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    Bihar Election 2025: टिकट कटने पर नहीं चलेगी ‘जुगाड़’ वाली तकनीक, पाला बदलने का भी नहीं मिलेगा समय

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 11:15 AM (IST)

    चुनाव की घोषणा के बाद टिकट के दावेदारों की सांसें अटकी हैं, क्योंकि इस बार दल बदलने का समय नहीं मिलेगा। गठबंधनों में सीटों का बंटवारा नहीं होने से तनाव बढ़ गया है। एसआईआर के कारण जुगाड़ पर मार पड़ी है, जिससे राजनीतिक दलों में भगदड़ की संभावना कम है। निर्दलीय प्रत्याशियों का प्रदर्शन गिरता जा रहा है, और इस बार जनसुराज में उम्मीदवारी कठिन है।

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    शंकर दयाल मिश्रा,भागलपुर। चुनाव की घोषणा होने के बाद वैसे दावेदारों की सांसें अटक गई हैं जो अपनी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर दल बदल लेते रहे हैं। प्रथम चरण का नामांकन शुरू हो गया है। अभी तक गठबंधनों में सीटों का बंटवारा ही नहीं हुआ है। 

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    टिकट की सेटिंग में पटना-दिल्ली गए दावेदारों को नेतृत्व के स्तर से यह संदेश देकर लौटाया जा रहा है कि उनका नाम लिस्ट में वन टू थ्री-फोर में ही है क्षेत्र में रहें... यहां दिखेंगे तो लापरवाही समझी जाएगी और टिकट कट जाएगा। ऐसे में टिकट के दावेदारों का अभी हर क्षण तनाव से भरा है। पार्टी टिकट देगी या नहीं... वे इसी उधेड़बुन में हैं। वहां से मामला कटा तो... यह चिंता उन्हें खाए जा रही कि इस बार अन्य पार्टियों में जुगाड़ का समय भी नहीं के बराबर है!

    जुगाड़ वाले नेताओं पर SIR की मार

    दरअसल, इस बार विभिन्न पार्टियों के टिकट के दावेदारों की ओर से किए जाने वाले जुगाड़ पर विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्य (एसआईआर) की मार पड़ गई है। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2010 में विधानसभा चुनाव की घोषणा छह सितंबर को हुई थी। 

    2015 में घोषणा नौ सितंबर और 2020 में 25 सितंबर को हुई थी। 2010 में छह चरणों में चुनाव हुआ था और नामांकन 27 सितंबर से शुरू हुआ था। 2015 में पांच चरणों में चुनाव हुआ था और नामांकन 16 सितंबर से। 2020 में तीन चरणों में चुनाव हुआ था और नामांकन एक अक्टूबर से। 

    2010 में नामांकन के लिए 20 दिन का समय

    इस हिसाब से कह सकते हैं कि 2010 में चुनाव की घोषणा से नामांकन शुरू होने में 20 दिनों का समय मिला। इसी प्रकार 2015 में सात दिन और 2020 में छह दिनों का समय मिला। खास यह कि चुनाव कई चरण में थे, इसलिए प्रथम चरण की नामांकन प्रक्रिया शुरू होने और अंतिम चरण तक के नामांकन के बीच दावेदारों को अपनी दावेदारी और पार्टियों को अलग-अलग चरणों के लिए एक महीना तक का वक्त मिला था। 

    इस बार चुनाव की घोषणा छह अक्टूबर को हुई है और 10 अक्टूबर से पहले चरण का नामांकन शुरू हो गया है। महज दो दिन बाद दूसरे चरण का नामांकन 13 अक्टूबर से होगा। अब समय बचा नहीं है। दावेदार चाह रहे हैं कि जल्द घोषणा हो क्योंकि टिकट कटा तो दूसरी राह पकड़ने का निर्णय भी गोली की स्पीड से लेना होगा!

    राजनीतिक दलों में नहीं मचेगी भगदड़

    तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के सहायक प्राध्यापक विवेक हिंद कहते हैं कि मतदान के कुछ माह पहले जमीन पर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो जाना स्वभाविक है। बिहार विधानसभा के पिछले चुनावों में अमूमन जून-जुलाई महीने से ऐसा होता रहा है। 

    लेकिन इस बार 24 जून को एसआईआर का नोटिफिकेशन आ गया। जब तक दावेदार अपने लिए माहौल बनाते, उसके पहले ही उन्हें एसआईआर के समर्थन या विरोध में लगना पड़ गया। हालांकि, अगस्त मध्य के बाद से दावेदार अन्य तरीकों से अपनी राजनीतिक गतिविधियां क्षेत्र में बढ़ाने लगे पर एसआईआर का दबाव दलों पर रहा। 

