बिना मिट्टी, बिना जगह: अब हर किचन बनेगा मिनी फार्म
हरा-भरा पोषण सीधे घर से हासिल करने की यह नई सुविधा है माइक्रोग्रीन्स। भागलपुर जिले के सबौर प्रखंड के बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों ने यह तकनीक विकसित की है, जो घर की रसोई, बालकनी या छत को मिनी-फार्म में बदल देगी।
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ललन तिवारी, भागलपुर। डाइनिंग टेबल पर रखी एक छोटी-सी ट्रे में हरी पत्तियां लहरा रही हों और उन्हें बस कैंची से काटकर थाली में डाल दी जाएं। न बाजार जाने की चिंता, न कीटनाशक के असर का डर।
हरा-भरा पोषण सीधे घर से हासिल करने की यह नई सुविधा है माइक्रोग्रीन्स। भागलपुर जिले के सबौर प्रखंड के बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों ने यह तकनीक विकसित की है, जो घर की रसोई, बालकनी या छत को मिनी-फार्म में बदल देगी। थोड़ा सा पानी और थोड़ी देखभाल से मात्र सात से दस दिनों में पौष्टिक पत्तियां तैयार मिल जाएंगी।
कैसे उगते हैं माइक्रोग्रीन्स
बीजों को रात भर पानी में भींगो दें। सुबह उन्हें साफ पानी से धोकर ट्रे या टिश्यू पर फैला दें। जरूरत भर उसमें पानी देते रहें। कुछ ही दिनों में दो से तीन इंच लंबे ऐसे पौधे तैयार हो जाते हैं, जिन्हें सीधे भोजन में उपयोग किया जा सकता है। इसमें न मिट्टी चाहिए, न खाद। कम मेहनत में अधिक पोषण आसानी से संभव हो जाता है।
क्या-क्या उगाये जा सकते हैं
माइक्रोग्रीन्स की सैकड़ों किस्में उपलब्ध हैं। इस विधि से ब्रोकली, पालक, गोभी, मूली, चुकंदर, शलजम जैसी सब्जियां या धनिया, तुलसी, लेमन बाम जैसी जड़ी-बूटियां भी उगाई जा सकती हैं। इस तकनीक से मटर, चना, गेहूं, जौ, बीन्स और सूरजमुखी जैसे अनाज भी आसानी से उगाए जा सकते हैं। घर की पसंद के अनुसार विविध विकल्प मौजूद हैं।
पोष्टिकता का नया स्रोत
पारंपरिक सब्जियों की तुलना में माइक्रोग्रीन्स में चार से चालीस गुना अधिक विटामिन, मिनरल्स और एंटीआक्सिडेंट पाए जाते हैं। यह हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर के जोखिम को कम करने में सहायक माना जा रहा है। साथ ही पाचन क्षमता, त्वचा और प्रतिरोधक तंत्र को भी मजबूत बनाता है। इसलिए यह बच्चों, बुजुर्गों और कामकाजी लोगों के लिए आदर्श भोजन है।
कम जगह, कम खर्च, बड़ा फायदा
शहरों में जहां जगह कम और मांग ज्यादा होती है, वहां यह तकनीक काफी उपयोगी साबित हो रही है। टेबल, खिड़की, बालकनी या छत पर इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
पानी कम लगता है और कीटनाशकों का उपयोग नहीं होता। स्थानीय स्तर पर ताजी सब्जियां उपलब्ध होने से परिवहन खर्च और कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है। यह शहरी आबादी के लिए सचमुच एक बेहतर विकल्प साबित हो रहा है।
घरेलू स्तर पर रोजगार की संभावना
गृहणियां, युवा और छोटे किसान कम लागत में माइक्रोग्रीन्स का उत्पादन कर आय का नया जरिया बना रहे हैं। होटल, जूस बार और स्वास्थ्य-केन्द्रित रेस्तरां में इसकी मांग निरंतर बढ़ रही है। इसलिए उद्यमिता के रूप में भी यह क्षेत्र काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
तकनीक कहां विकसित हुई
कृषि अनुसंधान संस्थान, मीठापुर पटना में शहरी उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर माइक्रोग्रीन्स उत्पादन तकनीक विकसित की गई है। निदेशक डॉ. एसएन. दास के नेतृत्व में वरीय सब्जी वैज्ञानिक डॉ. संगीता कुमारी, सहयोगी मृदा वैज्ञानिक डॉ. निखत यास्मीन और तकनीकी सहायक मधु कुमारी की टीम ने इस पर कार्य किया है। इस तकनीक का शुभारंभ पटना से किया जाएगा तथा धीरे-धीरे इसे पूरे राज्य में विस्तार दिया जाएगा।

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