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    भारतीय रेलवे का काला दिन: बिहार में विश्व के दूसरे बड़े ट्रेन हादसे में हुई थी 300 से ज्यादा मौतें, कई जोड़े शादी कर लौट रहे थे घर

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Sun, 05 Jun 2022 04:41 PM (IST)

    6 जून को भारतीय रेलवे का काला दिन भी कहा जा सकता है। सन 1981 में बिहार के खगड़िया जिले में हुआ ट्रेन हादसा देश का सबसे बड़ा ट्रेन हादसा कहा जा सकता है ...और पढ़ें

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    Black day of Indian Railways- बागमती नदी में समा गई थी ट्रेन।

    चितरंजन सिंह, खगड़िया: छह जून 1981 की शाम कोसी क्षेत्र वासियों के मानस पटल पर सदा के लिए अंकित हो गया है। उस दिन ही मानसी-सहरसा रेलखंड (तब छोटी रेल लाइन थी) के बदला घाट-धमारा घाट स्टेशन के बीच बागमती नदी पर बने पुल संख्या-51 पर (अब रिटायर्ड पुल) ट्रेन हादसे में लगभग तीन सौ यात्रियों की जान चली गई थी। यह देश की सबसे बड़ी रेल दुर्घटनाओं में एक है। छह जून 1981 को मानसी से ( 416 डाउन सवारी गाड़ी) सहरसा के लिए पैसेंजर ट्रेन चली। जो उक्त पुल के पास पहुंचते ही हादसे का शिकार हो गई। ट्रेन की सात बोगियां बागमती नदी में समा गई।

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    बागमती उफान पर थी इसलिए राहत और बचाव कार्य में भी काफी परेशानी आई। कई दिनों तक बागमती नदी से शव मिलता रहे। इस ट्रेन हादसे में खगड़िया जिले समेत पड़ोसी सहरसा, मधेपुरा और सुपौल जिले के कई लोगों की जानें गई थी। गांव-गांव में कई दिनों तक मातम पसरा रहा।

    जरा, इनकी सुनिए...

    धमारा घाट स्टेशन से कुछेक किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले ठुठी मोहनपुर गांव के अनिल सिंह कहते हैं, 'जिस समय यह घटना उस समय बारिश हो रही थी। तेज हवा भी चल रही थी। हादसे का भयावह मंजर आज भी याद करता हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।'

    धुतौली पंचायत के तत्कालीन मुखिया गुणेश्वर प्रसाद के दिमाग में आज भी वह शाम दौड़ रही है। वे कहते हैं, 'शाम के साढ़े चार बजे के आसपास की बात होगी। आंधी और बारिश हो रही थी। तभी बहुत ही जोरदार आवाज हुई। कुछेक मिनटों में जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गई कि बदला घाट-धमारा घाट स्टेशन के बीच पुल संख्या 51 के पास ट्रेन बागमती में समा गई है। मैं और रामानंद सिंह समेत कई लोग उधर दौड़ पड़े। घटना स्थल पर जो दृश्य देखा, उसका वर्णन नहीं कर सकते हैं। वह स्याह शाम भुलाने से नहीं भुलाती है। कई लोग मारे गए। बागमती चीख-पुकार, करुण कुंदन से हाहाकार मचा रहा था। धुतौली मालपा से उक्त स्थल की दूरी चार से पांच किलोमीटर होगी।'

    भारतीय रेलवे के इतिहास का काला अध्याय

    बारिश का महीना था और ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी, कि तभी अचानक ड्राइवर ने ब्रेक लगा दिया। जिसके बाद पैसेंजर ट्रेन की सात बोगी पुल से बागमती नदी में जा गिरी। ट्रेन बागमती नदी पर बनाए गए पुल संख्या 51 को पार कर रही थी। ड्राइवर ने ब्रेक क्यों लगाई, यह इतिहास में दफन है। कुछेक लोग कहते हैं कि जब ट्रेन बागमती नदी पर बने पुल को पार कर रही थी, तभी ट्रैक पर गाय व भैंस की झुंड आ गया, जिसे बचाने के चक्कर में ड्राइवर ने ब्रेक मारी थी। यह भी कहा जाता है कि बारिश और आंधी के कारण यात्रियों ने ट्रेन की सभी खिड़कियां बंद कर दी थी। आंधी की वजह से पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और बोगियां नदी में समा गई।

    विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेन हादसा 

    बिहार में हुए इस ट्रेन हादसे को विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेन हादसा कहा जा सकता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस हादसे आठ साढ़े आठ सौ लोगों की मौत हुई होगी। क्योंकि कइयों का शव तक नहीं मिला। बता दें कि विश्व की सबसे बड़ा ट्रेन हादसा 2004 में श्रीलंका में हुआ था। इस साल वहां आई सुनामी की तेज लहरों में ओसियन क्वीन एक्सप्रेस ट्रेन समा गई थी। जानकारी मुताबिक इस ट्रेन हादसे में 1700 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।

    कई शादी कर लौट रहे थे

    लोगों की मानें तो उन दिनों यातायात के साधन कम थे। शादियों का सीजन था। ट्रेन में कई ऐसा यात्री थे, जो बाराती थे। कई जोड़ियां नई नवेली थी और भविष्य के सपने बुनते हुए अपने गंतव्य को जा रही थीं लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। इस हादसे में कइयों के तो शव तक नहीं मिले।