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    हरिशंकर परसाई की जयंती पर अररिया में आयोजित हुआ कार्यक्रम, हिंदी साहित्य में उनके योगदान को किया गया याद

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Sun, 22 Aug 2021 06:02 PM (IST)

    हरिशंकर परसाई परसाई की जयंती पर अररिया में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस दौरान उनके दिए गए हिंदी साहित्य में योगदान की चर्चा की गई। इंद्रधनुष साहित्य परि ...और पढ़ें

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    हरिशंकर परसाई की जयंती पर आयोजित हुआ कार्यक्रम।

    संवाद सूत्र, फारबिसगंज (अररिया)।  इंद्रधनुष साहित्य परिषद के द्वारा रविवार को साहित्यकार हरि शंकर परसाई की जयंती पूर्व प्रधानाध्यापक सुरेंद्र प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में मनाई गई। स्थानीय प्रोफेसर कालोनी में आयोजित कार्यक्रम का संचालन अभिनव एवं मनीष ने किया। परसाईजी की तस्वीर पर साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों के द्वारा श्रद्धासुमन अर्पण करने के पश्चात सभाध्यक्ष श्री मंडल, प्रधानाध्यापक प्रेम लाल पाठक, प्रो. सुधीर झा सागर, हिंदी सेवी अरविंद ठाकुर और संस्था के सचिव विनोद कुमार तिवारी ने परसाई जी के बारे में बताया।

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    बताया गया कि 22 अगस्त 1922 को हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म होशंगाबाद (मध्यप्रदेश) में हुआ था। उन्होंने हिंदी साहित्य में व्यंग्य विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया। कहा वे साहित्य अकादमी पुरस्कार और शरद जोशी सम्मान से भी सम्मानित हुए। उन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग्य किया है जो हिंदी साहित्य में अनूठा है। उनकी कृतियों में कर्म, जैसे उनके दिन फिरे, रानी नागफनी की कहानी, बेईमानी की परत, भूत के पांव पीछे, तिरछी रेखाएं, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, सदाचार का ताबीज आदि प्रमुख हैं। 10 अगस्त1995 को जबलपुर में उनका देहांत हो गया।

    इसी अवसर पर संस्कृति एवं संस्कार का आधार है- संस्कृत विषय पर आयोजित संगोष्ठी में उपरोक्त वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत में ही भारतीय संस्कृति की जड़ समाहित हैं। इसमें अपने अपने देश की अतीत का धरोहर है। संस्कृत हमें हमारी राष्ट्रीय अस्मिता एवं गौरव का बोध कराती है। संस्कृत भाषा की महत्ता, वैज्ञानिकता एवं सर्वमान्य उपयोगिता असंदिग्ध है। यही कारण है कि भरत जैसे नाट्यविद और वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति, बाणभट्ट, भारती, दंडी जैसे साहित्य शिल्पियों के अनेक विशिष्ट एवं उल्लेखनीय अनुदान भी इसी भाषा में निहित है।संस्कृत भाषा के रूप में हमारी जननी है जो हमें ज्ञान से पोषित करती है, भावनाओं से तृप्त करती है और सत्कर्म करने की शिक्षा देती है। इस अवसर कई स्कूली बच्चे भी उपस्थित थे।