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    बिहार के कोसी क्षेत्र में 122 प्रकार की मछलियां खाने आते थे अंग्रेज, द‍िया था फिश ज्वेलरी का नाम

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Wed, 21 Sep 2022 05:50 PM (IST)

    अंग्रेजी अधिकारियों ने कोसी अंचल में पाए जाने वाले 122 प्रकार की मछलियों को स्वाद और पौष्टिकता की दृष्टिकोण से भी बेहतर बतलाया था। कोसी का जलवायु मछली ...और पढ़ें

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    बिहार के कोसी क्षेत्र में पायी जाती थी दुर्लभ मछ‍ली।

    संवाद सूत्र, महिषी (सहरसा)। अंग्रेजी शासनकाल में फ्रांसिस बुकानन ने अपनी पूर्णिया रिपोर्ट में 1808 में मोंटोगरी मार्टिन ने 1828 में अपनी रिपोर्ट इस्टर्न इंडिया में तथा 1872 में डब्लू डब्लू हंटर ने बांग्ला स्टेटिस्टीकल रिपोर्ट में कोसी नदी व कोसी अंचल को मछलियों की खान कहते हुए इस क्षेत्र को फिश ज्वेलरी संज्ञा दी थी। कहा था कि इस क्षेत्र का जलवायु मछली पालन की दृष्टिकोण से सबसे बेहतर है। इन अंग्रेजी अधिकारियों ने इस अंचल में पाए जाने वाले 122 प्रकार की मछलियों को स्वाद और पौष्टिकता की दृष्टिकोण से भी बेहतर बतलाया था परंतु इसे समय का कुचक्र कहे या प्रबंधन का दोष आज मछली उत्पादन को व्यवसायिक स्वरूप देने की होड़ में फिश ज्वेलरी ये नायाब कीमती फिश गायब होते जा रहे हैं।

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    सरकारी आंकड़ों के अनुसार मछली उत्पादन बढ़ा है। मत्स्य पालन विभाग उत्पादन में वृद्धि को लेकर पोखर खुदाई से लेकर मतस्यजीवी को प्रशिक्षण तक दे रही है लेकिन कोसी क्षेत्र की पहचान मानी जाने वाली रोहु, भाकुर, नैनी, बुआरी, कांटी, मांगुर, सिंघही, भुन्ना, कबई, टेंगरा, इचना, गैंची, रेवा, सूहा, मारा, पोठी, छही, सौरा, बीघट, गोल्ही, चेचरा, बामी, अन्हैई, बमच्छ, बचबा, गरैई, गरचुन्नी, कौआ, कोतरी, ड़ेढ़बा, ढ़लई, भुल्ला, चेंगा, भौरा, गागर, गुर्ता, पतासी, हिलसा, हुर्रा, चन्ना, लट्टा, कुरसा सहित अन्य कई प्रकार की देसी मछलियां कोसी अंचल से लगभग विलुप्ती के कगार पर हैं। जिस कारण फिश ज्वेलरी की चमक भी फिकी पड़ने लगी है।

    देसी मछलियों की किस्मों को सुरक्षित रखने के लिए सरकारी स्तर से नहीं हो रहा है प्रयास। कोसी अंचल में कोसी नदी सहित अन्य प्राचीन जलधाराओं, चौर, चाचर, पोखर मिलने वाली इन मछलियों की जगह आज के समय में हाईब्रिड किस्म की मछलियों ने ले लिया है। आज के समय में बाजारों में लोग इन प्राचीन देसी मछलियों को जंगली मछली के नाम से पुकारने लगे हैं। इस संबंध में ग्रामीण बयोबृद्ध बड़े बड़े जलकर चलाने वाले नारायण राय ने बताया कि करीब पन्द्रह से बीस वर्ष पूर्व वर्षा का समय खत्म होते ही जलकर लेने के लिए लोग जमींदारों से संपर्क साधने लगते थे। पहले बाढ़ के पानी के साथ तरह तरह की मछलियां आती थी और ये इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय हुआ करता था। वहीं दुर्गा झा ने बताया कि प्राचीन जलकर में मरने वाली मछलियों की मांग बिहार के कई जिले सहित बंगाल तथा अन्य आसपास के राज्यों से के व्यवसायियों द्वारा भी की जाती थी। आज बदलते समय में कोसी क्षेत्र के लोग भी प्राचीन देशी मछलियों के लिए तरस रहे हैं।