Kosi Puja, Chhath Puja: छठ पूजा में क्यों भरते हैं कोसी? संघ्या अर्घ्य के बाद कोसी पूजा का विधान, छठी मइया देतीं आशीष
Kosi Puja, Chhath Puja: छठ पूजा 2025 में कोसी भरना एक महत्वपूर्ण विधान है, जो मनोकामना पूरी होने के बाद छठी मइया के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए किया जाता है। गन्नों से बने घेरे में मिट्टी के हाथी और कलश के चारों ओर दीये जलाकर पूजा की जाती है। सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए कोसी भरा जाता है। कोसी भरने से सीधा अभिप्राय मनोकामना पूर्ति से है। कोई मन्नत पूरी हो जाती है, तो छठ पूजा के दौरान कोसी भरकर आभार, कृतज्ञता जताते हैं।

Kosi Puja, Chhath Puja: छठ पूजा में कोसी भरना एक महत्वपूर्ण विधान है।
ललन तिवारी, भागलपुर। Kosi Puja, Chhath Puja लोक आस्था के महापर्व छठ में सूर्य उपासना के साथ-साथ कोसी पूजा का विशेष महत्व है। इस अनुष्ठान में सूर्य की ऊर्जा, मातृत्व का वात्सल्य और लोकभक्ति की सुगंध एक साथ महसूस होती है । यही कारण है कि भागलपुर सहित पूरे मिथिला, अंग और भोजपुर अंचल में यह परंपरा आज भी उतनी ही श्रद्धा से निभाई जाती है जितनी सदियों पहले निभाई जाती थी। छठ पर्व के तीसरे दिन अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घरों और आंगनों में जब दीयों की लौ टिमटिमाती है, तब कोसी पूजा की थाली सजी होती है जिसमें न केवल परंपरा की गंध होती है, बल्कि मातृत्व, श्रद्धा और कृतज्ञता की गहरी भावना भी समाई होती है।
कोसी पूजा : कृतज्ञता और आस्था का प्रतीक Kosi Chhath Puja
छठ पर्व में कोसी भरना या कोसी पूजा उन परिवारों में की जाती है जहां कोई मनोकामना पूरी होती है जैसे संतान की प्राप्ति, किसी असाध्य रोग से मुक्ति, या किसी बड़ी पारिवारिक बाधा का दूर होना। इसे छठी मैया और सूर्यदेव को धन्यवाद ज्ञापन का रूप माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि श्रद्धा और विधि-विधान से की गई यह पूजा परिवार की रक्षा करती है, संतान को दीर्घायु और आरोग्यता प्रदान करती है तथा जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाती है।
कोसी भरने की पारंपरिक विधि Chhath Kosi Puja
पूजा के लिए सबसे पहले एक सूप या टोकरी सजाई जाती है। उसके चारों ओर 5 या 7 गन्ने खड़े करके छतरीनुमा संरचना बनाई जाती है जो पंचतत्वों (जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश) का प्रतीक है। टोकरी के भीतर मिट्टी के हाथी पर सिंदूर लगाया जाता है और उसके ऊपर बना घड़ा रहता है। इस घड़े में ठेकुआ, फल, मूली, अदरक आदि सूप में लगने वाला प्रसाद से भरा जाता है। घड़े व हाथी के उपर 12 दिये बने होते हैं। जिसमें घी और बत्ती डाल जलाया जाता है। जो बारह मास और चौबीस घड़ी का प्रतीक मानी जाती है।
महिलाएं छठ गीतों की मधुर ध्वनि में कोसी के चारों ओर परिक्रमा करती हैं और छठी मैया से परिवार के मंगल की कामना करती हैं।कोसी का घेरा परिवारिक एकता और सुरक्षा कवच का प्रतीक है, जबकि गन्नों से बनी छतरी छठी मैया की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाता है। यह पूजा स्त्रियों की उस आस्था को दर्शाती है, जो वे अपने परिवार की सुख-शांति और संतान की दीर्घायु के लिए करती हैं।

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