हम अंग्रेजों के जमाने के कालेज हैं... बिहार कृषि महाविद्यालय ने मनाया 117वां स्थापना दिवस, वर्ष 1908 में हुआ स्थापित
BAU Foundation Day बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर ने 117 वर्षों की यात्रा में अन्नदाताओं को संपन्न बनाया है। कृषि शिक्षा और अनुसंधान में गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने के साथ किसानों को यहां के अभिनव नवाचारों से खेती-किसानी में खूब लाभ मिला। कृषि महाविद्यालय की 117 साल की यात्रा में नई पीढ़ी ड्रोन तकनीक तक पहुंच गई है।
संवाद सहयोगी, भागलपुर। BAU Foundation Day बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर ने रविवार को अपना 117वां स्थापना दिवस मनाया। वर्ष 1908 में स्थापित यह संस्थान भारतीय कृषि शिक्षा और अनुसंधान की यात्रा का स्वर्णिम अध्याय माना जाता है। एक सदी से अधिक की इस यात्रा में महाविद्यालय ने न केवल शिक्षा और अनुसंधान में उत्कृष्टता हासिल की है, बल्कि किसानों तक विज्ञानी तकनीकों को पहुंचाने में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।
भारत की पहली संकर आम किस्म से शुरू हुआ नवाचार
वर्ष 1934 में महाविद्यालय ने संकर आम की पहली किस्म महमूद बहार और प्रभासंकर विकसित की, जो आज भी बागवानी अनुसंधान और व्यावसायिक उत्पादन में महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है। इसी तरह धान, गेहूं, मक्का, दलहन, तिलहन, सब्जियां और फलों की कई उन्नत किस्में यहीं विकसित की गई हैं, जिनसे लाखों किसान लाभान्वित हो रहे हैं।
20 हजार से अधिक कृषि विशेषज्ञ तैयार
अब तक संस्थान से 20 हजार से अधिक स्नातक और दो हजार से अधिक स्नातकोत्तर विशेषज्ञ निकल चुके हैं, जो देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, सरकारी विभागों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में योगदान दे रहे हैं। इन विशेषज्ञों के शोध और प्रयासों से भारत की खाद्य सुरक्षा, कृषि सुधार और ग्रामीण विकास को नई दिशा मिली है।
महाविद्यालय ने किसानों के खेतों तक तकनीक पहुंचाने का कार्य किया। हर वर्ष यहां 50 हजार से अधिक किसानों को जैविक खेती, बीज उत्पादन, फसल संरक्षण, उद्यानिकी, पशुपालन और जल प्रबंधन पर प्रशिक्षण दिया जाता है। इसका लाभ न केवल बिहार बल्कि झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के किसानों तक पहुंच रहा है।
नई चुनौतियों से निपटने के लिए आधुनिक तकनीकें
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए संस्थान जलवायु अनुकूल फसल किस्मों और तकनीकों के विकास पर विशेष ध्यान दे रहा है। साथ ही, आधुनिकता को अपनाते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), ड्रोन तकनीक और प्रिसिजन फार्मिंग को अनुसंधान और प्रशिक्षण का हिस्सा बनाया गया है।
महाविद्यालय का इतिहास जहां गौरवान्वित करता है, वहीं वर्तमान की उपलब्धि पर भी गर्व महसूस होता है। इसके सफलता का कारवां दूसरे महाविद्यालयों के लिए प्रेरणा दायक है। महाविद्यालय परिवार को इस अवसर पर बहुत शुभकामनाएं।- डा. डीआर सिंह,कुलपति बीएयू सबौर
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