सन्यास धर्म में उत्तराधिकारी महिलाएं क्यों नहीं? शंकराचार्य ने दी महत्वपूर्ण जानकारी, बलि प्रथा के बारे में कही यह बड़ी बात
गोवर्धन पीठाधीश्वर जगन्नाथ धाम के जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती बिहार के सहरसा में धर्मसभा में भाग ले रहे हैं। उन्होंने इस दौरान श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। महिलाओं को सन्यास धर्म में उत्तराधिकारी क्यों नहीं बनाया जाता है। इस पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण जानकारी दी।

संवाद सूत्र, महिषी (सहरसा)। गोवर्धन पीठाधीश्वर जगन्नाथपुरी धाम के जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती सहरसा जिले के महिषी में हैं। उन्होंने स्व. श्याम ठाकुर की ठाकुरबाड़ी में आयोजित संगोष्ठी में कई महत्वपूर्ण जानकारी दी। उनको सुनने काफी संख्या में लोग वहां पहुंचे हैं। इस दौरान लोगों के प्रश्नों का भी उन्होंने उत्तर दिया।
रमण झा ने महिलाओं को सन्यास धर्म में उत्तयों नहीं बनाया जाता है सवाल उठाया। इसके जवाब में शंकराचार्य ने कहा कि शास्त्र सम्मत फल चाहिए तो शास्त्र सम्मत विचारों का अनुपालन करना ही होगा। उसमें किसी भी सन्यासी को शिखा और सुत का विसर्जन करना होता है। महिलाओं के लिए यह कठिन होता है।
जवाहर पाठक ने पूछा कि शंकर मठ की स्थापना के बाद भी सनातन धर्म से कई पंथों का निर्माण हो रहा है। क्या चारों मठों की विचारधारा में मतभिन्नता है। इसपर शंकराचार्य का कहना था कि मठों के विचारों में मतभिन्नता नहीं है। शासन और समृद्ध लोग इस प्रकार के पंथों को जन्म दे रहे हैं और वही उसे समाप्त भी कर देते हैं। वर्ण व्यवस्था पर पूछे गए एक सवाल के उत्तर में उन्होंने प्राचीन वर्ण व्यवस्था को सही बताया।
बलिप्रथा के औचित्य पर उन्होंने कहा कि बलि वाम मार्ग की देन है। उसमें बलि का अर्थ भेंट देना होता है। शास्त्र के अनुसार जिस प्राणी का जन्म जिस अभिष्ट कार्य की पूर्ति के लिए हुआ है उसे उसी में उत्कर्ष की प्राप्ति होती है। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कई लोग घर से बाहर रहने लगे हैं। उन्हें अपनी कुल देवी का पता नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति अपनी जन्मपत्री दिखवाकर अपने आराध्य का पता कर सकते हैं।
काफी संख्या में लोग शंकराचार्य जी का दर्शन, पूजन करने पहुंच रहे हैं। लोग उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पंक्ति में खड़े रहते हैं। सुबह से भीड़ लग जाती है। धर्मसभा में उनके सत्संग और प्रवचन को सुनने लोगों की भीड़ रहती है।
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