अब सहरसा में ही तैयार होगा मशरूम का स्पान, नाबार्ड और कृषि अनुसंधान केंद्र दे रहे किसानों को प्रशिक्षण
मशरूम की खेती किसी वरदान से कम नहीं है लेकिन इसके स्पान की उपलब्धता को लेकर किसान भाइयों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच जाती हैं। सहरसा में अब इस समस्या को भी दूर करने के लिए नाबार्ड और कृषि अनुसंधान केंद्र ने कदम बढ़ा दिए हैं।

संवाद सूत्र, सहरसा: मशरूम की मांग को देखते हुए बड़े पैमाने पर इसकी खेती प्रारंभ हो गई है। इसका बेहतर स्पान (बीज) स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण किसान कोलकाता, सिलीगुड़ी, मिर्जापुर आदि जगहों पर भटकने के लिए मजबूर है। अब नाबार्ड के सहयोग से मंडन- भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र अगवानपुर में बेहतर किस्म का स्पान तैयार होगा। इसका जहां स्थानीय स्तर पर मशरूम की खेती में उपयोग किया जाएगा, वहीं इस तैयार स्पान को राज्यभर में बेचा जाएगा। इससे इलाके के किसानों की आमदनी बढ़ेगी और कोरोना संक्रमण में बाहर से आए मजदूरों को रोजगार का बेहतर अवसर प्राप्त होगा।
प्रथम चरण में 90 किसानों को किया जा रहा प्रशिक्षित
नाबार्ड के सहयोग से कृषि महाविद्यालय सह अनुसंधान केंद्र में प्रथम चरण में 90 किसानों को स्पान तैयार करने और मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा। किसानों को ओएस्टर, मिल्की और सबसे बेहतर किस्म बटन मशरूम के स्पान उत्पादन और मशरूम उत्पादन के संबंध में कई महत्वपूर्ण बातों की जानकारी दी जाएगी, ताकि किसान इसका अधिकाधिक लाभ ले सकें।
पोषक तत्वों के कारण बढ़ी मशरूम की मांग
मशरूम में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसलिए अब इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। होटल, रेस्टोरेंट में भी इसकी काफी खपत होने लगी है। कोरोना काल में इसके महत्व को समझते हुए काफी लोग मशरूम का उपयोग करने लगे हैं। चिकित्सक डा. विनय कुमार सिंह का कहना है कि मशरूम में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इसमें सेलेनियम, पोटेशियम, विटामिन डी और प्रोटीन भरपूर मात्रा में में पाई जाती है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। मशरूम स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है।
'मशरूम की लगातार बढ़ रही मांग के कारण नाबार्ड व कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा संयुक्त प्रयास कर स्थानीय स्तर पर बीज तैयार किया जा रहा है। इससे स्थानीय स्तर पर किसान मशरूम उत्पादन को बढ़ावा दे सकेंगे और इससे इलाके की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।'- पंकज कुमार, डीडीएम, नाबार्ड, सहरसा।
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