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Narasimha Jayanti 2022: आज भी बिहार के इस गांव में है वो खंभा, जिससे नरसिंह भगवान ने लिया था अवतार

Narasimha Jayanti 2022 बहुत कम लोग जानते हैं कि भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह भगवान ने जहां अवतार लिया। वो जगह बिहार में है। आज भी बिहार के उस गांव में वो खंभे मौजूद हैं जिनसे नरसिंह भगवान अवतरित हुए थे।

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Sat, 14 May 2022 11:21 AM (IST)Updated: Sat, 14 May 2022 11:21 AM (IST)
Narasimha Jayanti 2022: आज भी बिहार के इस गांव में है वो खंभा, जिससे नरसिंह भगवान ने लिया था अवतार
बिहार के पूर्णिया जिले में है नरसिंह भगवान का अवतार स्थल

आनलाइन डेस्क, भागलपुर: Narasimha Jayanti 2022: बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी में सिकलीगढ़ धरहरा गांव हैं। इसी गांव में भगवान नरसिंह अवतरित हुए थे। पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों की मानें तो हिरण्यकश्यप के किले में भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए एक खम्भे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खम्भा, जिसे माणिक्य स्तंभ कहा जाता है। वो आज भी यहां मौजूद है।

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यहां के लोगों द्वारा बताया जाता है कि माणिक्य स्तंभ को कई बार तोड़ने और हटाने का प्रयास किया गया लेकिन न तो ये स्तंभ टूटा और न ही इसे हटाया जा सका। हालांकि, स्तंभ झुक गया है। अब यहां नरसिंह भगवान का अवतार स्थल बनाया गया है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

  • वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती का पावन त्योहार मनाया जाता है।
  • आज यानी 14 मई को नरसिंह जयंती है।

रोचक है ये सब भी- माणिक्य स्तंभ का रहस्य

पूर्णिया के जिस स्थान में नरसिंह भगवान का अवतार स्थल है, वहां यहीं हिरन नामक नदी बहती है। माणिक्य स्तंभ को लेकर यहां कुछ वर्षों पहले तक मान्यता थी कि इसके छेद में पत्थर डालने पर वो हिरण नदी में पहुंच जाता था। जो एक रहस्य था लेकिन अब ये छिद्र प्रसाद का भोग लगाने और रोली-चंदन लगाने से भर गया है। 

नरसिंह भगवान के अवतर स्थल के पास ही भीमेश्वर महादेव का मंदिर भी है। कहा जाता है ये वही मंदिर है, जहां हिरण्यकश्यप बैठकर पूजा करता था। हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्यकच्छ बराह क्षेत्र का राजा था, जो अब नेपाल में पड़ता है।

  • माणिक्य स्तंभ स्थल का भागवत पुराण (सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय) में जिक्र है।
  • भागवत पुराण के मुताबिक, इसी खम्भे से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। इस स्थल की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है।
  • मान्यता है कि जब होलिका जल गई थी और प्रह्लाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे, तब लोगों ने यहां की उसी राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगा-लगाकर खुशियां मनाई थीं और तभी से होली प्रारम्भ हुई।

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