Millets Farming: मिलेट्स को बढ़ावा देने की सरकारी कोशिशों पर संकट, बिहार-झारखंड में खेती 50% घटी
बिहार और झारखंड में मिलेट्स (श्रीअन्न) की खेती में लगभग 50% तक गिरावट आई है। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, किसान उत्पादन के ब ...और पढ़ें

मिलेट्स को बढ़ावा देने की सरकारी कोशिशों पर संकट, बिहार-झारखंड में खेती 50% घटी
परिमल सिंह, भागलपुर। सरकार एक ओर मिलेट्स (श्रीअन्न) को पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है, दूसरी ओर बिहार-झारखंड में इसकी खेती को लेकर नई और गंभीर समस्या सामने आ रही हैं। हाल के वर्षों में दोनों राज्यों में मिलेट्स की खेती में लगभग 50 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है। इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के अधीन कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र की ओर से तैयार एक ताजा रिपोर्ट में हुआ है।
रिपोर्ट को जल्द ही केंद्रीय कृषि मंत्रालय और बिहार सरकार को सौंपा जाएगा। प्रोजेक्ट लीडर सह रिसर्च ऑफिसर डॉ. रामबालक चौधरी ने रिपोर्ट में सरकार को कई अहम सुझाव दिए हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल मिलेट्स को लेकर सरकार की ओर से सीमित संख्या में किसानों को ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसान इससे नहीं जुड़ पा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि प्रशिक्षण की व्यवस्था पंचायत स्तर पर की जाए, ताकि अधिक से अधिक किसान लाभान्वित हो सकें। इसके साथ ही किसानों को गुणवत्ता युक्त बीज उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया गया है। बीज समय पर किसानों तक पहुंचे, ताकि बुआई प्रभावित न हो। रिपोर्ट के लिए बिहार के बक्सर और झारखंड के गिरिडीह में कुल 320 किसानों से बातचीत की गई।
उत्पादन हो रहा, पर खरीदार नहीं
रिपोर्ट में बताया गया कि कुछ दशक पहले बिहार और झारखंड में ज्वार, रागी सहित अन्य मिलेट्स की खेती बड़े पैमाने पर होती थी। लेकिन अब किसान धीरे-धीरे इससे विमुख हो चुके हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह उत्पादन के बावजूद खरीदार नहीं मिलना है। रिपोर्ट के अनुसार बिहार में वर्ष 2020-21 में मिलेट्स का उत्पादन करीब 10 हजार टन था, जो 2024 में घटकर 6.5 हजार टन रह गया।
वहीं, झारखंड में 2021-22 में 18 हजार टन उत्पादन होता था, जो अब घटकर 13.5 हजार टन रह गया है। इसके साथ खेती के रकबे में भी भारी गिरावट आई है। बिहार में वर्ष 2018-19 में जहां 14.37 हजार हेक्टेयर में मिलेट्स की खेती होती थी, वह अब घटकर 7.88 हजार हेक्टेयर रह गई है। झारखंड में भी 40 से 50 प्रतिशत तक रकबा कम हो चुका है।
सरकारी खरीद और योजनाओं से जोड़ने की मांग
किसानों का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में मिलेट्स को बढ़ावा देना चाहती है तो इसकी सरकारी खरीद सुनिश्चित करनी होगी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि बिहार में मिड-डे मील जैसी योजनाओं में मिलेट्स को शामिल किया जाए। साथ ही सरकारी योजनाओं के तहत इसकी बिक्री की व्यवस्था हो। फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) और सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) से किसानों को जोड़ा जाए, ताकि उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके।
इसके अलावा फसल खराब होने की स्थिति में सरकार द्वारा मुआवजा देने की व्यवस्था करने की भी सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि मिलेट्स न केवल किसानों की आय बढ़ाने का जरिया बन सकता है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर रखने में भी अहम भूमिका निभा सकता है। इसके लिए नीतिगत स्तर पर ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया है।
महत्वपूर्ण सुझाव
- सीमित किसानों को ही नहीं, बल्कि प्रशिक्षण की व्यवस्था पंचायत स्तर पर की जाए
- मिड-डे मील जैसी योजनाओं में मिलेट्स को आवश्यक रूप से शामिल करने का आग्रह
- फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) और सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) से जोड़ा जाए
- फसल खराब होने की स्थिति में सरकार से किसानों को मुआवजा देने की व्यवस्था हो

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