Know your District : बिहार के इस जिले में 68 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं; बंगाल, नेपाल और बंगलादेश सटा है सीमा
Know your District 32 साल पुराना है बिहार का किशनगंज जिला। इस जिला मुस्लिम बहुल्य है। 68 प्रतिशत आबादी है यहां मुसलमानों की है। इस जिले की पहचान चाय उत्पादन में राष्ट्रीय मानचित्र है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा दृष्टिकोण से जिला है काफी संवेदनशील।
जागरण संवाददाता, किशनगंज। Know your District : किशनगंज बिहार का वह सीमावर्ती जिला है जो बंगाल, नेपाल और बंगलादेश की सीमा से सटा है। बिहार की राजधानी पटना से 425 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित किशनगंज पहले कृष्णाकुंज के नाम से जाना जाता था। बंगाल, नेपाल और बंगलादेश की सीमा से सटा किशनगंज पहले पूर्णिया जिले का अनुमंडल था। किशनगंज पहले पूर्णिया जिले का अनुमंडल था। बिहार सरकार ने 14 जनवरी 1990 को इसे पूर्ण रूप से जिला घोषित किया गया। सिर्फ एक अनुमंडल और सात प्रखंड वाले इस जिला को आर्थिक, साक्षरता सहित तमाम मामले में इसे पिछड़ा जिला माना जाता है। 32 साल पुराने इस जिला में मुस्लिम की आबादी अधिक है। यहां 68 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। इनमें हिंदू भी हैं जिनमें से अधिकांश सूरजपुरियों (राजबंशी) हैं। किशनगंज के अधिकांश निवासी सूरजपुरी भाषा बोलते हैं।
किशनगंज जिले के पश्चिम में अररिया जिला, दक्षिण-पश्चिम में पूर्णिया जिला, पूर्व में पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिला, और उत्तर में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिला और नेपाल से घिरा हुआ है। पश्चिम बंगाल की एक संकीर्ण पट्टी, लगभग 20 किमी चौड़ी बांग्लादेश से अलग करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज जिले की आबादी 169,948 है। जिले में जनसंख्या घनत्व 898 प्रति व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर (2,330 / वर्ग मील) है। 2001-2011 की दशक में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर 30.44 प्रतिशत थी। किशनगंज में प्रत्येक 1,000 के लिए 946 महिलाओं का लिंग अनुपात पुरुष और 57.04 प्रतिशत की साक्षरता दर है।
पर्यटन की दृष्टि से यहां पर पर्यटक विश्व प्रसिद्ध खगड़ा मेला, शहीद असफउल्लाह खान स्टेडियम, चुर्ली किला, श्री हरगौरी मंदिर जैसे जगह नामचीन जगह हैं। बिहार के अंतिम छोड़ पर बसे इस जिला से गंगटोक, कलिंगपोंग, दाजर्लिंग जैसे पर्यटन स्थल भी कुछ ही दूरी पर स्थित है।
खगड़ा मेला : इस मेला की शुरुआत स्थानीय निवासी सैयद अट्टा हुसैन ने 1950 में की थी। हरेक साल जनवरी-फरवरी में लगने वाले इस मेले की शुरुआत एक कृषि प्रदर्शनी के तौर पर किया था। लेकिन आगे चल कर यह प्रदर्शनी खगड़ा मेला में तब्दील हो गया। लगातार 58 वर्षो से लग रहे इस मेले को किसी समय में भारत का सबसे बड़ा दूसरा मेला माना जाता था और पूरे देश से व्यापारी इस मेले में भाग लेने आते थे। दैनिक उपभोग की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध इस मेले में हजारों की संख्या में लोग खरीददारी करने यहां आते हैं।
शहीद असफउल्लाह खान स्टेडियम : शहरी क्षेत्र के खगड़ा में स्थित यह स्टेडियम रेलवे स्टेशन से दो किमी की दूरी पर है। यहां पर विभिन्न प्रकार के खेल जैसे क्रिकेट, फुटबाल, वालीबाल, कबड्डी का राज्य स्तरीय टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही अनेक सांस्कृतिक गतिविधि के अलावा यहां पर हरेक वर्ष स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस के दिन झंडा फहराया जाता है। इसके नजदीक ही एक इन्डोर स्टेडियम का निर्माण किया गया है जहां पर स्पोट्स आथोरिटी आफ इंडिया (साईं सेंटर) का कार्यालय है।
चुर्ली स्टेट : ठाकुरगंज इलाके में अंग्रेजी हुकूमत के समय किशनगंज की शान रहे इस रियासत का नाम लेने वाला भी अब कोई नहीं रहा। कुंदन लाल सिंह इस रियासत के जमींदार हुआ करते थे। उनकी जमींदारी बंगाल से लेकर नेपाल तक फैली हुई थी। उनकी हवेली को देखने दूर-दूर से लोग आया करते थे। लेकिन आज यह हवेली खंडहर में तब्दील हो चुकी है। आज भी पर्यटक इस खंडरह को देखने यहां आते हैं।
