नाथनगर में टीले के नीचे दफन है 2800 वर्ष से भी अधिक पुराना इतिहास
प्राचीन अंग जनपद की राजधानी (वर्तमान में चंपानगर का क्षेत्र) स्थित एक बड़े से टीले को महाभारत काल के योद्धा कर्ण का गढ़ कहा जाता है। मान्यता है कि चंपा ...और पढ़ें

भागलपुर। प्राचीन अंग जनपद की राजधानी (वर्तमान में चंपानगर का क्षेत्र) स्थित एक बड़े से टीले को महाभारत काल के योद्धा कर्ण का गढ़ कहा जाता है। मान्यता है कि चंपापुरी (चंपानगर) स्थित इस जगह पर महाभारत के यशस्वी पात्र कर्ण का राजमहल हुआ करता था। पर सरकारी उपेक्षा के कारण करीब 2800 वर्ष पुराना इतिहास टीले के नीचे दफन है।
गंगा और चंपा नदी से घिरा यह शहर अतिप्राचीन है। करीब 10 किलोमीटर के क्षेत्र में चंपानगरी शहर बसाया गया था। पुरातत्वविद भी टीले के नीचे भव्य महल होने की संभावना जता चुके हैं। गढ़ के चारो ओर दीवार पुरानी ईट, मिट्टी के बर्तन आदि मिलने का सिलसिला अभी भी जारी है। अपने समृद्ध इतिहास को करीब से जानने-समझने के लिए पांच बार इस स्थल की खोदाई शुरू हुई, पर हर बार इसे बीच में ही रोक दिया गया।
तीन वर्ष पहले सरकार ने हकीकत तलाशने को कराया था सर्वे
हाल के दिनों में पर्यटन विभाग के सचिव पंकज कुमार यहां आए थे। उनसे हुई बातचीत के बाद सदर अनुमंडल पदाधिकारी सुहर्ष भगत ने कर्णगढ़ सहित कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों को विकसित करने का प्रस्ताव भेजा था। पर्यटन सचिव के निर्देश पर एक टीम यहां आई थी। पर्यटन सचिव को बताया गया कि नाथनगर के कर्णगढ़ की महत्ता इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह क्षेत्र बिहुला-विषहरी-पूजा और उसके इतिहास से भी जुड़ा है। वर्तमान में कर्णगढ़ में सिपाही प्रशिक्षण विद्यालय (सीटीएस) चल रहा है।
पुरातत्व विभाग ले गया था अवशेष
बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग की टीम के साथ इतिहासकारों और अधिकारियों ने स्थानीय मान्यताओं के आधार पर सर्वेक्षण किया था। पुरातत्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर अतुल कुमार सिन्हा ने 2017 में जिले के 240 धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का सर्वेक्षण किया था। टीम के सदस्य रहे रांची विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के व्याख्याता अरविद कुमार सिन्हा ने बताया कि दानवीर कर्ण का इतिहास काफी पुराना है। यहां कई राजाओं का राज हुआ था, जिसमें दानवीर कर्ण भी एक होंगे। सर्वेक्षण के क्रम में इस बात का अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाया है।
नाथनगर के नरगा और मखदूम शाह दरगाह के आसपास 600 बीसी से भी पुराना अवशेष मिला है। कर्णगढ़ के आसपास सुसज्जित शहर बसा था। यहां राजा के महल के चारों ओर मोहल्ले हुआ करते थे। इस की भौगोलिक स्थिति और नक्शे के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है। सीटीएस के पीछे पश्चिमी दिशा में 40 से 50 फीट ऊंचे टीले की खोदाई करने के बाद आज भी अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा अब तक 4 से 5 बार खोदाई की गई है। 1970 में पुरातत्व विभाग के बीपी सिन्हा ने खोदाई करवाई थी। पर सरकार ने खोदाई मद की राशि बीच में ही देनी बंद कर दी। जिसके कारण खोदाई का कार्य अधूरा रह गया।
उन्होंने बताया कि सीटीएस के कारण यहां करणगढ़ का अवशेष सुरक्षित है। खोदाई स्थल पर अभी दीवार दिख रही है।
उन्होंने बताया कि भागलपुर जिले के 240 स्थलों की सर्वे रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है। 2018 में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के साथ सर्वे टीम की बैठक हुई थी, जिसमें सभी रिपोर्ट पर चर्चा हुई थी।
डीआइजी ने पुरातत्व टीम के साथ किया सर्वे
कर्णगढ़ और इसके आसपास के क्षेत्र में भागलपुर के तत्कालीन डीआइजी विकास वैभव के साथ पटना विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के एस्क्यूटिव डायरेक्टर विजय कुमार चौधरी ने सर्वे किया था। इस दौरान भी कई अवशेष मिले थे। ईट और कुछ मिट्टी के बर्तनों के अवशेष को टीम साथ ले गई थी।
चौधरी ने बताया था कि जो अवशेष मिले हैं वह बेहतरीन हैं। ऐतिहासिक स्थल की पूर्ण रूप से खोदाई की आवश्यकता उन्होंने महसूस की थी। टीम के सदस्य कुषाण काल के अवशेष 17 अगस्त 2019 को पटना ले गए थे।
इधर, इतिहास के जानकार राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि कर्ण गढ़ के टीले की खोदाई में पतली सी दीवार, मिट्टी के बर्तन, मिट्टी का खिलौना, गहना बनाने के लिए पत्थर का सांचा आदि मिला था। तीन मूर्तियां भी मिली थी। एक हाथी के दांत और दो पत्थर से बनी मातृ देवी की प्रतिमा थी। क्योंकि राजा कर्ण देवी के उपासक थे। शक्ति पूजन होने का यह भी सूचक है। पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के बीपी सिन्हा की देखरेख में खुदाई तो हुई। जब अवशेष को पटना ले जाया गया था। लेकिन प्रतिमा कहां है इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है।
खोदाई के बाद बीपी सिन्हा ने एक किताब के लिखा था कि राशि के अभाव में काम रोकना पड़ा। जबकि यहां पर्याप्त मात्रा में अवशेष मिलने की संभावना है। राजेंद्र सिंह ने कहा कि क्या सरकार इतनी भी सक्षम नहीं है कि वह दानवीर कर्ण के अतीत को सामने ला सके।

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