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भारत की आजादी के लिए रूस से सहयोग लेना चाहते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जानें क्‍या हुआ था 18 अगस्त 1945 को

Netaji Subhas Chandra Bose birth anniversary आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल आनंद मोहन सहाय की पुत्री ने खोला राज। रानी झांसी रेजिमेंट की सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं आशा चौधरी। भागलपुर के नाथनगर स्थित पुरानी सराय स्थित निजी मकान में द्वितीय आजाद हिंद फौज की सेकेंड लेफ्टिनेंट आशा चौधरी रहती हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:27 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:27 PM (IST)
भारत की आजादी के लिए रूस से सहयोग लेना चाहते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जानें क्‍या हुआ था 18 अगस्त 1945 को
1943 में सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ सेकेंड लेफ्टिनेंट आशा चौधरी व उनकी मां सती सेन।

भागलपुर [विकास पाण्डेय]। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तत्कालीन शक्तिशाली राष्ट्रों में शुमार जापान की मदद से मातृभूमि को स्वतंत्रता दिलाने का साहसिक बीड़ा उठाया था। हालांकि, उस दौरान द्वितीय विश्वयुद्ध में उलझे जापान पर अमेरिका द्वारा एटम बम गिरा दिए जाने से उनका अभियान बाधित हो गया था। उसके बाद देश को आजाद करने को कटिबद्ध नेताजी सुभाष बोस अपनी रणनीति में बदलाव लाकर तत्काल इसमें रूस से मदद पाने के प्रयास में जुट गए थे।

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इस संबंध में आजाद हिंद फौज की महिला सैन्य टुकड़ी रानी झांसी रेजिमेंट की सेकेंड लेफ्टिनेंट तथा भागलपुर के नाथनगर स्थित पुरानी सराय की आशा चौधरी ने कुछ दिनों पहले बताया कि नेताजी सुभाष बोस रूस से सहयोग लेने के पक्षधर थे। उस समय वियतनाम पर चीन का प्रभाव था। वे समझते थे कम्युनिस्ट देश होने के नाते चीन का रूस के साथ अवश्य राजनीतिक संपर्क होगा। इसी उद्देश्य से उन्होंने गुप्त रूप से पापा (द्वितीय आ.हि.फौ. के सेक्रेटरी जनरल आनंद मोहन सहाय) को वियतनाम के हनोई नगर तथा एक अन्य निकट सहयोगी जनरल एससी चटर्जी को सैगोन नगर (अब हो ची मिह्न नगर)भेजा था।

आशा ने बताया कि उनके पापा हनोई में रहकर नेताजी के बताए मिशन पर काम करने लगे। इस बीच वे वियतनाम के गांधी के रूप में विख्यात वहां के राष्ट्रपति हो ची मिह्न के संपर्क में भी रहे थे। इसी बीच नागासाकी पर एटम बम गिरने से जापान की कमर ही टूट गई थी। इस घटना से दुनिया भर में उथल-पुथल मच गई थी। आशा ने बताया कि उनके पापा जल्द से जल्द नेताजी के पास सिंगापुर पहुंचना चाहते थे, लेकिन वे हनोई में ही फंस गए। एक दिन उन्हें रेडियो पर सूचना मिली कि ब्रिटिश सरकार से मित्रता होने के कारण उसके चीनी मित्र फौज ने जनरल एसी चटर्जी को गिरफ्तार कर लिया है। हनोई में भी चीन के फौजी कमांडर जनरल लो-हान उन पर नजर रखे हुए थे। एक दिन आशा के पिता आनंद मोहन सहाय भी गिरफ्तार कर लिए गए। इससे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वह योजना भी आकार लेने से पूर्व ही विफल हो गई थी।

नेताजी सुभाष बोस का विमान दुर्घटनाग्रस्त

आशा चौधरी ने बताया कि 18 अगस्त, 1945 को फारमोसा में दुर्भाग्यपूर्ण रूप से नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। बाद में उन्हें पता चला कि जिस सीट पर नेताजी बैठे थे, उसके बगल में तैलीय पदार्थ का एक जार पड़ा था। विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने पर वह तैलीय पदार्थ उनके शरीर पर छलक गया था। इससे नेताजी गंभीर रूप से झुलस गए थे। आशा चौधरी कहती हैं, यदि वह जार वहां पर न होता तो नेताजी घायल होने से बच जाते।

बर्मा के युद्ध में नापाम बम बरसा कर द्वितीय आ. हिंद. फौज को कर दिया था बेबस : आशा के अनुसार, 1944 में बर्मा के युद्ध में जब ब्रिटिश फौज ने नापाम बम गिरा कर युद्ध स्थल के जंगलों को जला डाला तो द्वितीय आजाद हिंद फौज के सेनानियों के छिपने की जगह खत्म हो गई थी। इससे हताहत होने वाले हमारे सैनिकों की संख्या बढऩे लगी थी। यह देख नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने युद्ध रोक दिया था। उनका कहना था कि जल्द ही शक्ति संचित कर वे दोबारा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ेंगे। इसी बीच एटम बम गिरने से कमजोर हो चुका जापान हमें सहयोग देने की स्थिति में नहीं रह गया था।


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