 की तुलना में मात्र दो फीसद ही बची है।
घड़ियाल का वैज्ञानिक नाम गेवियलिसगैंगेटिका है। इसकी लंबाई आठ फीट से 20 फीट तक होती है। घड़ियाल का मुख्य आहार छोटी-छोटी मछली होता है। घडिय़ाल के बच्चे कम गहरे पानी में रहता है। व्यस्क होने पर गहरे जल में रहना पसंद करता है। घडिय़ाल मनुष्य को सामान्यता कभी नुकसान नहीं पहुंचाता है। उन्होंने बताया कि विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन आश्रयणी में डाल्फिन के अलावा उदबिलाव व कछुओं को आसानी से लोगों के द्वारा देखा जाता है, लेकिन घडिय़ाल को देखना बहुत ही मुश्किल होता है। विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन आश्रयणी की जैव विविधता का संरक्षण और संबर्धन से अनुकूल परिणाम मिल रहा है।