Nag Panchami : क्यों की जाती है भगवान शिव की बेटी विषहरी की पूजा? भागलपुर के चंपानगर से जुड़ी है अद्भुत कथा
Nag Panchami 2022- नाग पंचमी का त्योहार बिहार में श्रद्धा भाव के साथ मनाया गया। मां विषहरी की पूजा की गई। लोगों ने घरों की दहलीज पर नाग देवता की आकृति उकेरी और लावा का छिड़काव किया। मुख्य द्वार पर दूध रखा गया।

Nag Panchami 2022 आनलाइन डेस्क: बिहार में नागपंचमी पर्व पर मां विषहरी की पूजा की गई। वहीं लोगों ने मान्यता अनुसार अपने घरों की दहलीज पर नाग देवता के लिए दूध रखा। खेत खलिहानों में दूध रखा गया वहीं, घरों के द्वार पर गोबर से नाग देवता की आकृति उकेर पूजा अर्चना की गई। इसके पश्चात विधान पूर्वक नीम के डंठल लटकाए गए। वहीं दूध-लावा चढ़ाने के साथ घरों मे भी धान का लावा छिड़कने की परंपरा निभाते हुए महिलाओं ने नाग देवता से सुख समृद्धि की कामना की।
बात करें मधेपुरा की तो यहां ग्वालपाड़ा प्रखंड क्षेत्र में नाग पंचमी के अवसर पर नाग देवता और मां विषहरी की पूजा-अर्चना की गई। सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस अवसर पर मंगलवार को सुबह से ही मंदिरों में भक्तगण पूजा-अर्चना के लिए पहुंचने लगे। क्षेत्र के पिरनगर, डेफरा भालुवाही, जिरवा, नौहर, टेमा भेला सहित अन्य बिषहरी मंदिर में भक्तों ने विशेष पूजा-अर्चना की। मंदिरों में भक्तों ने दूध-लावा चढ़ाकर परिवार के कल्याण की मन्नत मांगी।
क्यों की जाती है मां विषहरी की पूजा
मां विषहरी पूजा की शुरूआत बिहार से हुई। इसकी अद्भुत कथा बिहार के भागलपुर के चंपानगर से जुड़ी है। जो उस समय के बड़े व्यावसायी और शिवभक्त चांदो सौदागर से शुरू होती है। मां विषहरी, जो भागवान शिव की पुत्री कही जाती हैं लेकिन तब उनकी पूजा नहीं होती थी। वहीं, शिव भक्त सौदागर पर विषहरी ने दबाव बनाया कि वो शिव के अलावा किसी और की पूजा करें। लेकिन अपनी भक्ति में अडिग चांदो इसपर राजी नहीं हुए।
लिहाजा, आक्रोशित विषहरी ने उनके पूरे खानदान का विनाश शुरू कर दिया। छोटे बेटे बाला लखेन्द्र की शादी बिहुला से हुई थी। अंत में अपने इसी बेटे को बचाने के लिए सौदागर ने लोहे बांस का एक घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे और किसी तरह का सांप उसमें प्रवेश न कर सके। इस बात का गवाह आज भी चंपानगर में बना वो घर है।
इस घर में किसी कारणवश एक छिद्र रह गया। विषहरी ने उससे ही प्रवेश कर लखेन्द्र को डस लिया। वहीं पति की मौत होते देख सती हुई बिहुला पति के शव को केले के थम से बनी नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक चली गई। बिहुला वहां से अपने पति का प्राण वापस कर आ गई। सौदागर भी विषहरी की पूजा के लिए राजी हुए लेकिन शर्त थी कि वे बाएं हाथ से विषहरी की पूजा करेंगे। तब से विषहरी पूजा की परंपरा शुरू हुई। जो आज भी बाएं हाथ से ही की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि विषहरी पूजन से सर्पदंश से मुक्ति मिलती है।
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