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    Banyan tree: वट सावित्री पूजा के दौरान क्‍यों की जाती है बरगद वृक्ष की पूजा, आध्‍यात्मिक वृक्ष के रूप में होती है पहचान

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 08 Jun 2021 08:53 AM (IST)

    वट सावित्री का व्रत सुहागिनों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करतीं हैं। सुहाग की रक्षा के लिए वटवृक्ष से मन्नत भी मांगती हैं। बरगद हमें ऑक्सीजन का ज्‍यादा देती है। इससे पर्यावरण सुरक्षा होता है।

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    बरगद का वृक्ष पर्यावरण के लिए ज्‍यादा लाभकारी है।

    सिकटी (अररिया) [दीपक कुमार]। वट सावित्री से लेकर पर्यावरण शुद्धि तक बरगद पेड की अहम भूमिका है। बरगद का वृक्ष मानव जाति के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। यह वातावरण को दूषित होने से बचाता है। गांव ही नहीं बल्कि शहरों में बरगद के वृक्ष देखे जा सकते हैं।

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    भारतीय संस्कृति में वट सावित्री का व्रत सुहागिनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर सुख समृद्धि की जहां कामना करती हैं ,वहीं अपने सुहाग की रक्षा के लिए वटवृक्ष से मन्नत भी मांगती हैं। बरगद हमें ऑक्सीजन की पूर्ति करते हैं, इसको लेकर महिलाओं ने इस बार की वट सावित्री पूजा के दिन पर्यावरण संरक्षण के लिए दैनिक जागरण की पहल पर बरगद का पौधा रोपण का संकल्प लिया है।

    धार्मिक मान्यता: वट सावित्री व्रत में वटवृक्ष ( बरगद) का खास महत्व होता है। इस पेड़ में लटकी हुई शाखाओं को सावित्री देवी का रूप माना गया है। वहीं पौराणिक मान्यताओं अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास भी माना जाता है। इसलिए कहते हें कि इस पेड़ की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

    गुणों क़ा खान, बरगद महान: सिकटी पीएचसी प्रभारी डॉ विजेंद्र पंडित कहते हैं कि बरगद क़ा पेड़ अन्य स्वस्थ पेड़ो की तुलना में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है, जो प्राणवायु है। यह प्रतिदिन 800 लीटर से अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है। यह पतझड़ और अकाल के समय भी हराभरा रहता है। इसकी पत्तियों में पाया जाने वाला तत्व हेक्सेन, ब्युटेनोल, क्लोरोफार्म और पानी इम्यूनिटी पावर के लिए मददगार है। बरगद के जड़ क़ा अर्क पीने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है। पेड़ से निकलने वाला सफेद पदार्थ क़ा प्रयोग डायरिया व बवासीर की समस्या दूर करता है। वहीं दातुन के लिए इसके तनों क़ा इस्तेमाल किया जाता है।

    कहां और कैसे लगाएं : बीएओ आरके सिंह कहते हैं कि बरगद का पौधा लगाने के लिए खास मशक्कत की जरूरत नहीं होती है। एक या दो फुट का गड्ढा खोदकर उसमें गोबर की खाद मिट्टी मिलाकर भर दी जाती है। इसके बाद पौधा रोपित कर पानी डाल दें। अगर हो सके तो ऐसे स्थान पर बरगद लगाना चाहिए जहां स्थान अधिक हो। पर्यावरण शुद्धि के लिए कम से कम 50 मीटर की दूरी पर एक पौधा अवश्य रहना चाहिए।

    साधारण नाम व जीवन काल : वटवृक्ष को कई नामों से जानते हैं। हिंदी में बरह, उर्दू में बरगद तो संस्कृत में इसे वट कहते हैं।

    महिलाओं ने लिया संकल्प: कुर्साकांटा की रहने वाली गृहिणी सुनीता देवी ने बताया कि बरगद एक वृक्ष ही नहीं बल्कि लोगों को जीवन देने वाला एक अनमोल धरोहर है। यह कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है और अधिक मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ता है। इस वृक्ष के लगाने से जहां हजारों-लाखों लोगों की जिदगी बचाई जा सकती है। वहीं पर्यावरण को भी यह बरगद संतुलित करता है। वट सावित्री पूजा के दिन दैनिक जागरण की पहल पर एक बरगद का पौधा अवश्य लगाऊंगी।

    एलएस सत्यम कंचन जागरण के पहल की प्रशंसा करते हुए कहती है कि सामाजिक सरोकारों में जागरण की अहम भागीदारी है। एक बरगद का पौधा लगाएंगे जिससे पर्यावरण का संरक्षण हो सके।

    ठेंगापुर की संगीता देवी कहती है कि वटवृक्ष की विशेषताओं का कोई अंत नहीं। वट वृक्ष का पूजन लंबी आयु  सुख समृद्धि व अखंड सौभाग्य के लिए प्राचीन काल से स्त्रियां करती आ रही हैं।

    कुआड़ी निवासी नीतू गुप्ता कहती है कि बरगद हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। बरगद 10 जून को हर हाल में लगाया जाएगा। वट वृक्ष से हमे आक्सिजन के साथ साथ वट सावित्री की पूजा करने से लेकर छांव तक मिलता है।