मातृ पितृ पूजन दिवस : भागलपुर में भव्य आयोजन की तैयारी में जुटी युवाओं की टोली
हमारे माता-पिता हमारे लिए आदरणीय होते हैं l उन्होंने हमें जन्म दिया है, हमारा पालन-पोषण किया है l उन्होंने हम पर अनगिनत उपकार किये हैं, जिसका बदला चुका पाना असंभव है l
भागलपुर [दिलीप कुमार शुक्ला]। भागलपुर में मातृ पितृ पूजन दिवस की तैयारी जोर शोर से चल रही है। इस आयोजन के लिए शहर के दर्जन भर युवा दिन रात मेहनत कर रहे हैं। 14 फरवरी को आयोजित होने वाले समारोह की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है। भागलपुर के जय प्रकाश उद्यान के योग स्थल पर 11 बजे यह कार्यक्रम प्रारंभ होगा। समारोह में विद्या भारती के उत्तर-पूर्व क्षेत्र संगठन मंत्री दिवाकर घोष मुख्य वक्ता के रूप में भागलपुर पधार चुके हैं।
इस समारोह में कई संतों, सामाजिक संगठनों, शिक्षण संस्थान के संचालकों, जनप्रतिनिधियों और बुद्धिजीवियों को भी बुलाया गया है। युवा सेवा समिति के कार्यकर्ता इसके लिए शहर में संपर्क अभियान चला रहे हैं। इसी क्रम में युवाओं की टोली ने स्वामी अगमानंद, मेयर सीमा साह, डिप्टी मेयर राजेश वर्मा, विधान पार्षद डॉ एनके यादव, पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन, भाजपा जिलाध्यक्ष रोहित पांडेय, उपाध्यक्ष संतोष कुमार, दिलीप कुमार निराला, पूर्व उप महापौर डॉ प्रीति शेखर, डॉ मृणाल शेखर, बीएसएनएल के कनीय दूरसंचार अभियंता के पी शर्मा, आकाशवाणी भागलपुर के वरीय उद्धोषक डॉ विजय कुमार मिश्र, आनंदराम ढांढनिया सरस्वती विद्या मंदिर के प्राचार्य मनोज कुमार मिश्र, आशीर्वाद के संचालक गोपाल झा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नगर संघचालक डॉ चंद्रशेखर साह, जिला प्रचार प्रमुख हरविन्द नारायण भारती, न्यू ईरा एकेडमी के प्राचार्य सरोज वर्मा, योग गुरु राजीव मिश्रा, शहर के जाने माने साहित्यकार गीतकार कवि राजकुमार, प्रो मथुरा दूबे, आंख नाक कान गला रोग के विशेषज्ञ डॉ लक्ष्मीकांत सहाय, कुप्पाघाट के संत निर्मल बाबा, दीक्षा इंटरनेशल स्कूल के निदेशक संजय कुमार, विहिप नेता राकेश सिन्हा, पारस शर्मा सहित आरएसएस और विद्यार्थी परिषद के कई अधिकारियों से आदि से संपर्क किया।
मेयर सीमा साह ने कहा कि माता-पिता से कोई बड़ा नहीं होता। माता-पिता पूजन कार्यक्रम बहुत ही अच्छा प्रयास है। हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य यह है कि हम उसकी सेवा और पूजा करें। डॉ लक्ष्मीकांत सहाय ने कहा कि भारतीय संस्कृति में वैलेंटाइन का कोई महत्व नहीं है, मातृ-पितृ पूजन दिवस समारोह का आयोजन करना बहुत ही सराहनीय प्रयास है। आकाशवाणी भागलपुर के वरीय उद्घोषक डॉ विजय कुमार मिश्र ने कहा कि जो हमें जन्म देते हैं, जो हमें संस्कार देते हैं, जो हमारे प्रथम गुरु होते हैं उनका पूजन प्रतिदिन होना चाहिए। यह हमारी संस्कृति हमें यही सिखाती है। अतः हमें अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रखना है तभी हमारा यह प्यारा देश भारत कहलायेगा।
