Kishore Kumar birth anniversary : भागलपुर में दादा मुनि के साथ आम खाने जाते थे किशोर कुमार
Kishore Kumar birth anniversary बॉलीवुड गायक किशोर कुमार का भागलपुर से गहरा संबंध था। वे यहां के आम के शौकीन थे। उनका ननिहाल भागलपुर में है।
भागलपुर [विकास पांडेय]। Kishore Kumar birth anniversary : हिंदी सिनेमा जगत के सौ वर्षो के इतिहास में दशकों तक छाए रहने वाले प्रख्यात पाश्र्व गायक व अभिनय से फिल्म निर्माण तक में योगदान देकर हिंदी चलचित्र का मील का पत्थर माने जाने वाले किशोर कुमार का भागलपुर से गहरा रिश्ता था।
सिने जगत की इस बेजोड़ हस्ती का ननिहाल यहीं था। शहर के आदमपुर स्थित राज परिवार की राजबाटी में उनके नाना सतीश चंद्र बनर्जी रहते थे। अशोक कुमार के चचेरे साले सोमनाथ बनर्जी के अनुसार गर्मी की छुट्टियों में किशोर कुमार बड़े भाई अशोक कुमार के साथ अक्सर मामा शानू बनर्जी के घर भागलपुर आते थे और मीठे आम खाने सुल्तानगंज स्थित बगीचा जाया करते थे। इस दौरान वे ट्रेन से सुल्तानगंज जाने के दौरान राह में आने वाले सभी स्टेशनों को याद करते जाते थे।
थे जिंदादिल इंसान
किशोर कुमार की चचेरी भतीजी तथा तिलकामांझी भागलपुर विवि की पूर्व परीक्षा नियंत्रक व स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रोफेसर डॉ. रत्ना मुखर्जी कहती हैं कि चाचा जी प्रख्यात पाश्र्व गायक व बहुमुखी प्रतिभावान कलाकार होने के साथ जिंदादिल इंसान भी थे। उनकी चलती का नाम गाड़ी फिल्म की बहुचर्चित नायिका मधुबाला के साथ जब उनकी नजदिकियां बढऩे लगी थीं तो उन्होंने यह जानते हुए भी उनका हाथ थाम लिया था कि उनके दिल में छिद्र है और वे अधिक दिनों तक जीवित नहीं बचेंगी। विवाह के बाद वे उन्हें अविलंब अमेरिका ले गए और ऑपरेशन कराकर उन्हें ठीक कराया था।
जादुई आवाज को बचाने को चबाते थे पान की पत्ती
डॉ. मुखर्जी कहती हैं अपने पेशे से प्रतिबद्ध किशोर कुमार कोई नशा पान नहीं करते थे। लेकिन अपनी जादुई आवाज को बचाए रखने के लिए रोज खाना खाने के बाद खालिस पान की एक पत्ती अवश्य चबाया करते थे। वे कहते थे कि पान की पत्ती चबाना गले के लिए फायदेमंद होता है।
आखिरी बार 1970 में किशोर आए थे ननिहाल भागलपुर
किशोर कुमार का ननिहाल भागलपुर ही था। वे अक्सर अपने ननिहाल आते थे। अंतिम बार वे फैन्स एसोसिएशन की फरमाइश पर स्थानीय सैंडिस कंपाउंड में आयोजित संगीत समारोह में भाग लेने यहां आए थे। उसमें अपार भीड़ उमड़ी थी। सभी लोग उनकी एक झलक पाने और मिलने को बेताब थे। प्रबंधकों द्वारा भीड़ को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में समारोह जैसे-तैसे पूरा किया गया था और चाचा जी को रातोंरात स्थानीय सर्किट हाउस से बागडोगरा एअरपोर्ट पहुंचाया गया था। वहां से वे मुंबई चले गए थे।
चलती का नाम गाड़ी थी असली
बड़े चाचा अशोक कुमार निर्मित फिल्म परिणीता में नन्हीं बालिका की भूमिका करने वाली डॉ. रत्ना मुखर्जी अपनी याददाश्त कुरेदती हुई बताती हैं कि किशोर चाचा जी की फिल्म चलती का नाम गाड़ी में प्रयुक्त गाड़ी उनके पिताजी कुंजलाल गांगुली की ही थी। वह गाड़ी अब भी चाचाजी के जुहू स्थित घर में सुरक्षित है।
भागलपुर के सिल्क कुर्ता के थे शौकीन
रत्ना मुखर्जी बताती हैं कि किशोर चार्चा लूंगी व रेशमी कुर्ता पहनने के शौकीन थे। उनके लिए चेन्नई से लूंगी व भागलपुर से रेशमी कुर्ता के लिए मलवरी का कपड़ा जाता था। इनकी मां मेरी मुखर्जी उनके लिए मलवरी रेशम के कपड़े लेकर जाती थीं।
काम के थे पाबंद
जीवन के अंतिम दिन तक वे अपने काम के प्रति जिम्मेदार बने रहे। 13 अक्टूबर को उन्होंने आशा जी के साथ पांच गीतों की रिकॉर्डिंग की थी। आशा जी ने उनकी नासाज तबियत को देखते उनसे कहा भी था कि जल्दी क्या है, शेष गाने अगले दिन रिकॉर्ड कर लेंगे। लेकिन किशोर चाचा बोले थे कि कल को किसने देखा है, काम पूरा कर लेना ही अच्छा है। उसी दिन उनके घर में हाथी दांत का पलंग आया था। वे उस पलंग पर बैठकर टीवी देख रहे थे। उसी दौरान सीवियर हार्ट अटैक हुआ और वे हमें सदा के लिए छोड़ कर चले गए। डॉ. रत्ना मुखर्जी कहती हैं यूं तो चाचाजी जैसा गाने की कई कोशिशें कई गायक करते हैं , लेकिन उनके जैसा पाश्र्वगायक न कभी हुआ है और न कभी होगा। गायन के दौरान उच्च व निम्न लय को साधने की जैसी सिद्धि उन्हें हासिल थी वैसा अन्य में मिलना मुश्किल है। कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा... गीत में इसे बखूबी समझा जा सकता है।