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    Maha Navami 2025 Date: महानवमी पर अबकी थप्पा देकर करें मां की विदाई... धन-धान्य, प्रसिद्धि के लिए आप करें ये काम

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 03:59 AM (IST)

    Maha Navami 2025 Date महानवमी पर मां दुर्गा की विदाई के समय महाशय परिवार के पुरुष सदस्य पहले थप्पा देते हैं। बांग्ला संस्कृति में दुर्गा पूजा से लेकर शादी-विवाह तक में थप्पा देने का रिवाज है। भागलपुर चंपानगर के महाशय ड्योढ़ी की महारानी कृष्णा सुंदरी ने थप्पा प्रथा आरंभ की थी। इसे शुभ कार्य का द्योतक माना जाता है।

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    Maha Navami 2025 Date: महानवमी पर मां दुर्गा की विदाई के समय महाशय परिवार के पुरुष पहले थप्पा देते हैं।

    मिहिर, भागलपुर। Maha Navami 2025 Date बांग्ला संस्कृति में पूजा-पाठ से लेकर शादी-विवाह तक में थप्पा देने की प्रचलित प्रथा है। पर बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस प्रथा की शुरुआत चंपानगर स्थित महाशय ड्योढ़ी की महारानी कृष्णा सुंदरी ने आज से 250 साल पहले की थी। महाशय परिवार के वंशज अरविंद घोष बताते हैं कि मां कृष्णा सुंदरी मां दुर्गा की अनन्य भक्त थीं। वह हवेली में बने पूजा घर में पूजा करते-करते ध्यान में लीन हो जाती थीं।

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    पूर्वज बताते थे कि इस दौरान वह मां दुर्गा और बाबा भैरवनाथ से सीधा संवाद करती थीं। इस अभूतपूर्व क्षण का गवाह बनने के लिए साधु-संतों के साथ-साथ भक्तों की भी भीड़ उमड़ती थी। थप्पा देने की प्रथा महारानी ने ही शुरू की थी, जिसे आज भी निभाया जा रहा है। मां दुर्गा की विदाई के समय महाशय परिवार का एक पुरुष सदस्य मंदिर की बाईं दीवार पर थप्पा देता है। इसके बाद महिलाएं इस कार्य को आगे बढ़ाती हैं।

    चंपानगर से शुरू हुआ थप्पा देने का रिवाज

    • बांग्ला संस्कृति में दुर्गा पूजा से लेकर शादी-विवाह तक में थप्पा देने का है रिवाज
    • कृषणा सुंदरी ने अपने शासनकाल में शुरू की थी लगान माफ करने की परंपरा 
    • समाज के दबे-कुचले लोगों के उत्थान के लिए किए थे कई कार्य 
    • सामाजिक कार्यों के साथ-साथ धर्म-अध्यात्म में भी कमाया नाम 
    • मां दुर्गा की विदाई के समय महाशय परिवार के पुरुष सदस्य पहले देते हैं थप्पा
    • इसके बाद महिलाएं इस कार्य को बढ़ाती हैं आगे 

    सामाजिक कार्यकर्ता देवाशीष बनर्जी ने बताया कि चावल, हल्दी, सिंदूर, अलता और गंगा जल को मिलाकर थप्पा बनाया जाता है। मां की विदाई थप्पा देकर ही की जाती है। अरविंद घोष कहते हैं कि थप्पा विदाई के साथ-साथ धन-धान्य का भी प्रतीक है। इसके माध्यम से यह प्रार्थना की जाती है कि परिवार में अन्न की कभी कमी न हो।

    कृष्णा सुंदरी ने संभाली थी सत्ता की कमान

    महाशय द्वारिका नाथ घोष से विवाह होने के बाद कृष्णा सुंदरी महाशय परिवार में आयी थीं। पति के देहांत के बाद राजकाज की बागडोर इन्होंने ही संभाली थी। अपने शासनकाल में इन्होंने ही सबसे पहले लगान माफ करने की परंपरा शुरू की थी। समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए उन्होंने काफी कार्य किया था। सामाजिक कार्यों के साथ-साथ धर्म-अध्यात्म में भी उन्होंने खूब नाम कमाया।