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    लक्ष्मण जी की माता सुमित्रा का मायका बिहार का राजगीर है, रामभद्राचार्य से सुनें मां और पुत्र के कई मार्मिक प्रसंग

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 29 Apr 2022 06:46 AM (IST)

    भागलपुर के कहलगांव में पद्मविभूषण रामभद्राचार्य जी ने सुमित्रा और लक्ष्मण के बीच के कई मार्मिक प्रसंगों की चर्चा की। कथा के दौरान उन्‍होंने कहा किसी धोबी के कहने से कभी सीता जी का वनवास नहीं हुआ। वे तो वैदेही हैं।

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    भागलपुर के कहलगांव में प्रवचन सुनाते स्‍वामी रामभ्रदाचार्ज जी महाराज।

    संवाद सूत्र, कहलगांव (भागलपुर)। कहलगांव में रामकथा के पांचवें दिन पद्मविभूषण रामभद्राचार्य जी ने कहा कि लक्ष्मण जी प्रत्येक लीला में राम जी के साथ रहे लेकिन इन्हें मोह क्यों नहीं हुआ। सुमित्रा जी जैसी मां मैंने नहीं देखा जिनके मन में लालसा थी कि उनका बेटा राजा नहीं भगवान का सेवक बने। इनके दो पुत्र थे। एक को भगवान का सेवक और एक को भगवान के भक्त का सेवक बना दिया। सुमित्रा जी का नैहर बिहार के वर्तमान राजगीर था। वे नहीं चाहतीं की उनका बेटा राजा बने बल्कि राजा का सेवक हो। मैं शास्त्रों के साथ खेलता हूं। यदि राजसिंहासन चाहते हो तो भगवान की शरण ले लो।

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    सीता जी का वनवास किसी धोबी के कहने से कभी वनवास नहीं हुआ। सीता जी तो वैदेही हैं, जिनका शरीर कभी छूटा ही नहीं। सुमित्रा जी को बुरा लगा कि राम मुझसे विदा लेने क्यों आये हो। लक्ष्मण जी ने कहा कि माता मैंने राम जी को पहले ही कह दिया। तब राम जी ने कहा कि मैं तुम्हें छोटी मां से आज्ञा लेना के लिए कहता हूं। माता सुमित्रा में तेज है। वे मुझे वनवास जाने के लिए मना कर देंगी। अगर हम वनवास गये नहीं तो रावण वध होगा नहीं। इसलिए मेरी ओर से तुम माफी मांग लो। माता सुमित्रा ने कहा जब श्री राम हमारे पास आने में संकोच कर रहे हैं तो मुझे भी उनके पास जाने में संकोच हो रहा है। जब वे रावण वध कर लौटेंगे तब मैं उनसे मिल लूंगी।

    जीव का वास्तविक स्वरूप क्या है। जीव तो निरतंर परमात्मा के साथ रहता है। इस शरीर में दो पक्षी हैं जीवात्मा और परमात्मा। जीवात्मा के परमात्मा नहीं रह सकते और परमात्मा के बिना जीवात्मा नहीं रह सकते। राम लक्ष्मण में कुछ ऐसा ही संबंध है। भगवान के दर्शन हो जाये लेकिन गुरुदेव के दर्शन न हो तो उसमें मिठास नहीं होती है। सुमित्रा जी वैसी ही गुरु हैं। जब जीव का कल्याण करना होता है तो भगवान सद्गगुरु से भेंट करवा देते हैं। पर का मतलब है परमात्मा। भगवान का स्वरूप क्या है राम प्राण प्रिय जीवन जीते, स्वारथ रहित सखा सब हिते। यही परमात्मा का स्वरूप है। प्राण को प्रिय हैं भगवान राम।

    माता सुमित्रा ने कहा लक्ष्मण तुम जीवात्मा रूप में हो राम परमात्मा स्वरूप में हैं। अत: तुम राम के साथ जाओ और उनकी सेवा करो। हम झूठ कम से कम बोलें। अपनी प्रतिष्ठा के लिए झूठ कम से कम बोलें। संसार वालों ने मुझे सताने में कोई कमी नहीं छोड़ी। लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। स्वामी करपात्री जी महाराज ने मुझे कहा आप जो कर रहे हैं करें, मंच पर आपका प्रतिवाद वृहस्पति भी नहीं करेंगे। लगभग पांच सौ सांसद आज मुझे सुनते हैं। हमें छल छोड़ भगवान का भजन करना है। जैसे मीरा कहती हैं मैं बैरागन होई। लक्ष्मण जी राम की कुटी बना नहीं रहे स्वयं कुटी बन जाते हैं। राम जी को जो चाहिए वह स्वयं लक्ष्मण जी बन जाते हैं। यह जान कर ही भरत जी ने राम जी के चरण पादुका को शिरोधार्य किया कि वह मामूली चरण पादुका नहीं बल्कि स्वयं लक्ष्मण हैं।

    लक्ष्मण कहते हैं मैं राम जी आचरण नहीं चरण देखता हूं। लक्ष्मण जी को छ: महिलाएं मिल रही हैं उर्मिला, सीता, छद्म सीता, सती, सूर्पनखा एवं तारा। लेकिन लक्ष्मण जी तो प्रभु भक्ति में लीन थे। इसलिए कोई वासना उनके निकट नहीं फटकी। सीता जी भी लक्ष्मण जी को लइका ही मानती हैं। लक्ष्मण जी राम जी कितने विश्वस्त हैं।लक्ष्मण जी को कोई कामना ही नहीं है। लक्ष्मण जी को उर्मिला जी से आसक्ति नहीं हुई। जब प्रेम बढ़ता जाता है तो काम घटता जाता है। सूर्पनखा रुचिर रूप धर लक्ष्मण के पास आई लेकिन लक्ष्मण को कोई मोह नहीं हुआ। राम जी को लक्ष्मण जी भगवान मानते हैं। भगवान में छ: गुण होते हैं। अग्नि प्रवेश का मर्म लक्ष्मण जी नहीं जानते थे। तब सीता जी ने उन्हें बताया कि मैं वह सीता नहीं हूं। मैं तो अग्नि में समाहित हो उनकी सुरक्षा में हूं। अगर तुम नहीं जाओगे तो रावणवध नहीं होगा। लक्ष्मण जी ने धनुष भंग इसलिए नहीं किया क्योंकि वे प्रथम दृष्टि में सीता को माता मान लिया था। भागलपुर के भाजपा जिलाध्‍यक्ष रोहित पांडेय ने स्‍वामी रामभद्राचार्य जी महाराज से भेंट की। उनसे आशीर्वाद लिया। उनके साथ कई भाजपा कार्यकर्ता भी थे। 

    पहले थी अद्भुत शिक्षा आज हो गई है वीआइपी शिक्षा

    कथा वाचक पंडित रामनयन मिश्र शास्त्री ने कथा वाचन करते हुए कहा कि भगवान शिव का जब मन कथा सुनने को होता था तो सहज भाव मे वृक्ष के नीचे एकांत में बैठ जाते थे। कथा जो संसार का हित करने वाला है उसे जरूर श्रवण करें ।कथा का एक शब्द भी मन मे आ गया तो उसका लाभ जरूर मिलेगा। भगवान शिव ने भी कहा है की एक बार कथा जरूर सुन लें। उन्होंने कहा कि पहले की शिक्षा अद्भुत थी आज की शिक्षा वीआइपी शिक्षा हो गई है। शिक्षक और माता पिता के भय से पढ़ते थे। अनुशासन था। आज्ञा मानते थे। आज की शिक्षा मोटी मोटी किताबों में और काफी खर्चीली हो गई है। पुत्र को अपने दम पर जिंदगी भर पढ़ाने के बाद भी पुत्र का प्रेम माता पिता को नहीं मिलता है। पुत्र का परिवार पत्नी और बच्चे में सिमट जाता है। पुत्र विदेश पढऩे गया है वहीं बस गया है। माता पिता पुत्र को देखने के लिए तरसते रह जाता है। मरते वक्त भी पुत्र का दर्शन नहीं होता है। विदेश में क्या रखा है जब सारी सुविधा यहां है। उन्होंने कहा कि राम कथा गाने के लिए और सुनने के लिए है। रामचरितमानस रामजी का स्वरूप है।जहां भक्त हैं वहीं भगवान है। निर्गुण और सगुन एक दूसरे के पूरक हैं। सगुन दिखाई पड़ता है निर्गुण दिखाई नहीं पड़ता है। शक्ति निर्गुण है।

    प्रभु समय समय पर भक्तों की लेते हैं परीक्षा

    डा. आशा तिवारी ओझा ने कहा कि प्रभु समय समय पर किसी न किसी रूप में प्रकट होते रहते हैं और भक्तों की परीक्षा भी लेते हैं। उनकी परीक्षा में जो सफल होते हैं वह धन धान्य हो जाते हैं। आज मानवता में कमी हो गई है। आदमी के तरफ चलना कर्म करना सीखें। शराब और नशा को परिवार, समाज और स्वयं के लिए घातक बताते हुए इससे बचने परिवार और समाज को अच्छे रास्ते पर ले जाने को बात कही। उन्होंने रामराज्य की कल्पना को आगे बढ़ाने की बात कही। इनके भजनों पर श्रद्धालु झूमते रहे।

    लक्ष्य की ओर बढ़ें

    मानस कोकिला हीरामणि मानस भारती ने कहा कि कब क्या होगा कुछ नहीं कहा जा सकता है। प्रभु का भजन करें। कथा श्रवण करें जीवन की नैया पार हो जाएगी। अपने कत्र्तव्य का पालन करें अपने लक्ष्य की ओर बढ़े सफलता जरूर मिलेगी। यही परमात्मा का संदेश है। प्रभु को अपने हृदय में बनाएंगे तो प्रभु को पाएंगे। उन्होंने कहा कि जब प्रभु श्रीराम वनवास गए तो अयोध्या में तीन धारों वाला विचार चल रहा था। कुछ लोग भरत जी की सम्मति बता रहे थे तो कुछ लोग दूसरे भाई की चुप्पी एवं तीसरे भाई कान में उंगली डाल लेते थर। रामजी के चले जाने पर अयोध्या का स्वरूप बदल गया था उनके आने के बाद ही खुशी का माहौल बना था। उन्होंने समय समय पर रामचरितमानस का पाठ करने की सलाह दी।

    मंच से एक दिव्यांग को किया गया सम्मानित

    श्रीराम कथा के मंच से स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने राघव परिवार की ओर से एक दिव्यांग राजकुमार मंडल को माला पहनाकर चादर देकर सम्मानित किया और महाराज ने जुलाई माह में अपने पास बुलाया और पठन पाठन वहां दिव्यांग विद्यालय में करने की बात कही। राम कथा में गणपत सिंह उच्चविद्यालय के एनसीसी कैडेटों के द्वारा सेवा और सुरक्षा का दायित्व संभाल रखे हैं। एनसीसी अफसर मो. आरिफ हुसैन स्वंय मौजूद रहते हैं। 

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