खगडि़या : दुर्गा पूजा में विशेष परंपरा, संध्या आरती में उत्पन्न हो जाता है अद्भुत दृश्य, होता है महिषासुर वध
खगडि़या के चौथम में दुर्गा पूजा पर कई विशेष अयोजन होता है। यहां देवी दुर्गा की पूजा के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं। संध्या आरती के समय काफी भीड़ रहती है। यहां महिषासुर का वध किया जाता है।

संवाद सूत्र, चौथम (खगड़िया)। खगडि़या का चौथम दुर्गा स्थान का अपना-अलग महात्म्य है। शारदीय नवरात्र के दौरान यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मैया की दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटे हैं। यहां की संध्या आरती प्रसिद्ध है। यहां वैदिक व तांत्रिक दोनों विधि से मां की पूजा-अर्चना होती है। बनारस से पंडितगण पधारे हैं। शारदीय नवरात्र के दौरान प्रत्येक दिन दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ किया जाता है।
चौथम के तत्कालीन राजा सुरेंद्र नारायण सिंह नि:संतान थे। प्रखंड के सरैया दुर्गा स्थान में उन्होंने मन्नत मांगी कि, अगर संतान प्राप्ति होगी तो वे भी उनकी स्थापना कर पूजा अर्चना करेंगे। वर्ष 1942 में उन्हें राजा मुरारी के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। सरैया दुर्गा स्थान से पान कराकर राजा सुरेंद्र नारायण सिंह ने निष्ठापूर्वक मां दुर्गा की स्थापना की। तबसे लेकर आज तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जा रही है। मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना प्रत्येक वर्ष राज परिवार की ओर से ही की जाती है। दशमी को यात्रा के दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। यहां रावण बध के बदले महिषासुर बध की परंपरा है।
चौथम राज परिवार के युवराज शंभू ने बताया कि, खगड़िया के प्रसिद्ध कलाकार शंकर पंडित के नेतृत्व में महिषासुर का पुतला बनाया जा रहा है। लागत खर्च एक लाख है। 60 फीट ऊंची महिषासुर का पुतला बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बीते दो वर्षों से कोरोना के कारण महिषासुर बध का कार्यक्रम नहीं हो सका था। इस बार महिषासुर का बध दशमी के दिन किया जाएगा। पंडित अशोक झा ने बताया कि, चौथम के दुर्गा मां की महिमा अपरंपार है। यहां वैदिक व तांत्रिक दोनों विधि से मां की पूजा-अर्चना होती है। मां सभी की मनोकामना पूरी करती है।
यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में दुर्गा पूजा की तैयारी दो माह पूर्व से ही शुरू कर दी जाती है। बिहार के अलावा अन्य राज्यों से लोग यहां आते हैं। दुर्गा पूजा के समय रिश्तेदार भी आकर यहां मेला का आनंद लेते हैं।
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