यहां की मिट्टी से तिलक लगाने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग, ये है वजह
भगवान महावीर की जन्मस्थली को लेकर इतिहासकारों के बीच भले ही मतभेद हो, लेकिन जैन श्रद्धालु क्षत्रिय कुंड ग्राम को ही उनकी जन्मभूमि मानते हैं। मूर्ति नहीं रहने पर भी श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं।
जमुई [अरविंद कुमार सिंह]। भगवान महावीर की जन्मस्थली को लेकर इतिहासकारों के बीच भले ही मतभेद हो, लेकिन जैन श्रद्धालु क्षत्रिय कुंड ग्राम (जन्मस्थान) को ही भगवान की जन्मभूमि मानते हैं। अब जब यहां भगवान की मूर्ति नहीं है तो जैन श्रद्धालुओं की मौजूदगी चौंकाने वाली है।
मूर्ति चोरी व बरामदगी की घटना के बाद मूर्ति लछुआड़ में स्थापित कर दी गई। बावजूद, श्रद्धालुओं की आस्था जन्मस्थान से जुड़ी है। यही कारण है कि लछुआड़ पहुंचे श्रद्धालु पहाड़ और जंगल के बीच कंटीली-पथरीली राह पार कर क्षत्रियकुंड, जन्मस्थान तक खिंचे चले आते हैं।
श्रद्धालु बताते हैं कि भगवान की मूर्ति तो जगह-जगह मंदिर में विराजमान है। यहां वे लोग महावीर की मिट्टी का तिलक लगाने आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान महावीर की धरती को विकसित कर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाने पर बल देते हैं।
गुजरात के भावनगर जिले से आए हरीश भाई, नीलम देवी व मीना देवी आदि ने बताया कि महावीर की धरती पर कदम पड़ते ही मन को असीम शांति और तन को सुकून मिलता है। इन्होंने बताया कि यहां की माटी से तिलक लगाते ही उनकी यात्रा सफल हो जाती है।
पर्यटकों ने जैन धर्म के पहले तीर्थंकर आदिनाथ की चर्चा करते हुए कहा कि पालिताना में उनके दर्शन के लिए हर वर्ष 10 लाख श्रद्धालु आते हैं। लछुआड़ और जन्मस्थान को भी विकसित कर पर्यटन के क्षेत्र में बड़ी संभावना तलाशी जा सकती है।
लछुआड़ के रास्ते जन्मस्थान तक होगी चिकनी सड़क
लछुआड़ से जन्मस्थान तक जाने के लिए 50 करोड़ की लागत से 25 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य जारी है। 12 किलोमीटर वन क्षेत्र में निर्माण के लिए वन विभाग से एनओसी प्राप्त करने की प्रक्रिया चल रही है। पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता उमाशंकर प्रसाद ने बताया कि महावीर की जन्मस्थली तक जाने वाली सड़क का निर्माण कार्य जारी है। फिलहाल गरही और कौवाकोल के रास्ते जन्मस्थान तक जाने के लिए चिकनी सड़क बनकर तैयार है।