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    अंखफोड़वा कांड भागलपुर : चाड़ा बडग़ांव के अर्जुन की पहले फोड़ी गई थी आंखें, आज भी सुनकर सिहर जाते हैं लोग

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 11 Dec 2020 09:53 AM (IST)

    अंखफोड़वा कांड भागलपुर शाहकुंड-सजौर क्षेत्र अर्जुन गोस्वामी को पुलिस टीम 25 अक्टूबर 1979 को घर से थाने लाई थी। अर्जुन को कई पुलिसकर्मियों ने बेरहमी से पिटाई की। उसके बाद आंख को टकुआ से फोड़ दिया था। फि‍र तेजाब दे दिया।

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    25 अक्टूबर 1979 को अंखफोड़वा कांड की हुई थी शुरुआत

    भागलपुर, जेएनएन। अंखफाेड़वा कांड भागलपुर : अपराधग्रस्त भागलपुर में तब छह इंच छोटा करने का दौर था। जरायम पेशेवरों का आतंक काफी था। दियारा में सक्रिय सुदामा मंडल गिरोह समेत एक दर्जन से अधिक गिरोह का आतंक कायम था। उनसे निपटने के लिए पुलिस ने कानून का सहारा लेने के बजाय अंखफोड़वा कांड को अंजाम दे दिया था। तब भागलपुर के एससपी आरबी राम हुआ करते थे। पुलिस 33 लोगों को पकड़-पकड़कर थाने लायी थी और उनकी आंखों को टकुआ से फोड़ उसमें तेजाब डाल दी थी। पुलिस टीम ने उस दौरान कई निर्दोषों की भी आंखें फोड़ डाली थी। जिसके बाद अधिकांश आतंक मचाने वाले अपराधी दियारा में छिप गए थे।

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    25 अक्टूबर 1979 को पुलिस ने की थी पहली बर्बर कार्रवाई

    शाहकुंड-सजौर क्षेत्र के चाड़ा बडग़ांव निवासी अर्जुन गोस्वामी को पुलिस टीम 25 अक्टूबर 1979 को घर से खींच कर थाने लाई थी। अर्जुन को तब पांच-छह पुलिसकर्मियों ने पहले बेरहमी से पिटाई की थी फिर उसकी आंख को टकुआ से फोड़ दिया था। दर्द से कराह रहे अर्जुन की लहूलुहान आंखों में तेजाब डाल उसे सदा के लिए नेत्रहीन बना डाला था। उसे पुलिस 26 अक्टूबर 1979 को व्यवहार न्यायालय भागलपुर में पेश किया गया था। वहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था।

    पुलिस की दूसरी बर्बर कार्रवाई सन्हौला में जनवरी 1980 में हुई थी

    सन्हौला थाना क्षेत्र निवासी शैलेश तांती की आंखें उसी तरह फोड़ डाली गई। उसे भी घसीट कर थाने लाया गया था। पुलिस की बर्बर कार्रवाई की भनक तत्कालीन डीआइजी गजेंद्र नारायण को लग चुकी थी। उन्होंने मामले में संज्ञान लेते हुए एसपी आरबी राम को शोकॉज किया था। वरीय अधिवक्ता रामकुमार मिश्रा पीडि़तों की लड़ाई लड़ते कई झंझावात झेल मामले में पत्राचार करना नहीं छोड़ा। मिश्रा कहते हैं कि घटना को लेकर डीआइजी गजेंद्र नारायण तब काफी आक्रोश का इजहार किया था लेकिन आंखें फोडऩे का सिलसिला थमा नहीं। अलबत्ता डीआइजी के कदम रहस्यमय तरीके से जरूर तब थम गए थे। पुलिस टीम तब एक के बाद करके अपनी बनाई सूची वाले लोगों को पकड़-पकड़ कर आंखें फोड़ती चली गई। जनवरी 1980 में मंटू हरि को सलेमपुर से उठा कर उसकी आंखें फोड़ दी। फरवरी 1980 में देवी बाबू धर्मशाला में पुलिस पदाधिकारियों ने इसको लेकर मीटिंग की थी। उसमें आंखें फोड़े जाने का सिलसिला जारी रखने का अंदर ही अंदर फैसला ले लिया गया था। 15 फरवरी 1980 को बरारी के मायागंज निवासी उमेश यादव की आंखें फोड़ दी गई। उसे तिलकामांझी चौक पर पुलिस वालों ने पहले बेरहमी से पीटा फिर आंखें फोड़ डाली थी। 10 जून 1980 को मांगन मियां की नवगछिया में आंखे फोड़ी गई थी। एसपी आरबी राम के कार्यकाल में 12 लोगों की आंखें फोड़ी गई थी। अब सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई अर्जी पर सुनवाई होते ही एक बार फिर 40 साल पूर्व हुए इस कांड की परत खुलने की संभावना प्रबल हो गई है। जिंदा बचे 18 पीडि़तों के भी पुनर्वास की आस जग गई है।

     

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