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    सोहराय पर्व : प्रकृति के पुजारियों के घर चमके, जानिए सदियों से चले आ रहे इस त्योहार के बारे में

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Fri, 07 Jan 2022 06:03 PM (IST)

    प्रकृति के पुजारियों के घरों में इन दिनों रौनक-ए-बहारा है। सोहराय पर्व को लेकर उत्सवी माहौल के बीच वन्य जीवों की पूजा की तैयारी चल रही है। पशुओं में बैल की पूजा की जानी है। इसको लेकर रंग रोगन भी हो रहा है और...

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    पांच दिवसीय सोहराय पर्व को लेकर तैयारियां जोरों पर।

    संवाद सहयोगी, जमुई: प्रकृति के पुजारियों के घर इन दिनों सोहराय पर्व की तैयारी है। प्रकृति के पुजारी से आशय आदिवासी समाज से है, जो आज भी अपनी प्राचीन परंपरा और संस्कृति के प्रति सजग है। यही कारण है कि आदिवासी समाज की आदि काल से चली आ रही परंपरा व संस्कृति की अलग पहचान अब भी बनी हुई है। पर्व त्योहारों के दिनों में उनकी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। जो समाज की खूबसूरती के साथ एक संदेश भी देती है। यह संदेश स्वच्छता और प्रेम का होता है। इसी का एक रूप बंदना पर्व या सोहराय के रूप में जाना जाता है।

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    आदिवासी बाहुल्य इलाकों में इन दिनों सोहराय की झलक देखने को मिल रही है। इसकी तैयारियों को लेकर आदिवासी समाज के लोगों ने अपने घरों को सजाना शुरु कर दिया है। ग्रामीण मिट्टी की दीवारों को मिट्टी से बने अलग-अलग रंगों से मनमोहक कलाकृतियां बनाते हैं। जिसे देखकर ऐसा लगता है कि किसी बड़े कलाकार ने इन्हें सजाया है। संथाल समाज सोहराय पर्व को प्रमुखता से मनाते हैं। पांच दिनों मनाए जाने वाला यह पर्व कृषि से जुड़ा हुआ है। घरों का रंग-रोगन करना व सजाना उनकी परंपरा है। इस पर्व में पशु की पूजा होती है। पशुओं को सजाकर उन्हें गांव-गांव घुमाया जाता है तथा पूजा-अर्चना भी की जाती है।

    सोहराय आदिवासी समाज का महापर्व कहा जा सकता है।  जो पांच दिवसीय होता है। पर्व में आदिवासी समाज अपने घरों में साज सजावट करता है। वहीं अपने गाय और बैलों काे सजाकर तैयार करता है। 

    पांच दिवसीय पर्व के बारे में 

    • पहले दिन गोट बोंगा के अवसर पर ग्रामीण अपने अपने गाय और बैलों को एकजुट कर इकट्ठा करते हैं।
    • शाम में उनके आगमन से पूर्व प्रवेश द्वार की साफ-सफाई कर सजाकर तैयार करते हैं।
    • दूसरे दिन गोड़ा बोंगा मनाया जाता है।
    • तीसरे दिन खुन्टो बोंगा मनाया जाएगा। इस दौरान लोग अपने पशुओं (गाय और बैलों के साथ) नृत्य करते हैं और खुशियां बांटते हैं।
    • चौथे दिन गांव की महिलाओं व पुरुषों द्वारा एक टोली बनाकर एक-दूसरे के घर बांसुरी या वाद्य यंत्र बजाते हैं।
    • पांचवें और अंतिम दिन प्रकृति के पुजारी अपने खेतों की नई फसल निकालकर, उसकी खिचड़ी बनाते हैं, जो सबसे पहले गाय और बैलों को खिलाई जाती है।

    गाय और बैल को ही क्यों?

    सोहराय पर्व मनाने के पीछे के कारण बैलों को प्रसन्न करना होता है। ये वो प्राणी हैं जो बेजुबान तो हैं ही साथ ही इनकी मेहनत से खेतों में फसल लहलहाती है। हर साल खेत लहलाते रहे, इसी कामना के साथ इन पशुओं को खुश किया जाता है।

    बैलों को खुश करने के लिए मनाया जाता है सोहराय

    सोहराय पर्व मनाने का मुख्य उद्देश्य गाय और बैलों को खुश करना है। गाय और बैल बेजुबान होते हैं और उनकी मेहनत से ही खेतों में फसल तैयार होता है। उनके साथ खुशियों को बांटने के लिए पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा हर वर्ष फसल अच्छा हो, इसको लेकर भी पर्व मनाया जाता है।