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    सोना उगलेंगे बिहार के खेत: किसानों की आय होगी दोगुनी, जानिए क्‍या है बायोचार जिससे मिट्टी बनेगी उपजाऊ

    By Abhishek KumarEdited By:
    Updated: Tue, 11 Jan 2022 02:44 PM (IST)

    बिहार के खेत अब सोना उगलेंगे इससे किसानों की आय दोगुनी होगी। बिहार कृष‍ि विवि की ओर से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए बायोचार तैयार किया गया है। इससे खेतों में न केवल नाइट्रोजन बढ़ेगी बल्कि इससे...

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    बिहार कृषि विवि में तैयार किया जा रहा बायोचार।

    जागरण संवाददाता, भागलपुर। जिले की मिट्टी में लगातार घट रही नाइट्रोजन की मात्रा और बढ़ रहे अम्लीय और क्षारीय तत्व को अब बायोचार संतुलित करेगा। किसानों की इस चुनौती को कम करने के लिए राज्य सरकार की कृषि विभाग ने एक बड़ी पहल शुरू की है।

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    धान का पुआल, जो किसानों के लिए सिरदर्द बन रहा था। विवश होकर किसान इसे खेतों में जला देते थे। इसके कई दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। अब उसी पुआल को सरकार खरीदकर, उससे बायोचार बनाने का काम कर रही है। यह बायोचार किसानों की खेतों में नाइट्रोजन को बढ़ाने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों को बढ़ाने का भी काम करेगा।

    इसके प्रयोग से जैविक और टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिलेगा। उत्पाद भी गुणवत्तापूर्ण होंगे। इससे पुआल जलाने की समस्या से भी किसानों को निजात मिल जाएगी। पहले किसान अपने खेतों में पुआल जला दिया करते थे। इससे पर्यावरण भी प्रदूषित होता था और खेतों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध सूक्ष्म पोषक तत्व बर्बाद हो जाते थे। खेतों की मिट्टी खराब हो जाने के बाद अधिक उपज लेने के चक्कर में किसान अपनी फसलों में बेतहाशा रसायनिक खादों का प्रयोग करते हैं, जिससे खेतों की मिट्टी अम्लीय और क्षारीय होते जा रही है।

    बायोचार यूनिट बनकर तैयार

    राज्य के चयनित 11 कृषि विज्ञान केंद्रों में बायोचार यूनिट बनकर तैयार हो गया है। यहां बायोचार का उत्पादन भी चालू हो गया है। इसके अलावा पुआल प्रबंधन के लिए किसानों से उनका पुआल दो रुपये प्रति किलो खरीदारी कर उसका स्ट्रा बेलर मशीन से बंडल बनाया जा रहा है। उक्त बंडल काम्फेड को उपलब्ध करा दी जा रही है। फिर कंफेड उसे पशुचारा में तब्दील कर किसानों को तीन किलो की दर से उपलब्ध करा रहा है।

    क्या है बायोचार

    पुआल को पायरोलिसिस विधि से ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में एक विशेष प्रकार की भटटी में जलाकर तैयार किया जाता है। 12 क्विंटल पुआल या अवशेष जलाने से आठ क्विंटल भुरभुरा या ठोस कार्बन प्राप्त होता है, जिसे बायोचार करते हैं। खेतों में इसका बेहतर उपयोग के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रति एकड़ 20 क्विंटल बायोचार अनुशंसित किया है। बायोचार में 77 फीसद कार्बन, 0.4 6 फीसद नाइट्रोजन, 2.70 फीसद फास्फोरस और 3.90 फीसद पोटास की मात्रा पाई जाती है। यह मिट्टी में हजारों वर्षों तक बना रहता है।

    बायोचार का निर्माण स्थल

    कृषि विज्ञान केंद्र विक्रमगंज, रोहतास

    कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत, नालंदा

    कृषि विज्ञान केंद्र बाढ़, पटना

    कृषि विज्ञान केंद्र आरा, भोजपुर

    कृषि विज्ञान केंद्र बक्सर

    कृषि विज्ञान केंद्र सीरिष, औरंगाबाद

    कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर, गया

    कृषि विज्ञान केंद्र लोदीपुर अरवल

    कृषि विज्ञान केंद्र अघौरा, कैमूर

    कृषि विज्ञान केंद्र विजयनगर, बांका

    मिट्टी में रहना चाहिए

    आयरण : 4.5 से 9 पीपीएम

    बोरोन : 0.5 से 1 पीपीएम

    जिंक : 0.78 से 1.2 पीपीएम

    कापर : 0.6 से 1.2 पीपीएम

    मैगनीज : 3.5 से 7 पीपीएम

    सल्फर : 10 से 35 पीपीएम

    आर्गेनिक कार्बन : 0.5 से 0.75 पीपीएम

    पीएच : 6.5 से 7 पीपीएम

    पोटाशियम : 120 से 280 केजी पर हेक्टेयर

    फास्फोरस : 10 से 25 केजी पर हेक्टेयर

    नाइट्रोजन : 280 केजी से 560 केजी पर हेक्टेयर

    राज्य के 11 कृषि विज्ञान केंद्रों में बायोचार बनाने का काम प्रगति पर है। किसानों को फसल अवशेष सहित अन्य को जलाने के बजाय उसका बेहतर प्रबंधन करने की दिशा में जागरूक किया जा रहा है। बायोचार के उपयोग से राज्य के खेतों की मिट्टी मजबूत होगी। किसानों को टिकाऊ खेती और गुणवत्तापूर्ण उत्पाद का लाभ मिलेगा।

    डा. अरुण कुमार, कुलपति बीएयू, सबौर।