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स्‍वतंत्रता आंदोलन : बिहपुर में स्वराज आश्रम के गेट पर राजेंद्र बाबू ने खाई थीं अंग्रेजों की लाठियां

स्‍वतंत्रता आंदोलन राजेंद्र बाबू को बिहार के स्‍वराज आश्रम में 9 जून 1930 को अंग्रेजों की लाठियां खानी पड़ी थीं। शराब और गांजे की दुकान पर स्वयंसेवक नशाबंदी के लिए धरना दे रहे थे। अंग्रेजों ने अत्याचार किया तो राजेंद्र बाबू भी यहां आए थे।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 10:00 AM (IST)
स्‍वतंत्रता आंदोलन : बिहपुर में स्वराज आश्रम के गेट पर राजेंद्र बाबू ने खाई थीं अंग्रेजों की लाठियां
स्‍वतंत्रता आंदोलन : बिहपुर में स्वराज आश्रम।

मिथिलेश कुमार, बिहपुर (भागलपुर)। भागलपुर जिले के नवगछिया इलाके के बिहपुर प्रखंड के ऐतिहासिक स्वराज आश्रम में आजादी के दीवानों का जमावड़ा लगता था। यह वही स्थान है जहां राजेंद्र बाबू को 9 जून 1930 को अंग्रेजों की लाठियां खानी पड़ी थीं। इस आश्रम के पास शराब और गांजे की दुकान पर स्वयंसेवक नशाबंदी के लिए धरना दे रहे थे। उन पर अंग्रेजों ने अत्याचार किया तो स्वयंसेवकों का साथ देने राजेंद्र बाबू भी आए। इस पर अंग्रेजों ने उन्हें भी नहीं बख्शा और लाठियां बरसाईं। फिर बिहपुर रेलथाने में ले जाकर नजरबंद कर दिया था।

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जानकार बताते हैं कि इस आश्रम में उस समय कांग्रेस के कार्यालय के साथ खादी भंडार और चरखा संघ का कार्यालय भी चलता था। 1 जून को तीसरे पहर नशाबंदी के कार्यक्रम में शराब एवं गांजे की दुकानों पर स्वयंसेवक धरना दे रहे थे। यहां पर यूरोपीय अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने स्वयंसेवकों को हट जाने को कहा लेकिन स्वयंसेवक धरने पर डटे रहे। तब अधिकारियों ने आदेश दिया कि स्वयंसेवकों पर लाठियां बरसाई जाएं। पुलिस वालों ने वैसा ही किया भी और स्वयंसेवकों से राष्ट्रीय झंडा भी छीनकर जला दिया। गोरे इतने पर ही नहीं रुके।

पूरे खादी भंडार पर कब्जा जमा लिया और वहां से चरखा, सूत, खादी के कपड़े बाहर फेंक दिए। अब यह भवन अंग्रेजों के कब्जे में था। स्वयंसेवक भी कहां हटने वाले थे। एक सभा बुलाई और उसमें सुखदेव चौधरी ने जबरदस्त भाषण दिया। इसी सभा से तय हुआ कि अब चाहे जो हो, अपना खादी भवन लेकर रहेंगे। अगले ही दिन स्वयंसेवकों के साथ ग्रामीण भी बढऩे लगे। अंग्रेज दमन करते तो स्वयंसेवक थोड़ा पीछे हटते। लेकिन अगले दिन ज्यादा जोश के साथ भवन की ओर बढ़ते। सात जून को पास वाले बगीचे में फिर से सभा हुई। इसमें अंग्रेजों ने फिर बर्बरता दिखाई। स्थितियां बिगडऩे लगीं तो सूचना पटना तक पहुंची। 8 जून को प्रो. अब्दुल बारी, बलदेव सहाय, ज्ञान साहा आदि बिहपुर पहुंचे।

उसके अगले ही दिन 9 जून को राजेंद्र बाबू अपने सहयोगियों के साथ बिहपुर पहुंचे। उन्होंने भी आश्रम से सटे बगीचे में आम बैठक की। इस सभा में राजेंद्र बाबू, प्रो.बारी और मु. आरिफ के भाषण हुए। सभा शाम 5.00 बजे समाप्त हुई। थोड़ी देर में अंग्रेज पुलिस दस्ते के साथ वहां पहुंच गए। राजेंद्र बाबू को पा उन पर लाठियां बरसाने लगे। यह देख भवनपुरा के रामगति ङ्क्षसह समेत कई स्वयंसेवकों ने राजेंद्र बाबू के ऊपर लेटकर उन्हें लाठियों के वार से बचाया। इसके बाद राजेंद्र बाबू को अंग्रेजों ने बिहपुर रेलथाना में ले जाकर नजरबंद कर दिया था। महात्मा गांधी के संपादन में छपने वाले अखबार यंग इंडिया में प्रमुखता से यह समाचार प्रकाशित किया गया था।


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