BAU ने किया कमाल : मैदा का विकल्प बनेंगे मोटे अनाज, शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण सेहतमंद उत्पाद
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अरुण कुमार ने बताया कि मोटे अनाजों से नए उत्पाद बनाने पर शोध किया जा रहा है। जल्द ही स्थानीय युवाओं और निर्माण एजेंसियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। मोटे अनाज स्वास्थ्य समृद्धि और पर्यावरण के लिए बेहतर साबित होंगे।

ललन तिवारी, भागलपुर। अब मैदा का विकल्प बनेंगे मोटे अनाज। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) इस पर शोध कर रहा है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो जल्द ही स्थानीय स्तर पर युवाओं और इस पर काम करने वाली कंपनियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे बाजार में शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण सेहतमंद उत्पाद लोगों को आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे।
कृषि विश्वविद्यालय के खाद्य विज्ञान एवं फसलोत्तर प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. फिजा अहमद और वरीय विज्ञानी डा. अहमर आफताभ ने बताया कि 75 प्रतिशत मोटे अनाज ज्वार, बाजरा और 25 प्रतिशत गेहूं के आटा से उत्पाद तैयार किए जाएंगे। इन उत्पादों को लंबे समय तक किस प्रकार सुरक्षित रखा जा सकता है, इसका अध्ययन किया जा रहा है।
थाली से दूर होते गए मोटे अनाज
कृषि विज्ञान केंद्र सबौर की गृह विज्ञानी अनीता कुमारी कहती हैं कि मोटे अनाज पहले परंपरागत आहार हुआ करते थे, लेकिन जीवन शैली में बदलाव के कारण इनकी मांग कम होती चली गई। अब इन्हें संतुलित आहार के लिए जरूरी माना जा रहा है। मोटे अनाजों में चावल की तुलना में एक से दो गुना प्रोटीन, 50 गुना रेशे, 10 गुना खनिज, 20 गुना आयरन और 30 गुना अधिक कैल्शियम पाया जाता है।
मिलेट वर्ष घोषित, बढ़ेगी उत्पादों की मांग
वर्तमान समय में पौष्टिकता की कमी और घटती इम्युनिटी गंभीर समस्या बनती जा रही है। इसलिए मोटे अनाज (बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी) इस समस्या का समाधान हैं। यही वजह है कि आने वाला वर्ष अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया जा चुका है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने बाजार की मांग के अनुरूप अपनी तैयारी शुरू कर दी है। कोशिश है कि उत्पाद सस्ते हों।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बीएयू डा. अरुण कुमार ने बताया कि मोटे अनाजों से नए उत्पाद बनाने पर शोध किया जा रहा है। जल्द ही स्थानीय युवाओं और निर्माण एजेंसियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। मोटे अनाज स्वास्थ्य, समृद्धि और पर्यावरण के लिए बेहतर साबित होंगे।
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