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    बिहार के राबिनहुड सांसद रहे आनंद मोहन बाइज्जत बरी, बोले- अंधेरा कितना भी घना हो, रोक नहीं सकता सूरज की रोशनी

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Tue, 26 Jul 2022 11:20 PM (IST)

    बिहार की राजनीति में एक समय राबिनहुड की तरह की छवि रखने वाले शिवहर के पूर्व सांसद और बिहार पिपुल्‍स पार्टी के संस्‍थापक आनंद मोहन लंबे समय से जेल में बंद थे। उनके ऊपर लगे आरोपों पर सुनवाई हुई और अब उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया है।

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    आनंद मोहन 31 साल पुराने मामले में हुए बरी।

    संवाद सूत्र, सहरसा: वर्ष 1991 में मधेपुरा लोकसभा आम चुनाव के उपचुनाव में एक पीठासीन पदाधिकारी के अपहरण के मामले में मंगलवार को पूर्व सांसद आनंद मोहन स्थानीय एमपी- एमएलए विशेष कोर्ट से रिहा कर दिए गए । पीठासीन पदाधिकारी गोपाल यादव के अपहरण मामले की सुनवाई करते हुए एमपी- एमएलए विशेष कोर्ट के न्यायाधीश एडीजे तीन विकास कुमार सिंह ने साक्ष्य के अभाव में पूर्व सांसद को बरी कर दिया। पूर्व सांसद की ओर से वरीय अधिवक्ता शंभू गुप्ता,अरूण कुमार सिंह व संगीता सिंह ने अपनी दलीलें दीं।

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    • - अंधेरा कितना भी घना हो, रोक नहीं सकता सूरज की रोशनी : आनंद
    • - साजिश के कारण सजा पूरा होने के बाद भी जेल के सीखचों में हैं बंद

    बाद में पूर्व सांसद आनंद मोहन ने कहा कि न्याय व्यवस्था के प्रति हमेशा से उनकी आस्था रही है। इस मामले में न्याय मिलने से न्यायपालिका के प्रति उनका विश्वास और मजबूत हुआ है। उन्होंने कहा कि एक गहरी राजनीतिक साजिश के तहत उन्हें सजा पूरा होने के बाद भी जेल में बंद रखा गया है। परंतु इससे वह निराश और हताश नहीं हैं। कोई अंधेरा इतना घना नहीं होता, जो सूरज की रोशनी को रोक दे। किसी रात में इतनी औकात नहीं कि दिन के उजाले को आने से रोक दे। पूर्व सांसद ने कहा कि तमाम बंदिशों के बावजूद वह न्याय के प्रति अटूट आस्था रखते हुए न्यायादेश का पालन करते रहेंगे। इस दौरान उनके कई समर्थक मौजूद थे।

    बता दें कि 31 साल पुराने लोकसभा उप चुनाव के दौरान पूर्व सांसद आनंद मोहने के खिलाफ पीठासीन पदाधिकारी गोपाल यादव के अपहरण का आरोप लगाते हुए न्यायालय में कांड दर्ज कराया गया था। उक्त मामले को लेकर आज एडीजे-3 विकास कुमार की कोर्ट में सुनवाई की गई। जहां साक्ष्य के अभाव में पूर्व सांसद आनन्द मोहन को मामले से बरी कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने न्यायालय का आभार जताया।

    कौन हैं आनंद मोहन, ये रहा उनका राजनीतिक करियर

    • सहरसा जिले के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं आनंद मोहन
    • दादा स्वतंत्रता सेनानी थे और आनंद मोहन ने जेपी आंदोलन सेही राजनीति में एंट्री की थी।
    • 17 साल की उम्र से आनंद मोहन सक्रिय राजनीति में उतर गए।
    • 1990 में जनता दल की टिकट पर माहिषी विधानसभा सीट से उन्होंने जीत दर्ज की।
    • आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई।
    • समता पार्टी से हाथ मिलाते हुए चुनाव लड़ा।
    • 1995 में आनंद मोहन का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में भी सामने आया।
    • 1998 में आनंद मोहन शिवहर से सांसद बने और आरजेडी को समर्थन दिया।
    • 1999 में वे बीजेपी के साथ आ गए।

    दलित IAS अधिकारी की मौत का मामला

    • 5 दिसंबर 1994 में गोपालगंज में एक दलित आईएएस अधिकारी की हत्या के मामले में आनंद मोहन पर बड़ी कार्रवाई हुई।
    • आरोप था कि जिस भीड़ ने आईएएस जी कृष्णइया की पिटाई और गोली मारकर हत्या कर दी। उसे उसकाने वाले आनंद मोहन थे।
    • 2007 में पटना हाइकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई।
    • आजाद भारत का ये पहला मामला था जब किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले नेता को फांसी की सजा दी गई हो।
    • 2008 में इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया।
    • आनंद मोहन पर कई मामले दर्ज थे, इनमें वे बच जाते रहे।
    • कृष्णइया हत्याकांड मामले में उन्होंने कहा कि वो पूरी तरह निर्दोष हैं लेकिन उस मामले में उन्होंने पूरी सजा काट ली है फिर भी जेल में बंद हैं। न्यायालय पर भरोसा है।