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    Bihula Wishhari worship in Bhagalpur: विहुला ने पति व छह जेठों को जीवित कराकर विषहरी को दिलाई थी चंद्रधर से पूजा

    By Abhishek KumarEdited By:
    Updated: Wed, 18 Aug 2021 07:49 AM (IST)

    Bihula Wishhari worship in Bhagalpur विभिन्न विषहरी मंदिरों में सर्पदेवी विषहरी की पूजा विधि पूर्वक हो रही है। कोरोना के कारण विषहरी मंदिरों में सार्वजनिक पूजा पर प्रतिबंध के बावजूद श्रद्धा में डूबे देवी भक्त। हालांकि इस बार...!

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    Bihula Wishhari worship in Bhagalpur: विभिन्न विषहरी मंदिरों में सर्पदेवी विषहरी की पूजा विधि पूर्वक हो रही है।

    जासं, भागलपुर। शहर के विभिन्न विषहरी मंदिरों में सर्पदेवी विषहरी की पूजा विधि पूर्वक हो रही है। कोरोना के कारण इस बार दूसरे वर्ष भी सार्वजनिक नहीं हो रही है। इस अवसर पर गाया जाने वाला विहुला-विषहरी गीत भी परवान पर चढ़ गया है। शहर के विभिन्न मनसा मंदिरों में नाल, मंजीरे व करताल के संगीत के बीच गायक कलाकार देवी की भक्ति में डूब गए हैं।

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    चंपानगर स्थित प्रसिद्ध विषहरी मंदिर में मंगलवार से दो दिवसीय पूजा शुरू हो गई। वहां के संतोष पंडा सुबह से रात तक देवी की पूजा में तन, मन से जुटे हुए हैं। बुधवार की शाम को बाजे-गाजे के साथ मंजूषा विसर्जन के साथ यह पूजनोत्सव सम्पन्न होगा। कोरोना केकारण यहां सार्वजनिक पूजा पर प्रतिबंध रहने के बावजूद यहां देवी भक्त श्रद्धा में डूबे दिखे।

    आज पूरा होगा एक माह से गाया जा रहा मनसा गीत

    चंपानगर के कुम्हार टोली सहित शहर के कई स्थानों में एक माह से नित्य गाए जा रहे इस गीत श्रृंखला का बुधवार की दोपहर तक समापन हो जाएगा। वहां के गीत गायन मंडली के मुख्य गायक दिनेश पंडित ने बताया कि इस महाकाव्य के शेष अंशों को पूरा करने के लिए गायक मंडली के सभी गायक कलाकार मंगलवार की रात से दोपहर तक लगातार यह गीत गा रहे हैं।

    उसमें बाला-विहुला का विवाह, बाला लखेंद्र को सर्पदंश, विहुला का देवी विषहरी से पति व छह जेठों का जीवन दान मांगने के लिए चंपा नदी से नाव से प्रस्थान करना, काफी संघर्ष के बाद विहुला का जीवित पति व छह जेठों के साथ ससुराल वापस लौटने से लेकर अंतत: विहुला के समझाने पर उनके स्वसुर व महान शिवभक्त चंद्रधर सौदागर के देवी विषहरी को पूजा देने के लिए राजी होने के प्रसंग शामिल रहेंगे।

    पंडे से आशिर्वाद मांगते हैं श्रद्धालु

    उधर विषहरी स्थान मंदिर में विसर्जन के दौरान पंडिजी से मनोवांछित आशिर्वाद पाने के लिए देवी भक्तों का जुटना शुरू हो गया है। भक्तों का विश्वास है कि सिर पर मंजूषा रखकर बाजे-गाजे के साथ विसर्जन के लिए जाते वक्त पंडितजी पर देवी विषहरी सवार रहती हैं। उस वक्त उनके द्वारा दिया गया आशिर्वाद पूर्ण होता है। इस भरोसे से ग्रामीण महिलाएं उनसे मनोवांछित कामनाएं करती देखी जाती हैं। इसके कारण पंडितजी को बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी तय करने में दो-तीन घंटे का वक्त लग जाता है। यह परंपरा वर्षों से देखी जा रही है। हालांकि इस बार कोरोना के कारण इस पर रोक है।