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बिहार का लाली पहाड़ी... यहां कदम-कदम पर बिखरे हैं अतीत के पन्ने, खुदाई में मिले हैं बौद्ध मठ

बिहार के लाली पहाड़ी पर जगह-जगह अतीत के पन्‍ने बिखरे हैं। यहां पर खोदाई के दौरान बौद्ध मठ व अन्‍य कई पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं। लखीसराय जिले के कजरा के श्रीघना इटवाडीह के पास स्थिति लाली पहाड़ी की खोदाई...

By Abhishek KumarEdited By: Published: Fri, 24 Dec 2021 11:26 AM (IST)Updated: Fri, 24 Dec 2021 11:26 AM (IST)
बिहार का लाली पहाड़ी... यहां कदम-कदम पर बिखरे हैं अतीत के पन्ने, खुदाई में मिले हैं बौद्ध मठ
बिहार के लाली पहाड़ी के पास मिला बौद्ध अवशेष।

संसू., पीरी बाजार (लखीसराय)। लखीसराय जिला में बौद्ध कालिन अवशेष यत्र-तत्र भरे पड़े हैं। आए दिन इसके अवशेष विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त हो रहे हैं। हाल में कजरा क्षेत्र में इसके अवशेष मिले हैं। पूर्व में पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र का भ्रमण कर इसकी संभावनाओं की तलाश की थी। कई साक्ष्य भी अपने साथ ले गए थे। फिलहाल कजरा क्षेत्र के श्रीघना इटवाडीह में पुरातात्विक अवशेष मिले हैं जिसे बौद्ध कालीन होने की बात कही जा रही है। हर ओर इसकी चर्चा हो रही है।

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पिछले सोमवार को कजरा नरोत्तमपुर स्थित कैंप में एसएसबी के 58 वें स्थापना दिवस के अवसर पर आए लखीसराय के जिलाधिकारी संजय कुमार सिंह एवं पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार को भी स्थानीय ग्रामीणों ने बौद्ध कालीन स्थल के विषय में जानकारी दी। उन्हें प्राप्त अवशेष को दिखाया भी। जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक ने भी मामले को पुरातात्विक विभाग के अधिकारियों के पास पहुंचाने का आश्वासन दिया।

इसके बाद से ही ग्रामीणों में बौद्ध कालीन अवशेष मिलने को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। लोग यहां के गर्भ और बहुत कुछ छिपे होने की संभावना जता रहे हैं। विदित हो कुछ दिन पूर्व आइआइटी कानपुर एवं भूटान से आई एक टीम ने इस क्षेत्र का निरीक्षण किया था एवं बौद्ध कालीन अवशेष प्रचुर मात्रा में यहां के भूगर्भ में छिपे होने की संभावना जताई थी।

आसपास बिखरे पड़े हैं पुरातात्विक अवशेष

लखीसराय शहर स्थित जयनगर लाल पहाड़ी को राज्य सरकार ने संरक्षित किया है। यहां बौद्धकालीन स्तूप और मठ मिले हैं। जिले के उरैन, बिछवे, घोषीकुंडी में भी अवशेष हैं। राज्य सरकार इसे बौद्ध सर्किट से जोडऩे पर बल दे रही है। इस दिशा में काम भी हो रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां 13वां, 18वां एवं 18वां वर्ष वास व्यतीत किए थे। इसका उल्लेख बौद्ध ग्रंथ अंगेरेतर निकाय एवं मोग्वग्गिय में है। आज भी लखीसराय के विभिन्न इलाके में पौराणिक एवं पुरातात्विक अवशेष बिखरे पड़े हैं। लोग इसकी पूजा-अराधना करते हैं। अनेक जगहों पर मिट्टी के पुराने बर्तन मिलते रहे हैं। एएसआइ के उत्खनन में भी काफी संख्या में मिट्टी के बर्तन मिले हैं जिसे मृदभांड कहा जाता है।

लखीसराय जिला का पुरातात्विक महत्व है। यह प्राचीन भारत का विस्मृत नगर है। इसे कृमिला नगरी कहा जाता था जो तीन प्राचीन नदियां गंगा, कृमिकला और धरोहर के संगम स्थली पर अवस्थित थी। कृमिकला ही अब किऊल और धरोहर ही अब हरोहर नदी है। यह क्षेत्र बौद्धकालीन रहा है। गौतम बुद्ध ने यहां तीन वर्षावास किया था। यह जिला बौद्ध सर्किट से जुड़कर विश्व का पर्यटन केंद्र बन सकता है। -प्रो. अनिल कुमार, पुरातत्वविद। 


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