जलकुंभी से तैयार होगी जैविक खाद
भागलपुर और कोसी क्षेत्र में नदियों किनारे, तालाबों और जल जमाव वाले क्षेत्रों में फैली जलकुंभी से अब जैविक खाद तैयार होगी।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]
भागलपुर और कोसी क्षेत्र में नदियों किनारे, तालाबों और जल जमाव वाले क्षेत्रों में फैली जलकुंभी से अब जैविक खाद तैयार होगी। बीएन मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अवध किशोर राय ने भागलपुर में शोध के दौरान इसमें सफलता पाई है। उनका कहना है कि भागलपुर और कोसी क्षेत्र में नदियों किनारे, तालाबों और जल जमाव वाले क्षेत्रों में मीलों तक जलकुंभी फैली हुई है। जिससे काफी अधिक मात्रा में जैविक खाद तैयार किया जा सकता है। इस शोध से किसानों को तो कम कीमत में खाद मिलेगी ही खेतों की उर्वरा शक्ति भी बनी रहेगी।
प्रो. राय के शोध पर संज्ञान लेते हुए सहरसा नगर निगम ने जलकुंभी से जैविक खाद बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार करने का दिया आदेश है। दो-तीन दिनों में प्रस्ताव सौंप दिया जाएगा।
जलकुंभी जलवाष्पीकरण क्रिया पर डालता है असर
जलकुंभी ऑक्सीडिटेशन और वाष्पीकरण की क्रिया पर असर डालता है। यह वाष्पीकरण की प्रक्रिया 13 गुणा बढ़ा देता है। अपने विकास के लिए यह जल को अवशोषित कर लेता है। लिहाजा तालाब और नदियां समय पूर्व सूख जाती हैं। मछलियां और कछुए मर जाते हैं। पर जब जलकुंभी से बड़े पैमाने पर जैविक खाद तैयार होने लगेगी तो इसका फायदा नदियों, तालाबों और उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं को भी मिलेगा।
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बंगाल का आतंक
खूबसूरत फूलों और पत्तियों के आकार के कारण जलकुंभी को 1890 में ब्राजील से एक ब्रिटिश महिला ने लाकर बॉटनिकल गार्डेन में लगाया था। महारानी विक्टोरिया को जलकुंभी का नीला फूल पसंद था। इसका जिक्र वॉटनिकल गार्डेन पुस्तक में है। भारत में इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। यह पौधा रुके हुए जल में काफी तेजी से फैलता है और पानी से ऑक्सीजन को खींच लेता है। परिणाम स्वरूप मछलिया मर जाती हैं। यह एक बीजपत्री, सपुष्पक जलीय पौधा है। जल की सतह पर तैरने वाले इस पौधे की प्रत्येक पत्ती का वृन्त फूला हुआ एवं स्पंजी होता है। इसमें पर्वसन्धियों से झुंड में रेशेदार जड़े लगी रहती हैं। इसका तना खोखला और छिद्रदार होता है। इसके फूलों को मंजरी कहते हैं। यह मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का पौधा है। यह दुनिया के सबसे तेज बढ़ने वाले पौधों में से एक है। यह अपनी संख्या को दो सप्ताह में ही दोगुना करने की क्षमता रखता है। यह बहुत अधिक परिमाण में बीज उत्पन्न करता है। इसके बीजों में अंकुरण की क्षमता 30 वर्षो तक होती है।
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क्या है जलकुंभी
जलकुंभी पानी में तैरने वाला एक प्रकार का पौधा है। इसमें मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग कर हम जैविक खाद बना सकते हैं। यह फसल के लिए काफी लाभकारी है। जलकुंभी में नाइट्रोजन 2.5 फीसदी, फास्फोरस 0.5 फीसदी, पोटेसियम 5.5 फीसदी और कैल्शियम आक्साइड 3 फीसदी मौजूद रहती है। इसमें तकरीबन 42 फीसदी कार्बन होता है। इसकी सहायता से जलकुंभी का इस्तेमाल करने पर मिट्टी के भौतिक गुणों पर इसका बड़ा असर पड़ता है। नाइट्रोजन और पोटेशियम का अच्छा जरिया होने की वजह से आलू के लिए जलकुंभी का महत्व और भी ज्यादा हो जाता है।
कैसे बनता है खाद
जलकुंभी को जल से निकालकर दस एमएम और 25 एमएम के आकार में काट लें। जलकुंभी की मात्रा का 25 फीसद इसमें गोबर मिला लें। इसके बाद इसमें जल का छिड़काव करें। गर्मी के दिनों में पांच से सात दिन और ठंड में आठ से दस दिन इसे सड़ने के लिए छोड़ दें। दो दिन में इसे उलट-पलट करें। इससे वाष्पीकरण, सड़न, गलन तेजी से होता है। बीच-बीच में थर्मामीटर से तापमान की जांच करते रहें। तापमान 20 से 30 डिग्री के बीच होना चाहिए। इसके बाद इसे सीमेंट के पीट में डालकर केचुआ डालें और इसे पुआल से ढक दें, ताकि नमी बरकरार रहे। 40 से 50 फीसद नमी के लिए पुआल पर पानी का छिड़काव करते रहें। 40-45 दिनों में जैविक खाद तैयार हो जाएगा। इसे बालू चालने वाली चलनी से चाल लें। यह चाय की पत्ती की तरह दिखाई पड़ेगा।
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कोट :-
जलकुंभी हानिकारक पौधा है। यह जमे हुए पानी में तेजी से फैलता है। जहां फैलता है, वहां की मछलियां मर जाती हैं। वाटर लेवल घट जाता है। नुकसान से बचने के लिए इससे जैविक खाद तैयार किया जा सकता है।
- डॉ. अवध किशोर राय
कुलपति, बीएन मंडल विवि
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