हरगौरी मंदिर : ठाकुरगंज प्रखंड स्थित इस मंदिर को 100 साल पुराना माना जाता है। इसका निर्माण टैगोर रियासत के जमींदार द्वारा किया गया था। इस मंदिर के निर्माण के संबंध में एक कथा प्रचलित है कि यहां के जमींदार को एक ही पत्थर पर शिव और पार्वती की निर्मित मूर्ति मिली थी। वह उसे बनारस ले गया लेकिन रात को ही जमींदार के सपने में भगवान शिव ने कहा कि इस प्रतिमा को वही स्थापित किया जाए जहां पर वह मिली है। दूसरे दिन ही वापस आ गए और बड़ी धूमधाम से इस मूर्ति की स्थापना की। शिवरात्रि के दिन इस मंदिर में बिहार के अलावा बंगाल, नेपाल सहित दूर-दूर से लोग शिवलिंग पर जल चढ़ाने आते हैं।
आवागमन के लिए भी है सुविधाएं : जिला में आवागमन के लिए रेलवे मार्ग सबसे बेहतर है। एनएफ रेलवे के अधीन यह रेलवे स्टेशन है यहां से लंबी दूरी की कई ट्रेनें चलती है। यह हावड़ा-दिल्ली रेल लाईन द्वारा जुड़ा हुआ है। लगभग हर जगह जाने के लिए किशनगंज रेलवे स्टेशन से ट्रेनें चलती है। इसके अलावा अब सड़क मार्ग में भी जिला का आवागमन बेहतर होते जा रहा है। यहां से प्रतिदिन राजधानी पटना के लिए बसें खुलती है तथा बंगाल, सिक्किम के लिए भी यहां से बसें उपलब्ध है। एनएच 31 इस्ट वेस्ट कारीड़ोर के अलावा अब भारत नेपाल के बीच बन रहे बार्डर सड़क का निर्माण हो रहा है। वहीं सिलीगुड़ी से गोरखपुर के बीच बनने वाले एक्सप्रेस वे भी किशनगंज से गुजरेगी। वायु मार्ग में जिला से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा बागडोगरा है जो यहां से 90 किमी की दूरी पर स्थित है।
सुरक्षा का लिहाज से माना जाता है महत्वपूर्ण : सीमावर्ती क्षेत्र से सटे यह जिला सुरक्षा के लिहाज से यह जिला काफी संवेदनशील माना जाता है। सुरक्षा को लेकर यहां बिहार के सुरक्षा एजेंसी के अलावा केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी की नजर रहती है। घुसपैठ सहित तस्करी को लेकर भी यह जिला काफी मुफीद माना जाता है। अक्सर घुसपैठ, तस्करी और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चौकसी बरती जाती है। बांग्लादेश सीमा सुरक्षा को लेकर किशनगंज में बीएसएफ सेक्टर मुख्यालय है। जिला में बीएसएफ और एसएसबी के कई बटालियन रहते हैं जो सीमा सुरक्षा में लगे रहते हैं।
चार विधानसभा सीट : किशनगंज संसदीय क्षेत्र में चार विधानसभा सीटें है। किशनगंज विधानसभा, कोचाधामन विधानसभा, बहादुरगंज विधानसभा और ठाकुरगंज विधानसभा सीट है। जिला में सात प्रखंड क्षेत्र है जिसमें किशनगंज प्रखंड, कोचाधामन प्रखंड, पोठिया प्रखंड, बहादुरगंज प्रखंड़, ठाकुरगंज प्रखंड, टेढ़ागाछ प्रखंड और दिघलबैंक प्रखंड है। इन प्रखंडों में 224 पंचायत है। जिला का शहरी क्षेत्र नगर परिषद है और ठाकुरगंज, बहादुरगंज के बाद अब पौआखाली नगर पंचायत बनाया गया है।
मुख्य बाजार है सिलीगुड़ी : जिला में रहने वाले लोगों के लिए मुख्य बाजार 100 किमी दूरी पर पश्चिम बंगाल स्थित सिलीगुड़ी है। अधिकांश लोग किसी भी खरीदारी के लिए जिला को छोड़कर सिलीगुड़ी जाते हैं। शादी या किसी बड़े आयोजन में अधिकांश मार्केटिंग सिलीगुड़ी में करने लोग जाते हैं।
चाय उत्पादन में राष्ट्रीय स्तर पर है किशनगंज की पहचान : असम, गुवहाटी, दार्जलिंग इलाका से कम दूरी पर स्थित किशनगंज जिला की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर चाय उत्पादन जिला के रूप में है। जिला में 25 हजार हेक्टेयर से अधिक भूभाग पर चाय की खेती की जाती है। इसमें ठाकुरगंज और पोठिया प्रखंड मूल रूप से है। पिछले दिनों बिहार की चाय नाम से सरकार ने किशनगंज में उत्पादित चाय को ब्रांड दिया है। धीरे-धीरे चाय उत्पादन में जिला अग्रणी होते जा रहा है। चाय पत्ति से चाय उत्पादन की भी जिला में चार फैक्ट्रियां है।
बाढ़ है जिले की मुख्य समस्या : जिला की मुख्य समस्या बाढ़ और कटाव है। जिला से गुजरने वाली महानंदा, कनकई, चेंगा, रतुआ जैसी नदियों में हर साल बाढ़ आती है। बाढ़ आने के साथ नदी किनारे बसे लगभग सभी प्रखंड के कई गांव इससे प्रभावित होता है। मानसून प्रवेश के साथ तीन माह के बाढ़ में सैकड़ों घर नदी कटाव के कारण नदी के गर्भ में समा जाती है। वहीं हजारों एकड़ खेती योग्य जमीन नदी कटाव में विलीन हो जाता है।
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