Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अकबर के दीवान ने रखा था बिहार के इस जिले का नाम फरकिया, जहां अब लोगों ने निगल ली नदियां

    By Shivam BajpaiEdited By:
    Updated: Sat, 11 Dec 2021 08:24 AM (IST)

    कहते हैं अकबर के दीवान जब बिहार के नदियों के प्रदेश में आए तो उन्हें जमीन मापी करने के लिए काफी समस्या हुई। चारों ओर सिर्फ नदियां ही नदियां थीं। इसलिए उन्होंने एकाएक जिले को फरकिया कहकर संबोधित किया।

    Hero Image
    नदियों के प्रदेश में आते थे नेपाल से बड़े-बड़े जहाज।

    निर्भय, जागरण संवाददाता, खगड़िया: सुनने में यह आश्चर्य जरूर लगेगा, लेकिन सच है, फरकिया अर्थात खगड़िया में लोगों ने नदियां ही 'निगल' लीं हैं। कहा जाता है कि जब अकबर के दीवान (मंत्री) राजा टोडरमल मापी करते-करते खगड़िया पहुंचे थे, तो नदियों, धाराओं-उपधाराओं की लंबी-लंबी श्रृंखलाओं के कारण यहां की मापी नहीं कर सके और इसे राजस्व की दृष्टि से अनुपयोगी मानते हुए फरक (अलग) कर दिया। जिसके कारण यह फरकिया कहलाने लगा। तबसे आज तक कोसी-गंगा होकर न जाने कितना पानी गुजर चुका होगा। लेकिन, 21वीं सदी में देखते ही देखते कथित विकास, भू-माफिया की करतूतों ने छोटी-छोटी नदियों को निगल लिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बड़ी नदियों के सहज-सरल प्रवाह मार्ग में चट्टानें खड़ी कर दी। खगड़िया शहर के सीमान होकर बूढ़ी गंडक गुजरती हैं। आज बूढ़ी गंडक के प्रवाह मार्ग पर अट्टालिकाएं खड़ी की जा रही हैं। बुढ़िया (बूढ़ी गंडक) जार-बेजार होकर रो रही है। इस करुण क्रंदन को कोई सुनने वाला नहीं है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि 'नदियों के मातृक प्रदेश' अर्थात खगड़िया में देखते ही देखते कई स्थानीय नदियां विलुप्त हो गई।

    समाजशास्त्री डा. अनिल ठाकुर कहते हैं, 'इन नदियों के विलुप्त होने से देशज संस्कृति का ताना-बाना भी नष्ट हुआ है। लोक संस्कृति पर गहरा आघात भी पहुंचा है। अब कोसी मेला और कमला माई का पूजन कहीं-कहीं वयोवृद्ध महिला-पुरुषों के लोककंठ में ही विराजमान हैं।'

    दशकों पहले खगड़िया शहर तक जलमार्ग से व्यापार होता था। नेपाल से आकर नावें यहां लगती थी। नदियों के अध्येता कृष्ण मोहन सिंह 'मुन्ना' कहते हैं, 'वर्तमान सन्हौली दुर्गा मंदिर के पास घाट था, जहां बड़ी-बड़ी नावें लगती थी और यहां से छोटी-छोटी नावों के माध्यम से माल अन्यत्र भेजे जाते थे। दुर्गा मंदिर के आसपास कमला की धारा बहती थी, जिसे लोग सन्हौली मोइन के नाम से पुकारते थे। अब सन्हौली मोइन में शहर बस गया है। यह शहर 21वीं सदी में बसा है। भू-माफियाओं ने न जाने कहां-कहां से कागज-पत्तर जुटाकर सन्हौली मोइन की जमीनें बेच डाली है। एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है। पहले बाढ़ आने पर सन्हौली मोइन पानी को स्टोर करता था, लोगों को थोड़ी बहुत राहत मिलती थी, अब अगर बाढ़ आ जाए, तो पक्के मकान के ऊपर से पानी बह जाएगा।'

    खैर, मालती धार जो परमानंदपुर के पास बूढ़ी गंडक से संगम करती थी, अब बरसाती नदी बनकर रह गई है। मालती के बहाव क्षेत्र में घर-आंगन बस गए हैं। मानसी के पास मंदरा धार को अतिक्रमित कर पूरा गांव बस गया है। ये उदाहरण हैं। बेलदौर के महिनाथ नगर होकर बहने वाली कठिनई नदी में अब बरसात के मौसम में ही थोड़ा बहुत पानी रहता है। कुछ दशक पहले तक यह बारह मासा नदी थी। अब एक शोक गीत बनकर रह गई है। सन्हौली मोइन, मालती, मदरा, कठिनई आदि शोक गीतों का कोरस है।

    • फरकिया मानें खगड़िया सात नदियों- 1. गंगा, 2. कमला,  3.कोसी, 4. बूढ़ी गंडक, 5. करेह,  6. काली कोसी,  7. बागमती से घिरा हुआ है।

    'कथित विकास के साथ लालच बढ़ा है। इस लालच के कारण जमीन की, खासकर शहरों में कीमतें आसमान छू रही है। आसमान छूती कीमतों ने एक नए जमींदार वर्ग को पैदा किया है। यह जमींदार वर्ग नदी-नाला हर चीज को बेचने को तैयार है। नदियां जब मरती है, तो उसके साथ-साथ संस्कृति भी मरती है।'- डा. अनिल ठाकुर, समाजशास्त्री।