मिलावटी उर्वरक निगल रही उर्वरता, ठगे जा रहे किसान, इस तरह पहचानिए नकली और असली का भेद
मिलावटी खाद के कारण किसानों की चिंता इन दिनों बढ़ गई है। एक ओर जहां उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है वहीं दूसरी ओर खेतों की उर्वरकता भी कम हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार मिलावटी उर्वरक से मिट्टी में मौजूद कार्बनिक अम्ल व पोषक तत्व का हृास होता है।

कटिहार, जेएनएन।गुणवत्ताहीन व मिलावटी रसायनिक उर्वरक खेतों की उर्वरा शक्ति को लील रहा है। जैविक उर्वरक की किल्लत के कारण किसान उर्वरकों की सही पहचान नहीं कर पाते और स्तरहीन उर्वरक का उपयोग करते हैं। इसके कारण मिहनत व खर्च के बाद भी उन्हें बेहतर उत्पादन नहीं मिल पाता है और मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होने के कारण उत्पादन क्षमता लगातार प्रभावित हो रही है। मिलावटी उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी के बंजर होने का खतरा भी बढ़ रहा है।
मिट्टी में मौजूद कार्बनिक अम्ल और पोषक तत्व का ह्रास होने के कारण उर्वरता प्रभावित हो रही है।
पश्चिम बंगाल व झारखंड की सीमा से कटिहार जिले में नकली व मिलावटी खाद-बीज का कारोबार फलता फूलता रहा है। इसके साथ ही उर्वरकों में मिलावट कर इसकी रिपैङ्क्षकग कर बाजार तक पहुंचाया जाता है। इसमें एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। इस बात का खुलासा कई बार छापेमारी और जांच के दौरान हो चुका है। पूर्व में शहर के मुफस्सिल थाना क्षेत्र सहित मनसाही, फलका आदि स्थानों पर मिलावटी उर्वरक तैयार करने का भंडाफोड़ हो चुका है।
पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में चलता है धंधा
खेती के मौसम में बिना अनुज्ञप्ति के खाद बीज की दुकानों का संचालन होता है। इन दुकानों में स्तरहीन बीज व उर्वरक की बिक्री अधिक मुनाफा के लिए की जाती है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण नेटवर्क के सहारे इसे बाजारों में खपाया जाता है। जबकि किसान असली व नकली में फर्क नहीं कर पाते और ठगी के शिकार हो रहे हैं। बता दें कि मिलावटी और नकली उर्वरकों की पहचान के लिए सेंट्रल फर्टिलाइजर क्वालिटी कंट्रोल एंड टेङ्क्षस्टग इंस्टीच्यूट द्वारा टेस्ट किट विकसित किया गया है। इसके माध्यम से मिलावटी उर्वरकों की पहचान की जा सकती है। लेकिन ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में आज भी यह कीट किसानों की पहुंच से दूर है।
घरेलू नुस्खे से भी कर सकते हैं नकली खाद की पहचान
किसान खेती के लिए यूरिया का सर्वाधिक प्रयोग करते हैं। यह सामान्यत: चमकदार और समान आकार वाला होता है। पानी में डालने पर यह पूरी तरह घुल जाता है। गर्म तवा पर डालने पर यह पूरी तरह पिछलता है। इसके साथ ही किसान हथेली पर पानी रखकर इसमें यूरिया के दाने डालकर इसकी पहचान कर सकते हैं। इसे रगडऩे पर असली यूरिया से ठंडक महसूस होती है, जबकि मिलावटी यूरिया में ठंडक नहीं होती।
डीएपी के दाने पूरी तरह गोल नहीं होते हैं। साथ ही इसे गर्म करने पर यह साबूदाने की तरह फूलकर दोगुने आकार का हो जाता है। साथ ही असली डीएपी का दाना आसानी से नहीं फूटता। जबकि मिलावटी डीएपी का दाना आसानी से फूट जाता है।
किसान एमओपी का भी भरपूर प्रयोग करते हैं। इसकी पहचान के लिए एक ग्राम उर्वरक को परखनली में रखकर पांच एमएल आसुत जल मिलाने पर अधिकांश उर्वरक घुल जाते हैं। जबकि मिलावटी उर्वरक पानी की सतह पर बैठ जाता है। शुद्ध एमओपी के कण नमी के बाद भी आपस में नहीं चिपकता है।
गुणवत्ताहीन मिलावटी उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है। इसके कारण उत्पादन भी प्रभावित होता है। किसान घरेलू टिप्स से भी आसानी से उर्वरकों की पहचान कर सकते हैं। इससे स्तरहीन उर्वरकों का प्रयोग रोका जा सकता है। पंकज कुमार, कृषि वैज्ञानिक, केविके कटिहार।

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