मंडन धाम पर मंदिर का होगा निर्माण... पत्नी भारती ने शंकराचार्य को कामशास्त्र के इन सवालों से किया था परास्त
विश्व प्रसिद्ध वेदांती पं. मंडन मिश्र और उनकी पत्नी उभय भारती के साथ-साथ आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। भव्य मंदिर का निर्माण मंडन धाम में करवाया जाएगा। इसको लेकर ग्रामीणों ने बैठक की। तीनों की प्रतिमा का बनाई जा चुकी हैं।

संवाद सूत्र ,महिषी (सहरसा) : सातवीं सदी के विश्व प्रसिद्ध वेदांती पं. मंडन मिश्र के प्राचीन बासडीह पर में मंदिर बनाने का निर्णय ग्रामीणों की आहूत बैठक में लिया गया। मंदिर में प. मंडन मिश्र, उनकी धर्म पत्नी उभय भारती व आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। प्रतिमा का निर्माण करवाया जा चुका है। तत्काल तीनों प्रतिमा मंडन धाम पर पूर्व से निर्मित भवन रखा गया है।
ग्रामीणों की बैठक में कई पहलुओं पर चर्चा की गयी। इसमें कुछ विद्वानों ने मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच सातवीं सदी में हुए शास्त्रार्थ के यथार्थ पर प्रश्न उठाते हुए शंकर की प्रतिमा स्थापित किए जाने पर गंभीरता पूर्वक विचार करने का अनुरोध किया। जबकि कुछ इतिहास जानने वालों ने निर्माण से पूर्व पुरातत्व विभाग से सलाह लेने की बात कही। जबकि कुछ ग्रामीणों ने मंडनधाम पर प्रतिमा स्थापित करने के साथ ऐतिहासिक साक्ष्यों को भी सहेजने की बात कही। लंबे समय तक चले विचार विमर्श के बाद अन्तत: निर्णय लिया गया कि यज्ञ मंडप को मंदिर का स्वरूप दिया जाएगा और प्रतिमा स्थापित कर इस स्थल पर पर्यटकों व शोधकर्ताओं के लिए सुविधा मुहैया करवायी जाएगी।
कामशास्त्र में पत्नी भारती ने किया था शंकराचार्य को परास्त
मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र को हार का सामना करना पड़ा था। 42 दिन के इस शास्त्रार्थ के बारे में ऐसा कहा जाता है कि भारत भ्रमण के बाद जब शंकराचार्य काशी पहुंचे तो वहां उन्होंने विद्वान कुमारिल भट्ट के शिष्य और मिथिला के पंडित मंडन मिश्र को हरा दिया। पति की हार को देख उभय भारती ने शंकराचार्य से कह दिया कि ये तो उनकी आधी जीत है। भारती ने कहा, 'मैं मंडन मिश्र की अर्धांगिनी हूं, अभी आपने आधे को ही हराया है। आपको मुझसे भी शास्त्रार्थ करना होगा।
पहले भारती ने शंकराचार्य के सभी सवालों का सटीक जवाब दिया। जब शास्त्रार्थ के 21 वें दिन भारती को ये लगने लगा कि अब वे हार जाएंगी तो उन्होंने शंकराचार्य के सामने कामशास्त्र के सवाल रख दिए। उन्होंने पूछ लिया कि काम क्या है? इसकी प्रक्रिया क्या है और इससे संतानें कैसे पैदा होती है? ब्रह्मचर्य के घोर साधक शंकराचार्य इन सवालों के आगे नतमस्तक हो गए और उन्होंने उसी वक्त हार मान ली। इस तरह भारती ने शंकराचार्य को परास्त कर दिया।
मांगा छह माह का समय, फिर मंडन को बन गए शंकराचार्य के शिष्य
कामशास्त्र के बारे में जानने के लिए शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की पत्नी से छह महीने का समय मांगा। ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य ने योग के जरिए एक मृत राजा की देह में प्रवेश किया और उस राजा की पत्नी के साथ कई दिन बिताने के बाद उन्होंने कामशास्त्र को जाना। इसके बाद वे फिर मंडन के पास पहुंचे और उन्होंने उनकी पत्नी को सारे सवालों का जवाब देते हुए उन्हें हराया। इसके बाद मंडन मिश्र शंकराचार्य के शिष्य बन गए।
मंदिर निर्माण कमेटी का हुआ गठन
मंदिर निर्माण के धन संग्रह सहित निर्माण कार्य के लिए बीस सदस्य कमेटी का गठन किया गया। जिसमें निशाकांत ठाकुर को अध्यक्ष ,सियाराम सिंह को सचिव तथा लाल पाठक को कोषाध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। इस कमेटी के सदस्य के रूप में जवाहर चौधरी, शिवशंकर राय, नन्द किशोर चौधरी,चन्द्र नारायण ठाकुर, नीलू मिश्र, दिलीप चौधरी, हेमकांत ठाकुर ,जटाशंकर झा ,शिवनारायण दास, अनिल झा, झकस सादा ,अनिरूद्ध राम,जगदीश साह मालिक झा, आशुतोष चौधरी, संजीव मिश्र, कृत्यानंद ठाकुर को मनोनीत किया गया।
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