प्राचार्य मनोज कुमार मिश्र ने कहा 14 फरवरी को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैसा कि हमें पता है श्रवण कुमार, पुण्डरीक की मातृ पितृ भक्ति हमारे हृदय में हैं। अतः सभी को माता पिता पूजन दिवस मनाना चाहिए। उन्होंने इसके लिए सभी को आने का आह्वान किया। आशीर्वाद के संचालक गोपाल झा ने कहा की मातृ पितृ पूजन दिवस का आयोजन जागृति लाने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा मैंने सभी को माता पिता के साथ कार्यक्रम में आने की अपील की है। पूर्व सांसद सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति की ओर विश्व की निगाह है। प्रत्येक देश अब यहां की संस्कृति को अपनाने लगे हैं। इसके लिए यह आयोजन और भी आवश्यक है। मातृ पितृ पूजन दिवस ही 14 फरवरी के लिए मुख्य समारोह है।
उपमहापौर राजेश वर्मा ने कहा कि आज हम जिस मुकाम पर हैं, उसमें मेरे माता पिता के आशीर्वाद और उनकी सेवा का ही फल है। जो अपने माता पिता की पूजा, सेवा और आदर करते हैं तो वे कभी निराश नहीं हो सकते। पूर्व उप महापौर डॉ प्रीति शेखर ने कहा कि इस आयोजन के लिए युवाओं की इस टोली को बहुत-बहुत बधाई। आज के युवाओं की ऐसी सोच भारत को विश्वगुरु बनाएगा। गीतकार राजकुमार ने कहा कि 'संपूर्ण विश्व को जोड़नेवाली भारतीय संस्कृति के अंतर्गत मातृ-पितृ पूजन की महत्ता को अनुभव के आधार पर आख्यायित करते हुए सूत्र वाक्य में मैं बस इतना हीं कह सकता हूँ कि माता-पिता के प्रति नतियुक्त निर्विकार भक्ति और सेवा ही उन्नति के शीर्ष पर पहुँचा सकती है।'
योगी राजीव मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए जीवन समर्पित कर देने का संकल्प इसी तरह के कार्यक्रम से प्राप्त होगा। भारत की पहचान इसलिए है कि यहां की संस्कृतिक अनुकरणीय है। मध्य विद्यालय बलुआचक की अंग्रेजी की शिक्षिका खुशबू कुमारी ने कहा कि भारतीय संस्कृति अनमोल संस्कृति है। इस सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए सभी को आगे आनी चाहिए। हांलांकि माता, पिता और गुरु की पूजा, आदर और सेवा तो हर पल होनी चाहिए। लेकिन एक दिन विशेष आयोजन कर सामूहिक रूप से मातृ पितृ पूजन दिवस पर समारोह करना अनूठी पहल है। सबों को इसमें सहयोग और भाग लेने की जरूरत है। कुप्पाघाट के संत निर्मल बाबा ने कहा कि अद्वितीय समारोह है यह। सभी को आना चाहिए।
वहीं, संपर्क के दौरान डीआइजी विकास वैभव ने कहा कि ऐसा समारोह भारतीय संस्कृति को उन्नति की शिखर पर ले जाऐगा। भारतीय मूल्यों की रक्षा होगी। आपसी प्रेम और भाईचारा का निर्माण होगा। इस आयोजन के लिए उन्होंने आयोजक को बधाई दी। आयोजन समिति के सदस्यों ने बताया कि समारोह में अपने माता पिता के साथ आने के लिए सभी को आग्रह किया गया है। सभी सामूहिक रूप से अपने माता पिता का पूजन करेंगे। इसके अलावा आरती थाली सजाओ प्रतियोगिता और दिव्य वेश भूषा प्रतियोगिता भी होंगे। विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा। समारोह का संचालन आकाशवाणी भागलपुर के वरीय उद्घोषक डॉ विजय कुमार मिश्र करेंगे।
कैसे करें माता-पिता का पूजन
माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बैठायें।
आसने स्थापिते ह्यत्र पूजार्थं भवरोरिह।
भवन्तौ संस्थितौ तातौ पूर्यतां मे मनोरथः।।
अर्थात् 'हे मेरे माता पिता ! आपके पूजन के लिए यह आसन मैंने स्थापित किया है। इसे आप ग्रहण करें और मेरा मनोरथ पूर्ण करें।' बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें।
तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प अर्पण करें तथा फूलमाला पहनायें।
माता-पिता भी बच्चे-बच्चियों के माथे पर तिलक करें एवं सिर पर पुष्प रखें। फिर अपने गले की फूलमाला बच्चों को पहनायें।
बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवं गुरू में ईश्वरीय भाव जगाते हुए उनकी सेवा करने का दृढ़ संकल्प करें।
बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता के एवं माता-पिता बच्चों के सिर पर अक्षत एवं पुष्पों की वर्षा करें। तत्पश्चात् बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करें। इससे उऩ्हें पृथ्वी परिक्रमा का फल प्राप्त होता है।
बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता को झुककर विधिवत प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतान को प्रेम से सहलायें। संतान अपने माता-पिता के गले लगे। बेटे-बेटियाँ अपने माता-पिता में ईश्वरीय अंश देखें और माता-पिता बच्चों से ईश्वरीय अंश देखें।
इस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें- "मैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा/करूँगी। मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी।"
इस समय माता-पिता अपने बच्चों पर स्नेहमय आशीष बरसाये एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इस प्रकार शुभ संकल्प करें- "तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो। तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरू की भक्ति से महक उठे। तुम्हारे कार्यों में कुशलता आये। तुम त्रिलोचन बनो – तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो। तुम पुरूषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे।"
बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को 'मधुर-प्रसाद' खिलायें एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलायें।
बालक गणेशजी की पृथ्वी-परिक्रमा, भक्त पुण्डलीक की मातृ-पितृ भक्ति – इन कथाओं का पठन करें अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनायें और अन्य लोग श्रवण करें।
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यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
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अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात् जो माता पिता और गुरु जनों को प्रणाम करता है और उऩकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं। (मनुस्मृतिः 2.121)
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दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोઽस्तु ते।।
भारतीय पौराणिक इतिहास में दर्ज मातृ-पितृ भक्ति
पितृ और मातृभक्त गणेश : विश्व इतिहास में सर्वप्रथम मातृ और पितृभक्त के रूप में भगवान गणेश का उल्लेख मिलता है। इस बात का उल्लेख शिवपुराण में मिलता है। एक बार माता की आज्ञा से गणेश द्वार पर शिव को रोक लेते हैं। कुपित होकर शिव उसका सिर धड़ से अलग कर देते हैं। जब पार्वती को पता चलता है तो वे दुख से बेहाल हो जाती हैं और बालक के जन्म की बात बताते हुए अपने पति से उसे पुनः जीवित करने को कहती हैं। तब शिव हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर देते हैं और उसे गणेश नाम देते हुए अपने समस्त गणों में अग्रणी घोषित करते हैं। साथ ही कहते हैं कि गणेश समस्त देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे।