    अब जबकि नामांकन शुरू हो गया है और गठबंधन व दावेदारी की स्थिति स्पष्ट होने में अब भी एक-दो दिन लगता दिख रहा है तो टिकट नहीं मिलने पर दल-बदल करने वालों के लिए समय नहीं बचेगा। इस बार राजनीतिक दलों में अधिक भगदड़ नहीं होगी। 

    हां, असंतुष्ट दावेदार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतर सकते हैं पर इसमें खतरे बड़े हैं। उनको मिलने वाले वोट से उनकी हैसियत आंकी जाने लगती है। यह आगे का उनका भविष्य तय करता है। 

    गिरता गया निर्दलीय प्रत्याशियों का प्रदर्शन

    आंकड़ों के मुताबिक चुनाव दर चुनाव निर्दलीय प्रत्याशियों का प्रदर्शन गिरता गया है। 2010 में 1,342 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे और छह जीते। 2015 में 1,150 निर्दलीय उम्मीदवार में से चार ही जीत सके। 2020 में 1,299 उम्मीदवार चुनावी मैदान में आए और महज दो ही जीत सके। 

    दावेदारों पर बिजली और पार्टी नेतृत्व के लिए राहत की बरसात बनकर गिरा एसआईआर

    कहलगांव के एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता बताते हैं कि टिकट के लिए मारामारी के नजरिए से एसआईआर दावेदारों पर बिजली और पार्टी नेतृत्व पर राहत की बरसात बनकर गिरी। 

    एसआईआर शुरू होने के तकरीबन तीन हफ्ते बाद उन्होंने अपने इलाके के एक टिकट के दावेदार को पटना के पार्टी मुख्यालय में अपनी दावेदारी पेश करते सुना। 

    तब पार्टी के बड़े नेता ने उन्हें झिड़का- अभी सब एसआईआर में परेशान है और आपको टिकट सूझ रहा है.... जाइए क्षेत्र में... देखिए कोई अपना वोटर छूटे नहीं... कितने लोगों का नाम जुड़वाए, अगली बार जब आएंगे तो यह आंकड़ा नाम सहित लेकर आइएगा... यही आपकी दावेदारी का आधार बनेगा! बेचारा दावेदार ठगा सा मुंह बनाकर लौटा।

    दूसरी ओर, बड़े नेताजी से जब इस पर सवाल किया तो उन्होंने कहा- जुलाई से ही इतने दावेदार आने लगते हैं कि सिर के बाल खड़े हो जाते हैं... पर अभी एसआईआर के कारण वैसे भी बहुत कम दावेदार आ रहे हैं और जो इक्का-दुक्का आ रहे तो एसआईआर के कारण रूठने का खतरा भी नहीं है।

    2020 में लोजपा में खुली थी वैकेंसी

    2020 के चुनाव में लोजपा एनडीए से अलग होकर लड़ी थी। वीआईपी और हम जैसी पाटियां भी पहली बार मैदान में आई थीं। लोजपा में तो खुली वैकेंसी थी। पार्टी ने प्रदेश में 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। 

    अंग्र प्रदेश, कोसी और सीमांचल के 13 जिलों की 62 सीटों की बात करें तो लोजपा ने जदयू के हिस्से की सभी सीटों पर प्रत्याशी दिए। भाजपा से बेटिकट दावेदारों को लोजपा में खुला मौका मिला था। तब भागलपुर सीट पर लोजपा ने भाजपा के खिलाफ भी उम्मीदवार उतार दिया था। सीमांचल में ओवैसी की एआईएमआईएम में भी वैकेंसी थी। इस बार भी है। 

    जनसुराज में वैकेंसी है पर अन्य के लिए मौके नहीं

    इस बार जनसुराज में खुली वैकेंसी तो है पर उम्मीदवारी का एंट्रेंस एग्जाम टफ है। पार्टी के भागलपुर जिला सचिव व प्रदेश युवा कार्यसमिति सदस्य अमर्त्य बंधुल कहते हैं कि उनके नेता प्रशांत किशोर ने पहले ही स्पष्ट कर रखा है कि शुरुआती दिनों से जुड़े लोगों को ही टिकट देंगे न कि कहीं टिकट कटने पर टिकट की चाहत में यहां आने वाले को। ऐसे लोगों को पार्टी में समय देना होगा। 

    उन्होंने पहले ही कह रखा है कि मुख्य पार्टियों से पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा करेंगे। इसके तहत गुरुवार को उन्होंने 51 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है। शुक्रवार को दूसरी सूची जारी होगी।