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    दूधिया मालदा आम को विलुप्त होने से बचाएगा BAU, बागवानों के घर तैयार हो रहे पौधे; GI टैग की प्रोसेस तेज

    Updated: Mon, 15 Dec 2025 01:04 PM (IST)

    भागलपुर के दूधिया मालदा आम को विलुप्त होने से बचाने के लिए बीएयू आगे आया है। विश्वविद्यालय बागवानों के घर पर ही पौधे तैयार करवा रहा है। साथ ही, इस आम ...और पढ़ें

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    बिहार कृषि विश्वविद्यालय। फाइल फोटो

    ललन तिवारी, भागलपुर। पटना के दीघा की पहचान और बिहार की विरासत माना जाने वाला दूधिया (सफेद) मालदा आम के वजूद पर संकट गहराने लगा है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण, घटती कृषि भूमि और पुराने बागों के कटान ने इस विशिष्ट खुशबू और स्वाद वाले आम को लगभग विलुप्ति के कगार पर ला खड़ा किया है। लेकिन अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर ने इसे बचाने की ठोस पहल शुरू कर दी है।

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    विश्वविद्यालय एक ओर जहां दूधिया मालदा को जीआई टैग दिलाने की अंतिम प्रक्रिया में जुटा है, वहीं दूसरी ओर इसे संरक्षित करने और बड़े पैमाने पर विस्तार देने के लिए बागवानों के घर पर ही उसी पेड़ से पौधा तैयार करने का सफल प्रयोग भी कर रहा है। इससे न सिर्फ इस अतिस्वादिष्ट फल का संरक्षण होगा, बल्कि रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।

    चुनौती को अवसर में बदल रहा BAU

    दीघा की मिट्टी की खासियत और वहां की जलवायु में पनपा दूधिया मालदा आम अपने अनूठे स्वाद, दूधिया रंग और सुगंध के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। बावजूद इसके, शहरीकरण के दबाव में जमीन सिकुड़ने से पुराने आम के पेड़ लगातार कट रहे हैं और नए बाग लगाना लगभग असंभव होता जा रहा है।

    इसी चुनौती को अवसर में बदलते हुए बीएयू सबौर और कृषि अनुसंधान संस्थान (एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट) पटना ने मिलकर आन-फार्म नर्सरी मॉडल पर काम शुरू किया है।

    दीघा के बागवान सुधीर के बाग में प्रयोग के तौर पर करीब 10 हजार दूधिया मालदा के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इन पौधों को बिहार सहित अन्य राज्यों में भी भेजा जाएगा, जिससे इस दुर्लभ आम का विस्तार संभव हो सकेगा।

    GI टैग के लिए अंतिम चरण में काम 

    एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट, पटना के निदेशक डॉ. एसएन. दास कहते हैं कि बढ़ती आबादी और शहरीकरण के कारण दीघा में जमीन लगातार कम हो रही है। पुराने आम के पेड़ कटते जा रहे हैं और नए बाग लगाना संभव नहीं हो पा रहा।

    रिसर्च सेंटर में पौधा तैयार किया जा रहा है, लेकिन मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पा रही है। अब बागवानों के बाग में ही पौधा तैयार कर यह समस्या दूर की जा रही है, जिससे रोजगार भी बढ़ेगा और विस्तार भी होगा।

    बीएयू के जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि दूधिया मालदा को जीआई टैग दिलाने के लिए आवश्यक दस्तावेजीकरण और बैठकें पूरी हो चुकी हैं। जल्द ही इसके लिए औपचारिक आवेदन किया जाएगा, जिससे इस आम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल सकेगी।

    दूधिया मालदा का संरक्षण, विस्तार और उससे जुड़े रोजगार व स्वरोजगार सृजन पर विश्वविद्यालय काम कर रहा है। जीआई टैग मिलने से बिहार की इस धरोहर को कानूनी सुरक्षा और विशिष्ट पहचान मिलेगी। बीएयू इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। -डॉ. डीआर. सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर