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    Know your District : 21 फरवरी 1991, लालू प्रसाद यादव ने क्‍यों चुना था यह खास दिन, इस तरह बना बिहार का यह जिला

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 31 Jul 2022 09:32 AM (IST)

    Know your District रामायण काल से जुड़ा है जमुई का इतिहास। 3098 वर्ग किलोमीटर है जिले का क्षेत्रफल। 21 फरवरी 1991 को जमुई को मिला जिला का दर्जा। 19 लाख 88 हजार है जिले की कुल जनसंख्या। बिहार का 40 वां संसदीय क्षेत्र है जमुई।

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    Know your District : जमुई जिले के खैरा प्रखड के क्षत्रिय कुंडग्राम स्थित महावीर मंदिर।

    डा. बिभूति भूषण, जमुई। Know your District : चारों ओर से पहाड़ों और जंगलों से घिरे नदियों के कल-कल करती हुई धार के बीच स्थित जमुई जिला का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है। आज से 31 वर्ष पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने कार्यकाल में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री स्वर्गीय नरेंद्र सिंह के अथक प्रयास से जमुई को 21 फरवरी 1991 को जिला का दर्जा दिया था। हालांकि 21 फरवरी पूर्व कृषि स्वास्थ्य मंत्री नरेंद्र सिंह के पिता पूर्व मंत्री स्व. श्री कृष्ण सिंह की जयंती भी है। इस लिहाज से जिला का स्थापना दिवस यहां के लोगों के लिए अपना एक अलग महत्व रखता है। जिला बनने से पूर्व जमुई अनुमंडल मुंगेर जिला का अंग था और यह 140 वर्ष पुराना अनुमंडल है। इसका शृंगार प्रकृति ने बेहद ही खूबसूरत तरीके से किया है और इसके चारों ओर घना जंगल, खनिज संपदा समेत विभिन्न प्रकार का प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह अपना एक ऐतिहासिक महत्व रखता है। जिले के चकाई प्रखंड में स्थित महावीर वाटिका, बटिया घाटी,बाबा झुमराज मंदिर, नारोदह झरना, सिमुलतला का घना जंगल और सिमुलतला आवासीय विद्यालय के साथ-साथ बंगाली परिवार की सैकड़ों कोठी खूबसूरती में चार चांद लगा रही है।

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    सिमुलतला का मौसम अन्य क्षेत्र की अपेक्षा बहुत ही खुशनुमा रहता है, जिसके कारण सिमुलतला को मिनी शिमला के नाम से भी जाना जाता है। यहां बनने वाला छेनामुरका मिठाई पूरे बिहार में भी प्रसिद्ध है। गिद्धौर राज का ऐतिहासिक किला, त्रिपुर सुंदरी मंदिर, मिंटो टावर, कुकुरझप डैम, मलयपुर का भव्य काली मंदिर, जमुई जिला की सीमा पर स्थित भीमबांध वन्यजीव अभयारण्य, सदर प्रखंड के काकन में जैन धर्म के नौवे तीर्थंकर भगवान सुबुद्धिनाथ का मंदिर, पत्नेश्वर मंदिर, खैरा प्रखंड स्थित गरही डैम, गिधेश्वर शिव मंदिर, कुंडघाट जलाशय, क्षत्रियाकुंड ग्राउंड स्थित भगवान महावीर का मंदिर, बाबा धनेश्वर मंदिर, मा नेतुला मंदिर और सोनो प्रखंड स्थित बाबा लक्ष्मीनारायण मंदिर पर्यटन और ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां अलग-अलग प्रखंडों में किउल, बरनार, हरोहर, अजय, आंजन, पतरो और सुखनर नदी बहती है। मुख्य रूप से जिले के अधिकांश क्षेत्रों में गेहूं और धान की खेती होती है। इस जिले की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए यहां पर्याप्त संख्या में उद्योग लगाने की जरूरत है। ताकि यहां के युवाओं और अन्य लोगों को भी रोजगार मिल सके। क्योंकि रोजगार नहीं मिलने के कारण यहां के युवा वर्तमान समय में दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को विवश हैं।

    (जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड मुख्यालय स्थित मिंटो टावर)

    महावीर इको पार्क, चकाई : जिला मुख्यालय से 77 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महावीर इको पार्क में राज्य सरकार के निर्देशानुसार सभी प्रकार के आयुर्वेदिक पेड़ लगाए गए हैं। इसके अलावा यहां पर पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखकर वोटिंग की भी व्यवस्था की गई है। कैफेटेरिया भी बनाया गया है और कैंटीन की भी व्यवस्था की गई है। साथ ही पर्यटकों के ठहरने के लिए डाकबंगला का भी निर्माण कराया जा रहा है और बच्चों के मनोरंजन के लिए भी समुचित व्यवस्था की गई है।

    बाबा झुमराज मंदिर बटिया (सोनो) : बाबा झुमराज का मंदिर बटिया में घने जंगलों के बीच में जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान शिव के तांत्रिक स्वरूप की पूजा की जाती है। अपनी मन्नत पूरी होने के पश्चात श्रद्धालुओं द्वारा प्रत्येक सोमवार,बुधवार और शुक्रवार को बकरा की बलि दी जाती है। इसके अलावा यहां इस दिन मेला भी लगता है।

    लट्टू पहाड़ सिमुलतला (झाझा) : लड्डू पहाड़ झाझा प्रखंड के सिमुलतला में झाझा रेलवे स्टेशन से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।यहां पर ठंडा पानी का झरना भी हर हमेशा बहता रहता है। सिमुलतला चारों ओर से जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। इस पहाड़ पर लोग पिकनिक मनाने के लिए हर हमेशा एकत्रित होते हैं।

    (जमुई जिले का गिद्धौर का प्राचीन किला)

    गिद्धौर राज का ऐतिहासिक किला : गिद्धौर राज का ऐतिहासिक किला यहां सबसे प्राचीन धरोहर के रूप में विख्यात है। गिद्धौर राज्य में चंदेल राजवंश के 22 राजाओं ने 1228 से लेकर 1938 ईस्वी तक शासन किया था। इस राज्य की सीमा चकाई प्रखंड से लेकर सिकंदरा प्रखंड तक फैली हुई थी। यहां पर मिंटो टावर मौजूद है, जिसमें घड़ी लगी हुई है। जिसके घंटा की आवाज लोगों को समय बताने का काम करती है इसके अलावा यहां प्राचीन त्रिपुर सुंदरी मंदिर भी मौजूद है।

    मलयपुर का काली मंदिर : यह काली मंदिर जमुई रेलवे स्टेशन से महज 100 फीट की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर बहुत ही भव्य और आकर्षक है। इस मंदिर में मां काली की प्रतिमा के अलावा अन्य कई देवी-देवताओं की प्रतिमा है और यह मंदिर बहुत ही सुसज्जित तरीके से बना हुआ है। जिसके कारण स्थानीय लोगों के अलावा आसपास के अन्य जिले के लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

    भीमबांध वन जीव अभ्यारण : यह वन्यजीव अभयारण्य जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर जमुई मुंगेर जिला की सीमा पर स्थित है। यहां सालों भर गर्म पानी के झील में गर्म पानी निकलता रहता है। यहां मौजूद घना जंगल पहाड़ और अन्य प्राकृतिक छटा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।यह सालों भर पूरे बिहार, झारखंड बंगाल समेत अन्य राज्य के हिस्सों से पर्यटकों का आना लगा रहता है। यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए प्रशासन के द्वारा कई निर्माण कार्य कराए गए हैं। इस वन्य जीव अभ्यारण में कई जंगली जानवर भी पाए जाते हैं।

    भगवान सुबुद्धिनाथ का मंदिर : जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर की दूरी पर काकन ग्राम में जैन धर्म के नवम तीर्थंकर भगवान सोमनाथ का मंदिर है। यह भगवान सुबुद्धिनाथ का जन्म स्थान भी है और पूर्व में यहां जैन धर्मावलंबियों का आना जाना लगा रहता था।अभी भी भगवान महावीर की जयंती के समय यहां भव्य पूजा और श्रृंगार किया जाता है।

    (जमुई जिले के झाझा प्रखंड के सिमुलतला स्थित लट्टू पहाड़)

    गिद्धेश्वर मंदिर खैरा : यह मंदिर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि रामायण काल में इस मंदिर के समीप माता सीता को रावण के चंगुल से मुक्त कराने को लेकर रावण और गिद्धराज जटायु के बीच युद्ध हुआ था। इस मंदिर के समीप श्रावण मास और अन्य पर्व त्योहार के समय बहुत ही भव्य मेला लगता है और श्रद्धालुओं द्वारा भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। इस मंदिर से 10 किलोमीटर की दूरी पर गरही डैम स्थित है। जो पर्यटकों के लिए अपनी प्राकृतिक छटा के कारण बहुत बड़ा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

    मां नेतुला मंदिर : जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर सिकंदरा प्रखण्ड के कुमार गांव स्थित मां नेतुला मंदिर प्राचीन काल से ही हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र रहा है।शक्तिपीठ के रूप विराजमान मां नेतुला के दरबार में हजारों वर्षो पूर्व से ही यहां नेत्र व पुत्र प्राप्ति के लिए अरदास लगाने आते हैं। जैन धर्म की पुस्तक कल्पसूत्र, आचारंग सूत्र, द्वितीय सूत्र श्लोक संख्या 770 के अनुसार जैन धर्म के 24 वें र्तीथकर भगवान महावीर ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए घर का त्याग किया था तो कुण्डलपुर से निकल कर उन्होंने पहला रात्रि विश्राम कुमार गांव में ही मां नेतुला मंदिर के समीप एक वट वृक्ष के नीचे किया था।

    लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व घटी इस घटना और कल्पसूत्र में वर्णित मां नेतुला की पूजा व बली प्रथा का वर्णन इस मंदिर के पौराणिक काल के होने की पुष्टि करती है। देवी कुमारी के रूप में अवस्थित हुई और उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम कुमार हो गया। मार्कण्डे पुराण के अंतर्गत सात सौ श्लोक आदि शक्ति के संबंध में वर्णित है।बताया जाता है कि दुर्गा सप्तशती के अध्याय अष्टम के श्लोक संख्या 49, अध्याय नवम् के श्लोक संख्या 38, एकादश अध्याय के श्लोक संख्या 15 तथा देवी कवच के श्लोक संख्या 10 में भी देवी कुमारी का उल्लेख मिलता है।इस प्रकार हजारों वर्षो की गौरव गाथा को अपने में समेटे मां नुतुला आज भी भक्तों की मनोकामना पूरी कर रही है।क्षेत्र में सिद्धपीठ के रूप में विख्यात मां नेतुला मंदिर में सती के पीठ की पूजा होती है।

    नवरात्र के दौरान इस मंदिर की पूजा का विशेष महत्व होता है।धार्मिक पत्रिका कल्याण के वर्ष 1954 के तीर्थांक विशेषांक में नेतुला मंदिर में मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चन्द्रघंटा के विराजने व इनकी पूजा का वर्णन किया गया था, पूर्व में माता का मंदिर काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। जिसका गिद्धौर के चंदेल वंश के राजा रावणोश्वर सिंह ने जीर्णोद्धार किया था।वहीं सन् 2000 में काशी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने नये मंदिर की आधार शिला रखी थी। जिस पर आज भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। शारदीय नवरात्र के दौरान महा अष्टमी की रात्रि में माता के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और हजारों की संख्या में बकरे की बली दी जाती है। जिसका प्रसाद बनाकर श्मशान को दिया जाता है। इस प्रकार मां को श्मशान देवी भी कहा जाता है। पाठे की बलि के साथ साथ भैंसा बलि भी दी जाती है।

    भगवान महावीर मंदिर, क्षत्रिय कुंडग्राम

    जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर खैरा प्रखंड के हरखार पंचायत के रजला ग्राम के समीप क्षत्रिय कुंडग्राम महावीर की जन्मभूमि की मान्यता सदियो से निर्विवाद रूप से कुण्डग्राम लछुआड़ के पक्ष में था।इस बात के अनेक प्रमाण मिलते हैं कि चौदवीं सदी से अठारवीं सदी तक एक से एक जैन मुनि इस भूमि के दर्शन पूजन के लिए आते रहे हैं, जिसका वर्णन उन्होंने अपने अपने यात्रा वृतान्तों में भी किया है।

    (जमुई जिले के चकाई प्रखंड में स्थित महावीर वाटिका)

    इतिहास के विद्वान डा.योगेन्द्र मिश्र ने एक पुस्तक लिखी "एन अर्ली हिस्ट्री ऑफ वैशाली" और सबकुछ बदल गया।सारे ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए वैशाली को जन्मभूमि के रूप में मान्यता मिल गई, जो भगवान महावीर के गौरवमयी इतिहास के साथ भद्दा मजाक था। इसका समय समय पर खंडन भी हुआ है। इतिहासकारो के मुताबिक वैशाली को भगवान महावीर के ननिहाल के रूप में देखा जाता था।अपने विहार के सतत् क्रम में 42 वर्ष की आयु में भगवान महावीर के वैशाली पधारने का जिक्र आता है। ज्ञातव्य हो कि विवाहोपरांत राजकुमारियां अपने मायके नहीं जाती थी, ऐसे में फिर भगवान महावीर का जन्म ननिहाल वैशाली में कैसे हुआ। दीक्षा के बाद 12 वर्षो तक भगवान महावीर घूम घूमकर जिन गांवों में विहार किया, वह सभी के सभी जमुई जिले के अंतर्गत का गांव है।भगवान महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय कुण्डनगर के राजा थे। जिनका राज प्रासाद भग्न अवस्था आज भी जंगल में विद्यमान है, जिसकी ईंटे 600 वर्ष ईसा पूर्व की है। तलहटी में भगवान महावीर का पन्द्रह सौ वर्ष पुराना च्यवन और दीक्षा कल्याणक मंदिर था, जिसे कुंडघाट सिंचाई योजना के लिए तोड़ दिया गया।

    (जमुई जिले के खैरा प्रखड के क्षत्रिय कुंडग्राम स्थित महावीर मंदिर)

    बाद में जिन शासन सेवा समिति के द्वारा तलहटी से सटे ही च्यवन व दीक्षा मंदिर का निर्माण कराया गया। जैन इतिहासकार बताते हैं कि भगवान महावीर का जन्मोत्सव प्रकरण दीक्षा के बाद उनकी यात्राएं और यात्रा क्रम में पड़ने वाले गांव अभी भी लछुआड़ के आसपास हैं। भगवान महावीर नागवंशी क्षत्रीय थे जो प्रायः जंगल के आसपास रहना पसंद करते थे। कहा कि वैशाली में कोई पर्वत श्रेणियां नहीं है जबकि लछुआड़ में कई पर्वत श्रेणियां है।इस सम्बंध में जैन आचार्य नयबर्द्धन सूरी जी महाराज ने कहा कि जैन आगम के आधार पर इस बात के अनेक प्रमाण मिलते है कि महावीर स्वामी का जन्म कुण्डग्राम लच्छवाड़ (लछुआड़) में ही हुआ था। भारत वर्षीय जिन शासन सेवा समिति भगवान महावीर मंदिर निर्माणकर्ता प्रदीप भाई, कौशल भाई, भगवान महावीर हॉस्पिटल संयोजक महेन्द्र डागा कोलकाता जैन श्रद्धालुओं ने एक स्वर से कहा कोई कुछ कहे जैन समाज एक स्वर से जमुई स्थित कुण्डग्राम को ही भगवान महावीर की जन्मभूमि मानता है।