एक बार जब सभी देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता होती है तो कार्तिकेय और गणेश भी इस प्रतियोगीता में हिस्सा लेते हैं। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल पड़े। गणेशजी ने सोचा अपने वाहन चूहे पर बैठकर पृथ्वी परिक्रमा पूरी करने में बहुत समय लग जाएगा। इसलिए गणेश ने अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा की और कार्तिकेय के आने की प्रतीक्षा करने लगे। कार्तिकेय ने लौटने पर अपने पिता से कहा- गणेश तो पृथ्वी की परिक्रमा करने गया ही नहीं। इस पर गणेश बोले- मैंने तो अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा की है। माता-पिता में ही समस्त तीर्थ है। तब शंकर ने गणेश को आशीर्वाद दिया कि समस्त देवताओं में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।
श्रवण कुमार : जब भी मातृ-पितृभक्ति की बात होती है तो सबसे पहले श्रवण कुमार का ही नाम याद आता है। श्रवण कुमार का नाम इतिहास में मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए अमर रहेगा। श्रवण कुमार की कहानी उस समय की है जब महाराज दशरथ अयोध्या पर राज किया करते थे।
श्रवण के माता-पिता अंधे थे। श्रवण अपने माता-पिता को बहुत प्यार करता। उसकी मां ने बहुत कष्ट उठाकर श्रवण को पाला था। जैसे-जैसे श्रवण बड़ा होता गया, अपने माता-पिता के कामों में अधिक से अधिक मदद करता।
सुबह उठकर श्रवण माता-पिता के लिए नदी से पानी भरकर लाता। जंगल से लकड़ियां लाता। चूल्हा जलाकर खाना बनाता। मां उसे मना करतीं- 'बेटा श्रवण, तू हमारे लिए इतनी मेहनत क्यों करता है? भोजन तो मैं बना सकती हूं। इतना काम करके तू थक जाएगा।' 'नहीं मां, तुम्हारे और पिताजी का काम करने में मुझे जरा भी थकान नहीं होती। मुझे आनंद मिलता है। तुम देख नहीं सकतीं। रोटी बनाते हुए, तुम्हारे हाथ जल जाएंगे।'
'हे भगवान! हमारे श्रवण जैसा बेटा हर मां-बाप को मिले। उसे हमारा कितना खयाल है।' माता-पिता श्रवण को आशीर्वाद देते न थकते। श्रवण के माता-पिता रोज भगवान की पूजा करते। श्रवण उनकी पूजा के लिए फूल लाता, बैठने के लिए आसन बिछाता। माता-पिता के साथ श्रवण भी पूजा करता। मता-पिता की सेवा करता श्रवण बड़ा होता गया। घर के काम पूरे कर, श्रवण बाहर काम करने जाता। अब उसके माता-पिता को काम नहीं करना होता।
एक दिन श्रवण के माता-पिता ने कहा- 'बेटा, तुमने हमारी सारी इच्छाएं पूरी की हैं। अब एक इच्छा बाकी रह गई है।' 'कौन-सी इच्छा मां? क्या चाहते हैं पिता जी? आप आज्ञा दीजिए। प्राण रहते आपकी इच्छा पूरी करूंगा।'
'हमारी उमर हो गई अब हम भगवान के भजन के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं बेटा। शायद भगवान के चरणों में हमें शांति मिले।' श्रवण सोच में पड़ गया। उन दिनों आज की तरह बस या रेलगाड़ियां नहीं थी। वे लोग ज्यादा चल भी नहीं सकते थे। माता-पिता की इच्छा कैसे पूरी करूं, यह बात सोचते-सोचते श्रवण को एक उपाय सूझ गया।
श्रवण ने दो बड़ी-बड़ी टोकरियां लीं। उन्हें एक मजबूत लाठी के दोनों सिरों पर रस्सी से बांधकर लटका दिया। इस तरह एक बड़ा कांवर बन गया। फिर उसने माता-पिता को गोद में उठाकर एक-एक टोकरी में बिठा दिया। लाठी कंधे पर टांगकर श्रवण माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने चल पड़ा।
श्रवण एक-एक कर उन्हें कई तीर्थ स्थानों पर ले जाता है। वे लोग गया, काशी, प्रयाग सब जगह गए। माता-पिता देख नहीं सकते थे इसलिए श्रवण उन्हें तीर्थ के बारे में सारी बातें सुनाता। माता-पिता बहुत प्रसन्न थे। एक दिन मां ने कहा- 'बेटा श्रवण, हम अंधों के लिए तुम आंखें बन गए हो। तुम्हारे मुंह से तीर्थ के बारे में सुनकर हमें लगता है, हमने अपनी आंखों से भगवान को देख लिया है।'
