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    Special on Earthquake Day: तब मलबे की ढेर पर फिर से इंग्लैंड के इंजीनियरों ने बसाया था बिहार के इस लौहनगरी को

    By Abhishek KumarEdited By:
    Updated: Thu, 14 Jan 2021 03:47 PM (IST)

    हर साल बिहार में 15 जनवरी को भूकंप दिवस के रूप में मनाते हैं। यहां 15 जनवरी 1934 के भूकंप में लाखों लोग मारे गए थे। भूकंप से तबाह हुए जमालपुर शहर को फिर से बसाने और संवारने की जिम्मेवारी अंग्रेजी हुकूमत ने संभाली।

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    भूकंप से तबाह हुए जमालपुर शहर को फिर से बसाने और संवारने की जिम्मेवारी अंग्रेजी हुकूमत ने संभाली थी।

     मुंगेर [केएम राज]। 15 जनवरी 1934 की सुबह को लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। यह दिन मुंगेर और जमालपुर के लिए काले दिन के रूप में इतिहास के पन्ने में दर्ज हो गया था। इस प्रलयंकारी भूकंप के बाद मुंगेर और जमालपुर शहर पूरी तरह से मलबे की ढेर में तब्दील हो गया। रेल कारखाना को भी काफी नुकसान पहुंचा था। जमालपुर में बना एशिया का पहला रेल कारखाना पूरी तरह तबाह हो गया था। भूकंप से तबाह हुए जमालपुर शहर को फिर से बसाने और संवारने की जिम्मेवारी अंग्रेजी हुकूमत ने संभाली। इंग्लैंड से इंजीनियरों की टीमों को शहर को फिर से खूबसूरत बनाने का टास्क दिया गया। इंजीनियरों को रेल कारखाना, रेलवे स्टेशन डीजल शेड को फिर से खड़ा किया।

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    434 मौत के बाद, बापू और चाचा नेहरू भी पहुंचे थे मुंगेर-जमालपुर

    1934 में आए भूकंप में 434 लोगों की जान गई थी। उस समय राहत और बचाव कार्य के लिए महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल सहित कई स्वतंत्रता सेनानी मुंगेर पहुंचे थे। गांधी सहित सभी स्वतंत्रता सेनानी ने खुद से कुदाल और टोकरी लेकर मलवा हटाने का काम किया। इसके बाद राहत और बचाव कार्य में सैकड़ों हाथ जुट गए थे।

    87 साल बाद भी बरकरार है शहर की खूबसूरती

    अंग्रेजों द्वारा बसाए गए लौहनगरी जमालपुर भी 1934 के भूकंप में तबाह हुआ था। कारखाना के कई शॉप के अलावा रेल कॉलोनी, जमालपुर पोस्ट ऑफिस के अलावा स्टेशन बुरी तरीके से क्षतिग्रस्त हुआ था। इंग्लैंड से आए इंजीनियरों की टीम जमालपुर बुलाकर पुन: संवारने का काम किया था। चौड़ी सड़कों के साथ प्लाङ्क्षनग के साथ शहर को बसाया गया। भूकंप के 87 साल बीत जाने के बाद आज भी जमालपुर शहर की खूबसूरती बरकरार है।

    आज भी याद है वह मंजर

    रामस्वरूप ङ्क्षसह, नथुनी पंडित,राघो मंडल, गोविंद मंडल, जगदीश शर्मा, विजय साह सहित कई बुजुर्गों ने बताया कि देश का सबसे भयावह भूकंप वर्ष 1934 में ही आया था। शहर तो बर्बाद हुआ ही, सैकड़ों लोगों की जान चली गई। भूकंप में मरने वाले लोगों की याद में आज भी प्रत्येक वर्ष मुंगेर के बेकापुर में दरिद्रनारायण भोज का आयोजन किया जाता है। मृत आत्मा की शांति के लिए हवन का भी आयोजन किया जाता है।