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    सावन सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार व्रत, भगवान शिव की आराधना से विवाहिता-अविवाहिता दोनों का जीवन होता है सुखमय

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Sat, 30 Jul 2022 10:48 AM (IST)

    सावन सोमवार व्रत प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार व्रत ये तीनों विवाहिता और अविवाहिता दोनों के लिए फलदायी माना गया है। भगवान शिव की आराधना करने वाली अविवाहित स्त्री को जहां मनचाहा वर मिलता है तो वहीं विवाहित महिलाओं का जीवन सुखमय हो जाता है।

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    Worship of Lord Shiva: भगवान शिव की महिमा है निराली।

    संवाद सूत्र सिमुलतला (जमुई): सावन मास का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। इस माह में कोई व्यक्ति सच्चे श्रद्धा भक्ति से बाबा भोलेनाथ का पूजा अर्चना करता है, तो उसे मन वांछित फल मिलता हैं। सिमुलतला के विद्वान पंडित व्याकरणाचार्य कामेश्वर पांडे कहते हैं कि सावन मास में भगवान शिव की पूजा-आराधना का विशेष विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह महीना वर्ष का पांचवां माह है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना जुलाई-अगस्त में आता है। सावन माह में सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व है।

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    दरअसल, सावन मास भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। इस माह में सोमवार का व्रत और सावन स्नान की परंपरा है। इस मास में बेलपत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल चढ़ाना अति फलदायी माना गया है। शिव पुराण के अनुसार जो कोई व्यक्ति इस माह में सोमवार का व्रत करता है। भगवान शिव उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए हरिद्वार, काशी, उज्जैन, नासिक, देवघर, बासुकीनाथ समेत भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। सावन के महीने का प्रकृति से भी गहरा संबंध है। इस माह में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण धरती वर्षा से हरीभरी हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में वर्षा होने से मानव समुदाय को बड़ी राहत मिलती है।

    सावन भक्तों द्वारा तीन प्रकार के व्रत रखे जाते हैं

    सावन सोमवार व्रत : - सावन मास में सोमवार के दिन जो व्रत रखा जाता है उसे सावन सोमवार व्रत कहा जाता है। सोमवार का दिन भी भगवान शिव को समर्पित है।

    सोलह सोमवार व्रत : - सावन को पवित्र माह माना जाता है। इसलिए सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ करने के लिए यह बेहद ही शुभ समय माना जाता है।

    प्रदोष व्रत : - सावन में भगवान शिव एवं मां पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष व्रत प्रदोष काल तक रखा जाता है।

    सावन के पावन मास में शिव भक्तों द्वारा कांवर यात्रा करते हैं। इस दौरान लाखों शिव भक्त देवभूमि झारखंड में स्थित देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम में उत्तरवाहिनी गंगा सुल्तानगंज से जल भर कर नंगे पाव कांवर में जल भरकर भगवान भोलेशंकर को अर्पित करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था, तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। तब सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान भोलेशंकर ने उस विष को पी लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया। इसी कारण भोलेशंकर का नाम नीलकंठ पड़ा।

    कहते हैं रावण शिव का सच्चा भक्त था। वह कांवर में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया और तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली थी। सावन का ज्योतिष महत्व यह है कि इस मास के प्रारंभ में सूर्य राशि परिवर्तन करता है। सूर्य का गोचर सभी 12 राशियों को प्रभावित करता है। सावन मास भगवान भोलेशंकर के साथ मां पार्वती को भी समर्पित है। भक्त सावन महीने में सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ महादेव का व्रत धारण करता है, उसे शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने और अविवाहिता अच्छे वर के लिए भी सावन में शिव जी का व्रत रखती हैं।