बिहार में रिकॉर्ड मतदान ने बदले समीकरण, राजनीतिक दलों और विश्लेषकों की बढ़ाई उलझन
बिहार में अभूतपूर्व मतदान ने राजनीतिक दलों और विश्लेषकों को दुविधा में डाल दिया है। उच्च मतदान प्रतिशत के कारण चुनाव परिणामों का अनुमान लगाना कठिन हो गया है। सभी पार्टियां और विश्लेषक अपने-अपने ढंग से इस मतदान का अर्थ निकालने में लगे हैं, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है। अब सभी को चुनाव परिणामों का इंतजार है।
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पूर्णिया में मंगलवार को मतदान के लिए लाइन में खड़ी महिलाएं। फोटो जागरण
संदीप कुमार, भागलपुर। बिहार में रिकार्ड मतदान ने राजनीतिक दलों के साथ-साथ विश्लेषकों के भी होश उड़ा दिए हैं। बढ़े वोटर कौन हैं, किसके हैं, दिन-रात गुणा-गणित जारी है। दोनों प्रमुख गठबंधन इसे अपने पाले में आया वोट मान रहे, 14 नवंबर को मतगणना तक ऐसे ही कयास लगाए जाते रहेंगे।
एनडीए का दावा है कि नीतीश-मोदी का सुशासन, जंगलराज के लौट आने के खौफ ने मतदाताओं को मजबूती से उनके पाले में किया। महागठबंधन के अपने तर्क, सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए बूथों पर कतारें थीं।
बढ़े मतदान ने सबसे ज्यादा सीमांचल में चौंकाया है। किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया में मतदान का आंकड़ा करीब 80 प्रतिशत को छू गया। पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट यहीं पड़े हैं। सीमांचल में करीब 40 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं।
मुस्लिमों से ज्यादा मुखर होकर हिंदू मतदाताओं ने मतदान किया है, खासकर महिलाओं ने। पूर्णिया जिले की कसबा सीट पर करीब 82 फीसद मतदान हुआ। राज्य की 243 विधानसभा सीटों में यह सर्वाधिक मतदान है।
यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या महज 30 प्रतिशत है। पिछले विधानसभा चुनाव से यहां करीब 16 प्रतिशत अधिक वोट पड़े हैं। इसी जिले की अमौर विधानसभा के 65 फीसद वोटर मुस्लिम हैं। जिले के सर्वाधिक मुस्लिम वोटरों वाली सीट।
यहां करीब कसबा से छह फीसद कम 74 प्रतिशत ही पोलिंग हुई है। राज्य की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाले जिले किशनगंज की कोचाधामन सीट पर सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता हैं। 75 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों वाले सीट पर पिछले चुनाव के मुकाबले सिर्फ 11 प्रतिशत अधिक पोलिंग हुई।
वहीं, कोचाधामन से 15 प्रतिशत कम मुस्लिम वोटर वाले पड़ोस की किशनगंज सदर सीट पर इस बार 20 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ है। यहां मतदान 80 प्रतिशत के ऐतिहासिक आंकड़े को पार कर गया है।
मंगलवार को मतदान केंद्रों की तस्वीरें भी इसकी गवाह हैं कि मुस्लिम बाहुल्य मतदान केंद्रों में बुर्के में खड़ी वोटरों की कतार को पड़ोस के बूथ पर माथे पर पल्लू डाले महिलाएं कड़ी टक्कर दे रही थीं। यह नया ट्रेंड है।
पूरे राज्य में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले करीब दस प्रतिशत अधिक मतदान किया है। जीत की पटकथा यही लिखेंगी। एक बदलाव और। बूथों पर कतारबद्ध महिलाओं से पूछा गया, क्या मुद्दा है। किसे पसंद करती हैं।
ज्यादातर महिलाएं खुलकर बोलती नजर आईं, और किसे। दस हजार दिया, आगे भी देगा। उसे ही। एनडीए का भरोसा और एक्जिट पोल के आंकड़ों में इन महिलाओं के दावे की झलक साफ दिख रही। इससे इतर बढ़े मतदान में बड़ा रोल उन लोगों का भी जिन्होंने दूसरे प्रदेशों से आकर अपने गांव-घर में वोट डाला।
पूर्व में ये वोटर चुनावी महापर्व से दूर दिल्ली, गुजरात जैसे राज्यों में अपनी जीविका के लिए दिन-रात संघर्ष करते रहते थे। दिहाड़ी छोड़ अपना नुकसान कर कौन वोट डालने जाए, यह मानसिकता थी।
लेकिन, मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) की कवायद के बाद जब वोटर लिस्ट से नाम कटे तो ये आशंकित हो गए। वोट देने के लिए दिल्ली से भागलपुर अपने घर आए विजय ने कहा, देखिए दो चार दिन की दिहाड़ी का नुकसान सह लेंगे, लेकिन वोटर लिस्ट से नाम कट गया तब न मुफ्त राशन मिलेगा, न सरकारी आवास।
पत्नी जीविका का काम करती है। फोन करके परेशान कर दिया कि दस हजार मिला है, आगे भी दो लाख मिलेगा। लिस्ट से नाम कटा तो पता नहीं आगे मामला गड़बड़ा न जाए। जल्दी घर आइए। वोट दे दिया है, अब लौट रहा हूं।

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