भागलपुर जिले का 53% क्षेत्र आ सकता है बाढ़ की चपेट में, रंगरा और गोपालपुर सबसे ज्यादा होंगे प्रभावित
भागलपुर जिले में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है जहां लगभग 53% क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के अध्ययन में 11 प्रखंडों में बाढ़ की आशंका जताई गई है जिनमें रंगरा चौक गोपालपुर इस्माइलपुर और सबौर शामिल हैं। बाढ़ से कृषि को भारी नुकसान हो सकता है पर बीएयू ने धान की नई किस्में विकसित की हैं।

ललन तिवारी, भागलपुर। इस बार भागलपुर जिले में बाढ़ का खतरा सामान्य से कहीं अधिक गंभीर होगा। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर द्वारा किए गए वैज्ञानिक अध्ययन में यह बात सामने आई। रडार सैटेलाइट डेटा, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक की मदद से किए गए विश्लेषण में पता चला है कि जिले का लगभग 53 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, जिले के 2569 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 1054 वर्ग किलोमीटर भू-भाग पर बाढ़ का प्रभाव संभावित है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए विश्वविद्यालय ने प्रशासनिक इकाइयों व किसानों को रिपोर्ट सौंप कर अलर्ट किया है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
डिजिटल मैंपिंग पर काम कर रहे विज्ञानी डॉ. बीके. बिमल कहते हैं कि जिले के 16 में से 11 प्रखंड बाढ़ से प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें चार प्रखंडों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक बताई गई है। रंगरा चौक प्रखंड के 120 वर्ग किमी में से 108 वर्ग किमी (90 प्रतिशत) क्षेत्र बाढ़ की जद में आ सकता है। गोपालपुर में 132 में से 117 वर्ग किमी (88 प्रतिशत), इस्माइलपुर में 82 में से 67 वर्ग किमी (81 प्रतिशत) और सबौर में 115 में से 86 वर्ग किमी (75 प्रतिशत) भूभाग पर बाढ़ का असर संभावित है।
इसके अलावा सुल्तानगंज, नारायणपुर, बिहपुर, पीरपैंती, कहलगांव और नाथनगर प्रखंडों में भी औसत से अधिक प्रभावित क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं।
बाढ़ का असर सबसे ज्यादा कृषि पर
बाढ़ का सबसे गहरा असर कृषि क्षेत्र पर पड़ने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार, धान, मक्का, दलहन और सब्जी की फसलों का नुकसान हो सकती हैं। किसानों को राहत देने के लिए बीएयू ने धान की चार नई जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की हैं जो बाढ़ की स्थिति में भी बेहतर उत्पादन देने में सक्षम हैं। ये किस्में 15 दिनों तक जलभराव सहन कर सकती हैं और बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए व्यवहारिक विकल्प बन सकती हैं।
बीएयू सिर्फ खतरे का पूर्वानुमान नहीं किया है, बल्कि समाधान के स्पष्ट सुझाव भी दिए हैं। यदि जिला प्रशासन, कृषि विभाग, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और किसान सामूहिक रूप से कार्य करें, तो बड़े स्तर पर होने वाले नुकसान को काफी हद तक टाला जा सकता है।
रिपोर्ट में फसल बीमा का सक्रिय क्रियान्वयन, समय पर बीज वितरण, फसल चक्र में रणनीतिक बदलाव और बाढ़ पूर्व जल निकासी की ठोस व्यवस्था को तात्कालिक प्राथमिकता में लाने की जरूरत बताई गई है।
बिहार की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि प्रदेश का एक हिस्सा बाढ़ से तो दूसरा हिस्सा सूखे से जूझता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी किसानों को स्थिर उत्पादन मिल सके, इसके लिए विश्वविद्यालय सतत प्रयासरत है। वैज्ञानिक शोध के सकारात्मक परिणाम अब जमीन पर दिखने लगे हैं। - डॉ. डी.आर. सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर
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