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    भागलपुर की लेडी ई-रिक्शा चालक पिंकी के हौंसले को सलाम, बोली- बच्चों को बनाना है डाक्टर और इंजीनियर

    By Jagran NewsEdited By: Shivam Bajpai
    Updated: Sat, 19 Nov 2022 10:49 AM (IST)

    भागलपुर की लेडी रिक्शा चालक पिंकी देवी की हौंसले बेहद मजबूत हैं। सब्जी बेचकर ई-रिक्शा खरीदने वाली पिंकी देवी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ...और पढ़ें

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    भागलपुर की लेडी ई-रिक्शा चालक पिंकी देवी।

    पंकज कुमार, बाथ (सुल्तानगंज) : 'ये मत कहो खुदा से, मेरी मुश्किलें बड़ी है। इन मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है।' ई-रिक्शा पर बैठी एक सवारी ने इन पंक्तियों को उस समय गुनगुना दिया, जब उन्होंने इसका हैंडल एक महिला को संभाले देखा। ई-रिक्शा चालक महिला को देख लगभग सभी यात्री एक पल के लिए उसकी हिम्मत को सराहने लगते हैं। सुल्तानगंज प्रखंड अंतर्गत बाथ थाना क्षेत्र के नयागांव पंचायत स्थित उत्तर टोला ऊंचागांव निवासी मजदूर अमरजीत शर्मा की 30 वर्षीय पत्नी पिंकी देवी घर से ई-रिक्शा लेकर निकलती हैं और पूरे दिन मेहनत और इमानदारी के दम पर धन अर्जित करती हैं।

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    आत्मनिर्भर पिंकी महिलाओं के लिए प्रेरणा की श्रोत हैं। पिंकी ने बातचीत के क्रम में अपनी स्थिति साझा करते हुए दैनिक जागरण को बताया कि वो मुंगेर जिला के असरगंज थाना अंतर्गत ममई गांव की रहने वाली है। चार भाई-बहन में सबसे बड़ी है। वो पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती थी, लेकिन उसके पिता सुरेन शर्मा की आर्थिक स्थिति ठीक नही रहने के कारण आठवीं तक ही पढ़ाई कर सकी। वर्ष 2010 में उसकी शादी ऊंचागांव में सुबोध शर्मा के पुत्र अमरजीत से हो गई। यहां उसके पति के पास रहने के लिए अपनी जमीन भी नही है। उनके गोतिया ने रहने के लिए मौखिक रुप से कुछ जमीन दी है, जिसमें सास-ससुर सहित पति-बच्चों के साथ रहती है। पिंकी के चार बच्चे हैं। इनमें दो पुत्री 10 वर्ष की वर्षा और सात वर्ष की रिया व दो पुत्र पांच वर्ष का शिवम और तीन वर्ष का सत्यम हैं।

    हो जाती है अच्छी कमाई

    • - चार बच्चों की मां पिंकी ने बच्चों को बेहतर शिक्षा और घर की आर्थिक स्थिति मजबूत करने का लिया संकल्प 
    • - सब्जी बेचकर खरीदा ई-रिक्शा, अब सवारी बिठाकर कमाती प्रतिदिन 500-800 रुपये
    • -8वीं पास पिंकी बच्चों को बनाना चाहती है डाक्टर और इंजीनियर

    'मैं नहीं पढ़ सकी तो क्या... बच्चों को पढ़ाऊंगी'

    आर्थिक तंगी के कारण आगे की पढ़ाई नही करने पर मेरी सपना भी अधूरी रह गई थी। लेकिन जब मुझे पहली पुत्री हुई। तो मेरा सपना फिर जागृत हो उठी। तब सोचने लगी कि मैं तो पढ़ाई नही कर सकी। लेकिन अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा दिलाकर काबिल बनाऊंगी। लेकिन मेरे पति की मजदूरी राशि घर और बच्चों की भरण-पोषण में ही सिमट कर रह जाती थी। तब मैंने संकल्प ली की मैं भी मेहनत करुंगी। और आर्थिक स्थिति को मजबूत कर, बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाकर डाक्टर-इंजीनियर और ऑफिसर बनाऊंगी।

    तब सात वर्ष से करहरिया, असरगंज और लखनपुर हाट में सब्जी बेचने लगी। और थोड़ा-थोड़ा कर राशि जमा कर रही हूं। पति भी दिल्ली में फर्नीचर का काम करता है। बीते वर्ष लाॅक डाउन में हम दोनों की जमा पूंजी से एक ई-रिक्शा निकलवाया है  हूं। जिसे मैं प्रतिदिन चलाकर कभी सवारी बिठाकर तो कभी सब्जी ठोकर हर दिन 500 से लेकर 800 रुपये तक कमा लेती हूं। फिलहाल तो अपने तीन बच्चों को सरकारी स्कूल भेजती हूं। लेकिन प्राइवेट ट्यूशन भी पढ़ने भेज रही हूं। साथ ही बोली अगर सरकार भी मुझे कुछ आर्थिक सहयोग करें, तो बच्चों के पठन-पाठन में और बेहतर सुविधा मुहैया कराने में सफल हो पाऊंगी।