Know Your District: घास से बन गया इस जिले का नाम, टोडरमल और मां कात्यायनी की भूमि है खगड़िया
Know Your District बिहार के खगडि़या जिले की बनने की कहानी में किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह पहले मुंगेर का हिस्सा था। पैमाइश नहीं होने के कारण राजा टोडरमल ने इस क्षेत्र को फरक कर दिया था। यहां खगड़ा घास काफी है इस कारण इसका नाम खगडि़या बना।
अमित झा, खगड़िया। जानिए... बिहार के इस जिले को। फरकिया के नाम से विख्यात खगड़िया जिला 10 मई 1981 को जिला बना। जिला बनने के पूर्व खगड़िया मुंगेर जिला का अंग था। 10 मई 1981 को यह मुंगेर से अलग होकर जिला बना था। तबसे आज तक खगड़िया विकास की पथ पर अग्रसर है। शहरी क्षेत्र का विस्तार होने के बाद अब खगड़िया दो अनुमंडल के साथ दो नगर परिषद, चार नगर पंचायत और 115 पंचायत वाला जिला है।
खगड़िया नगर परिषद 26 के बदले 39 वार्डों का है। जबकि गोगरी नगर पंचायत को नगर परिषद का दर्जा मिलने के बाद अब 20 वार्डों के बदले 36 वार्ड है। मानसी, अलौली, बेलदौर और परबत्ता चार नई नगर पंचायतें बनी हैं। सात-सात नदियों से घिरे खगड़िया जिले में चार नदियों का संगम जिला क्षेत्र में होता है। 56 धारा व उपधारा बहती है। इस कारण खगड़िया को नदियों का नैहर भी कहा जाता है। यहां बूढ़ी गंडक गोगरी के पास गंगा से संगम करती है। कमला नदी भी सोनमनकी से आगे बागमती में मिलती है। जबकि सोनवर्षा (चौथम प्रखंड) के पास बागमती का संगम कोसी से होता है। बेलदौर के कंजरी-गवास गांव के पास काली कोसी नदी कोसी में मिलती है। इस मायने में जिला अद्भूत माना जाता है। जिले का 1486 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है। आबादी 17 लाख है। 56 धारा-उपधारा है।
नदियों व धाराओं के जाल ने टोडरमल को किया विवश
यहां की प्रमुख नदियां, धारा-उपधारा कोसी, कमला, करेह, काली कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक, गंगा प्रमुख नदियां हैं। इसके साथ ही मालती नदी, खर्रा धार, भगीरथी, कठनई, हाहाधार, मंदरा धार आदि जिले को सिंचित करती है। कलकल-छलछल बहती नदियां-धारा-उपधारा खगड़िया की विशिष्ट पहचान है। कहते हैं कि अकबर महान के मंत्री राजा टोडरमल जब खगड़िया पहुंचे, तो यहां नदियों, धारा-उपधारा के जाल-संजाल के कारण इसकी मापी नहीं कर सके और इसे राजस्व की दृष्टि से अनुपयोगी मानते हुए ‘फरक’ (अलग) कर दिया। जिसके कारण यह फरकिया कहलाने लगा।
खगड़ा घास के नाम पर बना खगड़िया
खगड़िया का नाम खगड़ा नामक घास से पड़ा है। कहा जाता है कि जब यहां आबादी कम थी तब यहां खगड़ा घास की अधिकता थी। इसे रास्ते से गुजरने वाले लोग खगड़ा घास अधिक होने के कारण इसे खगरहिया मतलब खगड़ा वाला राह कहते थे। बाद में यह खगड़िया कहा जाने लगा।
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यहां के मक्का व मछली की है पहचान
यहां का मक्का और मछली जिले की पहचान है। यहां 50 हजार हेक्टेयर में मक्का की खेती होती है। मक्का उत्पादन में जिले के बेलदौर प्रखंड का नाम एशिया स्तर पर है। इसलिए यहां के लोग इसे ‘पीला सोना’ कहते हैं। खगड़िया मछली उत्पादन में भी विशिष्ट स्थान रखता है। देसी मछलियों की कई प्रजाति आज भी यहां भरमार में है। जिसमें सिंगी, मांगुर, पोठी, गैंचा, रीठा, बचवा, सुइया, कौआ, बुआरी आदि प्रमुख हैं। 20 हजार मीट्रिक टन सालाना यहां मछली का उत्पादन होता है।
मां कात्यायनी स्थान और मुगलकालीन भरतखंड का महल है पहचान
जिले के चौथम प्रखंड क्षेत्र बागमती किनारे स्थित प्रसिद्ध मां कात्यायनी स्थान सिद्ध पीठ माना जाता है। जिसकी ख्याती दूर दूर तक है। कहा जाता है कि सति की भुजा यहां गिरी थी। जिसे लेकर यहां की महत्ता है। वहीं परबत्ता प्रखंड अंतर्गत भरतखंड स्थित मुगल काल में बना बाबू बैरम सिंह का महल ऐतिहासिक धरोहर है। 52 कोठली और 53 द्वार होने के कारण यह 52 कोठली और 53 द्वार के नाम से जाना जाता है। जो पांच बीघा पांच कट्ठा पांच धूर व पांच धूरकी में बना है। इसमें 52 तरह के ईंट का प्रयोग हुआ है और राख चूना सरखी से बना है।
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