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    Millets Farming: मोटे अनाज पर किसानों का भरोसा, उत्पादन में 6 प्रतिशत की वृद्धि

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 01:38 PM (IST)

    भारत सरकार द्वारा 'मिलेट्स वर्ष' मनाए जाने के बाद बिहार में श्रीअन्न (मिलेट्स) की खेती में सकारात्मक बदलाव आया है। राज्य में मिलेट्स की खेती का रकबा ब ...और पढ़ें

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    परिमल सिंह, भागलपुर। भारत सरकार की ओर से ‘मिलेट्स वर्ष’ मनाए जाने के बाद बिहार में श्रीअन्न (मिलेट्स) को लेकर सकारात्मक बदलाव नजर आने लगा है। ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाजों की खेती एक बार फिर किसानों की प्राथमिकता में शामिल हो रही है।

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    पोषण के प्रति बढ़ती जागरूकता, सरकारी प्रयासों और नीतिगत पहलों का असर यह है कि राज्य में मिलेट्स की खेती का रकबा बढ़ा है। 2021 में बिहार में मोटे अनाज की खेती 8.20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में होती थी, जो 2024 में बढ़कर 8.70 हजार हेक्टेयर हो गई है। इस तरह तीन वर्षों में लगभग छह प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

    तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के अधीन कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र ने मिलेट्स को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। प्रोजेक्ट लीडर सह रिसर्च आफिसर डा. रामबालक चौधरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यदि मौजूदा प्रयासों को और मजबूती दी जाए तो आने वाले वर्षों में मिलेट्स की खेती को बड़े स्तर पर विस्तार मिल सकता है।

    फिलहाल सरकार की ओर से सीमित संख्या में किसानों को ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसान इससे नहीं जुड़ पा रहे हैं। प्रशिक्षण की व्यवस्था पंचायत स्तर पर किए जाने की जरूरत है, ताकि अधिक से अधिक किसान इससे लाभान्वित हो सकें। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसानों को समय पर गुणवत्ता युक्त बीज उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है, ताकि बुआई प्रभावित न हो।

    बिहार के बक्सर और झारखंड के गिरिडीह जिले के 320 किसानों से बातचीत के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। इसे जल्द ही कृषि मंत्रालय को सौंपा जाएगा। रिपोर्ट में मिड-डे मील जैसी सरकारी योजनाओं में मिलेट्स को अनिवार्य रूप से शामिल करने का सुझाव दिया गया है।

    इससे एक ओर बच्चों को पौष्टिक आहार मिलेगा, दूसरी ओर किसानों को स्थाई बाजार उपलब्ध हो सकेगा। इसके साथ ही किसानों को फार्मर प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन (एफपीओ) और सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) से जोड़ने पर जोर दिया गया है, ताकि उत्पादन से लेकर विपणन तक उन्हें बेहतर सहयोग मिल सके।

    कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र के अनुसार, मिलेट्स की खेती किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ आम लोगों के स्वास्थ्य सुधार में भी अहम भूमिका निभा सकती है। समय पर गुणवत्ता युक्त बीज की उपलब्धता, सरकारी खरीद की व्यवस्था और फसल खराब होने की स्थिति में मुआवजे का प्रविधान इस खेती को और मजबूत बना सकता है।

    रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ वर्ष पहले उचित कीमत और बाजार नहीं मिलने के कारण बिहार और झारखंड के किसान ज्वार, रागी सहित अन्य मिलेट्स की खेती से दूर हो गए थे, जिसका असर उत्पादन पर पड़ा। बिहार में 2020–21 में मिलेट्स का उत्पादन करीब 10 हजार टन था, जो 2024 तक घटकर 6.5 हजार टन रह गया।

    झारखंड में 2021–22 में 18 हजार टन उत्पादन होता था, जो अब घटकर 13.5 हजार टन रह गया है। हालांकि खेती के रकबे में बढ़ोतरी यह संकेत देती है कि किसानों का भरोसा धीरे-धीरे लौट रहा है।