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    Bihar Assembly Elections 2020: राजनीतिक सुचिता के पर्याय थे परमेश्वर कुमर व लहटन चौधरी

    By Dilip ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 05 Oct 2020 01:36 PM (IST)

    60 के दशक से लगातार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे परमेश्वर कुमर और लहटन चौधरी की राजनीतिक सुचिता की आज भी चर्चा कोसी और उत्तर बिहार होती है। कोसी के इन दोनों महान नेताओं ने अंग्रजों की सत्ता को चुनौती देने में अहम भूमिका अदा की थी।

    60 के दशक से लगातार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं परमेश्वर कुमर और लहटन चौधरी ।

    सहरसा [कुंदन कुमार]। आज के राजनीतिक परिवेश में जहां हर प्रत्याशी और दल एक दूसरे को नीचा दिखाने और तिकड़मों से पछाडऩे में एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं। वहीं, 60 के दशक से लगातार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे परमेश्वर कुमर और लहटन चौधरी की राजनीतिक सुचिता की आज भी चर्चा कोसी और उत्तर बिहार होती है। दशकों तक कांटों के संघर्ष के बीच चुनाव लडऩे वाले इन दोनों नेताओं के आपसी प्रेम और सौहार्द की मिसाल दी जाती है।

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    कोसी के इन दोनों महान नेताओं ने अंग्रजों की सत्ता को चुनौती देने में अहम भूमिका अदा की थी। आजादी के बाद संसदीय राजनीति में लहटन चौधरी ने कांग्रेस का दामन थामे रखा तो परमेश्वर कुमर ने सोशलिस्ट पार्टी का झंडा उठा लिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इन दोनों सेनानियों के बीच महिषी विधानसभा क्षेत्र में कांटों का संघर्ष होता रहा।

    जनता की समस्या को लेकर हमेशा एकमत रहे दोनों

    लहटन चौधरी सुपौल से 1952 में विधायक चुने गए। 1957 और 1962 में परमेश्वर कुमर ने धरहरा सुपौल से चुनाव जीते। महिषी विधानसभा गठन के बाद 1967 में भी परमेश्वर कुमर को विजयश्री प्राप्त हुआ। इसके बाद लहटन चौधरी 1972, 1980 और 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीतते रहे। जेपी के समग्र क्रांति के योद्धा के तौर पर परमेश्वर कुमर ने 1977 के चुनाव में लहटन चौधरी को पराजित कर दिया।

    इन दोनों नेताओं ने गांधी, बिनोवा, लोहिया के आदर्शों को जीवन में उतारकर हमेशा क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की। चुनावी प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद विकास व जनता की समस्याओं को लेकर दोनों नेताओं की लगभग एक राय रहती थी। मंत्री रहते जब लहटन चौधरी पर अनियमितता की अंगुली उठी तो परमेश्वर कुमर ने कहा कि कोसी के गांधी का अपमान हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।

    चुनावी अभियान में भी एक साथ प्रचार में निकलते थे दोनों

    परमेश्वर कुमर के सानिध्य में रहने वाले पूर्व प्रमुख सियाराम ङ्क्षसह, जयप्रक्राश कुमर, मो. सुलेमान आदि ने बताया कि उन दोनों नेताओं की उदारता नई पीढ़ी के लिए एक रोचक और आश्चर्यजनक कहानी से कम नहीं है। 1962 के चुनाव परिणाम के बाद दरभंगा कोर्ट में चल रहे चुनावी रिट के क्रम में दोनो हंसी-ठिठोली करते और एक साथ चाय-नाश्ता करते दिखते थे। एक बार चुनाव प्रचार के क्रम में लहटन चौधरी की गाड़ी खराब हो गई। उसी दिन उनके पक्ष में कांग्रेस के बड़े नेता ललित नारायण मिश्र की सभा थी। क्षेत्रीय दौरा के क्रम में परमेश्वर कुमर को जैसे इसकी सूचना मिली उन्होंने अपनी गाड़ी का झंडा उतारकर लहटन चौधरी को उनके सभा स्थल पहुंचाया। एक बार परमेश्वर कुमर और लहटन चौधरी चुनावी प्रचार में आमने-सामने मिले और परमेश्वर कुमर ने अपनी गाड़ी का ईंधन समाप्त होने का जिक्र किया तो लहटन चौधरी ने अपनी गाड़ी से डीजल निकालकर परमेश्वर कुमर की गाड़ी में दिया, ताकि उनके चुनावी प्रचार में कोई बाधा नहीं हो। एक बार तो दोनों एक ही गाड़ी से चुनाव प्रचार में घूमने लगे। जब लहटन चौधरी ने पूछा कि लोग उन दोनों के बारे में क्या सोचेंगे, तो परमेश्वर कुमर ने कहा सोचेंगे क्या आप अपने लिए और हम अपने लिए वोट मांगेंगे।

    इस तरह की मिसाल अब कहानी भर बन कर रह गई है। आज के परिवेश में कोसी क्षेत्र के पुराने लोगों को उन दोनों नेताओं की बड़ी याद सताती है।

     

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