'हां बेटा, तुम्हारे जैसा बेटा पाकर, हमारा जीवन धन्य हुआ। हमारा बोझ उठाते तुम थक जाते हो, पर कभी उफ नहीं करते।' पिता ने भी श्रवण को आशीर्वाद दिया। 'ऐसा न कहें पिताजी, माता-पिता बच्चों पर कभी बोझ नहीं होते। यह तो मेरा कर्तव्य है। आप मेरी चिंता न करें।'
एक दोपहर श्रवण और उसके माता-पिता अयोध्या के पास एक जंगल में विश्राम कर रहे थे। मां को प्यास लगी। उन्होंने श्रवण से कहा- बेटा, क्या यहां आसपास पानी मिलेगा? धूप के कारण प्यास लग रही है। 'हां, मां। पास ही नदी बह रही है। मैं जल लेकर आता हूं।' श्रवण कमंडल लेकर पानी लाने चला गया।
अयोध्या के राजा दशरथ को शिकार खेलने का शौक था। वे भी जंगल में शिकार खेलने आए हुए थे। श्रवण ने जल भरने के लिए कमंडल को पानी में डुबोया। बर्तन में पानी भरने की अवाज सुनकर राजा दशरथ को लगा कोई जानवर पानी पानी पीने आया है। राजा दशरथ आवाज सुनकर, अचूक निशाना लगा सकते थे। आवाज के आधार पर उन्होंने तीर मारा। तीर सीधा श्रवण के सीने में जा लगा। श्रवण के मुंह से ‘आह’ निकल गई।
राजा जब शिकार को लेने पहुंचे तो उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। अनजाने में उनसे इतना बड़ा अपराध हो गया। उन्होंने श्रवण से क्षमा मांगी। 'मुझे क्षमा करना ए भाई। अनजाने में अपराध कर बैठा। बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?'
'राजन्, जंगल में मेरे माता-पिता प्यासे बैठे हैं। आप जल ले जाकर उनकी प्यास बुझा दीजिए। मेरे विषय में उन्हें कुछ न बताइएगा। यही मेरी विनती है।' इतना कहते-कहते श्रवण ने प्राण त्याग दिए।
दुखी हृदय से राजा दशरथ, जल लेकर श्रवण के माता-पिता के पास पहुंचे। श्रवण के माता-पिता अपने पुत्र के पैरों की आहट अच्छी तरह पहचानते थे। राजा के पैरों की आहट सुन वे चौंक गए।
'कौन है? हमारा बेटा श्रवण कहां है?' बिना उत्तर दिए राजा ने जल से भरा कमंडल आगे कर, उन्हें पानी पिलाना चाहा, पर श्रवण की मां चीख पड़ी- 'तुम बोलते क्यों नहीं, बताओ हमारा बेटा कहां है?' 'मां, अनजाने में मेरा चलाया बाण श्रवण के सीने में लग गया। उसने मुझे आपको पानी पिलाने भेजा है। मुझे क्षमा कर दीजिए।' राजा का गला भर आया।
'हां श्रवण, हाय मेरा बेटा' मां चीत्कार कर उठी। बेटे का नाम रो-रोकर लेते हुए, दोनों ने प्राण त्याग दिए। पानी को उन्होंने हाथ भी नहीं लगाया। प्यासे ही उन्होंने इस संसार से विदा ले ली।
कहा जाता है कि राजा दशरथ ने बूढ़े मां-बाप से उनके बेटे को छीना था। इसीलिए राजा दशरथ को भी पुत्र वियोग सहना पड़ा रामचंद्रजी चौदह साल के लिए वनवास को गए। राजा दशरथ यह वियोग नहीं सह पाए। इसीलिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। श्रवण कुमार जैसे पितृभक्त कभी नहीं हुआ। जो पुत्र माता-पिता की सच्चे मन से सेवा करते हैं, उन्हें श्रवण कुमार कहकर पुकारा जाता है।
पितृभक्त नचिकेता : नचिकेता एक पितृभक्त बालक था। जब उनके पिता वाजश्रवस विश्वजीत यज्ञ के बाद बूढ़ी एवं बीमार गायों को दान कर रहे थे तो यह देखकर नचिकेता को बहुत ग्लानी हुई। अर्थात जो उनके काम की गायें नहीं थी उसे वे दान कर रहे थे। तब नचिकेता ने अपने पिता से पूछा कि आप मुझे दान में किसे देंगे?
