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    ठाढ़ी व्रत: अद्भुत है बिहार का मां कामाख्या मंदिर, कुष्ठ रोगियों का मिटता है कष्ट, भक्तों के लिए आई थीं असम वाली माई

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Sun, 06 Feb 2022 09:40 AM (IST)

    ठाढ़ी व्रत के दिन मां कामाख्या मंदिर का जिक्र जरूर किया जाता है। व्रत के अवसर पर बिहार के इस मंदिर में बड़ा मेला लगता रहा है। असम के बाद बिहार का मां कामाख्या मंदिर बेहद अद्भुत है जो चार सौ साल पुराना है इसके पीछे रोचक कहानी है...

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    मां कामाख्या मंदिर बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है।

    संवाद सूत्र, हरदा, पूर्णिया: सूर्योपासना का महापर्व ठाढ़ी व्रत रविवार को मनाया जाएगा। यह व्रत मिथिलांचल के साथ-साथ अंगिका क्षेत्र में माघ माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार को ही मनाया जाता है। कहीं-कहीं यह व्रत इस माह के शुक्ल पक्ष के हर रविवार को मनाया जाता है। गंगा स्नान के बाद शुक्रवार को घरों में व्रती नहाय खाय के साथ अनुष्ठान का आरंभ किया है। शनिवार को खरना किया गया। रविवार को पूरे दिन व्रती निर्जला उपवास रखकर घर में पूजन कर व्रती के सिर पर धूपची, हाथ में झालर, खोइंछा में फल,फूल लेकर भगवान श्री हरि का स्मरण कर निकटतम देवी देवताओं व सिद्धपीठ में परिक्रमा करते हैं।

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    क्षेत्र के प्रसिद्ध माता कामाख्या स्थान भवानीपुर, मजरा में पूर्णिया प्रमंडल सहित सूबे के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालुओं का आगमन होता है। यद्यपि कोरोना गाइड लाइन के तहत प्रशासन द्वारा इस वर्ष मेले पर रोक लगा दी गई है। धमदाहा विधायक सह बिहार सरकार की मंत्री लेसी सिंह के प्रयास से कला संस्कृति विभाग द्वारा स्वीकृत मां कामाख्या महोत्सव भी फिलहाल टाल दिया गया है। मंदिर कमेटी के सदस्यों ने बताया कि मंदिर में व्रती पूजन कर सकेंगी। मेला सहित अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम फिलहाल रद रहेगा।

    मंदिर का इतिहास और मां की कृपा 

    कामाख्या मंदिर की बात करते हैं, तो असम वाला मां का दरबार हमारे जहन में उभरता है लेकिन बिहार के पूर्णिया में भी मां का अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर की महत्व ऐसा है कि दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। मुगल काल में इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। इस मंदिर के पीछे कई दंत कथाएं हैं। मान्यता है कि देवी कृपा से कुष्ठ रोगियों का यहां इलाज हो जाता है। इस मंदिर के बारे में तो ये भी कहा जाता है कि असम में जो कामरु कामाख्या मंदिर है, वहां से मां अपने भक्तों पर कृपा बरसाने के लिए इस मंदिर में चली आई थीं। मंदिर चार सौ साल पुराना है।

    ऐसा कहा जाता है कि सुंदरी और श्यामा नाम की दो लड़कियां थीं। मुगलों से इनकी रक्षा करने के लिए माता यहां पहुंच गई थीं। माता के मंदिर में इन दोनों लड़कियों का भी एक मंदिर बना हुआ है। बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। खासकर कुष्ठ रोगी तो यहां जरूर पहुंचते हैं। मान्यता है कि माता की कृपा से उनका कष्ट दूर हो जाता है।

    जो कहानी इस मंदिर को लेकर न जाने कितने वर्षों से चली आ रही है, उसके मुताबिक दो बेटियों की वजह से एक गरीब ब्राह्मण कर्ज के बोझ तले मां की आराधना काफी समय से कर रहा था। ऐसे में मां प्रसन्न हो गई थीं और घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक अवशेष देकर उसे स्थापित करने के लिए और उसकी पूजा करने के लिए कहा था।