तब नचिकेता के पिता क्रोध से भरकर बोले कि मैं तुम्हें यमराज को दान में दूंगा। चूंकि ये शब्द यज्ञ के समय कहे गए थे, अतः नचिकेता को यमराज के पास जाना ही पड़ा। यमराज अपने महल से बाहर थे, इस कारण नचिकेता ने तीन दिन एवं तीन रातों तक यमराज के महल के बाहर प्रतीक्षा की।
तीन दिन बाद जब यमराज आए तो उन्होंने इस धीरज भरी प्रतीक्षा से प्रसन्न होकर नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा। नचिकेता ने पहले वरदान में कहा कि जब वह घर वापस पहुंचे तो उसके पिता उसे स्वीकार करें एवं उसके पिता का क्रोध शांत हो। दूसरे वरदान में नचिकेता ने जानना चाहा कि क्या देवी-देवता स्वर्ग में अजर एवं अमर रहते हैं और निर्भय होकर विचरण करते हैं! तब यमराज ने नचिकेता को अग्नि ज्ञान दिया, जिसे नचिकेताग्नि भी कहते हैं।
तीसरे वरदान में नचिकेता ने पूछा कि 'हे यमराज, सुना है कि आत्मा अजर-अमर है। मृत्यु एवं जीवन का चक्र चलता रहता है। लेकिन आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है।' नचिकेता ने पूछा कि इस मृत्यु एवं जन्म का रहस्य क्या है?
राम और दशरथ की पितृ-भक्ति: अयोध्या के राजसिंहासन के सर्वथा सुयोग्य उत्तराधिकारी थे भगवान श्रीराम। सम्राट के ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते यह उनका अधिकार भी बनता था मगर पिता की आज्ञा उनके लिए सारे राजसी सुखों से कहीं बढ़कर थी। अतः उनकी आज्ञा जानते ही राम बिना किसी प्रश्न के, बिना किसी ग्लानि या त्याग जताने के अहंकार के, वन की ओर जाने को तत्पर हो उठे।
भगवान श्रीराम सम्राट का ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते यह उनका अधिकार भी बनता था मगर पिता की आज्ञा उनके लिए सारे राजसी सुखों से कहीं बढ़कर थी। अतः उनकी आज्ञा जानते ही राम बिना किसी प्रश्न के, बिना किसी ग्लानि या त्याग जताने के अहंकार के, वन की ओर जाने को तत्पर हो उठे।
स्वयं दशरथ के मन में श्रीराम के प्रति असीम स्नेह था, मगर वे वचन से बंधे थे। एक ओर पुत्र प्रेम था, तो दूसरी ओर कैकयी को दिया वचन पूरा करने का कर्तव्य। इस द्वंद्व में जीत कर्तव्य की हुई और दशरथ ने भरे मन से राम को वनवास का आदेश सुना दिया। राम ने तो पिता की आज्ञा का पालन करते हुए निःसंकोच वन का रुख कर लिया किंतु दशरथ का पितृ हृदय पुत्र का वियोग और उसके साथ हुए अन्याय की टीस सह न सका। अंततः राम का नाम लेते हुए ही वे संसार को त्याग गए।