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    नीलकंठ कोठी घाट काली मंदिर : जहां पूरी होती मन की मुरादें

    By Edited By: Updated: Thu, 27 Oct 2011 10:55 PM (IST)

    भागलपुर, जागरण प्रतिनिधि : बरारी स्थित डेढ़ सौ से अधिक साल पुरानी नीलकंठ कोठी घाट काली मंदिर में गुरुवार को श्रद्धालु भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा था। कहा जाता है कि काली महारानी के इस प्राचीन मंदिर में भक्तों के मन की मुरादें पूरी होती हैं। यहां दूर-दूर से श्रद्धालुओं का जत्था दर्शन के लिए आता है। उनके मन की सच्ची भक्ति और काली महारानी मंदिर से जुड़ी किवदंती उन्हें हर साल खींच लाती है। गंगा नदी से बिल्कुल सटे इस मंदिर परिसर में बनाए जाने वाले अखाड़े में दूर-दराज के पहलवान कुश्ती के जरिए ताकत का प्रदर्शन करते हैं। जीतने वालों को श्रद्धालुओं की ओर से ही ईनाम भी दिया जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि समाजवाद का इससे बड़ा नमूना और कहां मिलेगा कि जाति, धर्म और मजहब से ऊपर उठ कर लोग मंदिर परिसर में अपनी उपस्थिति न सिर्फ दर्ज कराते हैं बल्कि सहयोग भी किया करते हैं। प्राचीन काल से पहलवानी अखाड़े के दौरान सूअर और भैंस की भी लड़ाई कराई जाती थी। बाद में सूअर और भैंसे की लड़ाई तो बंद हो गई लेकिन पहलवानों की कुश्ती अभी तक चली आ रही है। मंदिर परिसर में व्यवस्था संभालने वाले राजकिशोर सिंह, भोजू यादव, मनोज हरि, राकेश कुमार, बंटी कुमार, दीपक कुमार, दिनेश दास, मुन्ना यादव, नरेश सिंह, किशोरी मंडल का प्रयास है कि अखाड़े की पुरानी प्रसिद्धि हर हाल में बरकरार रहे। इसके लिए कार्यकर्ता जतन भी कर रहे हैं। स्थानीय शिक्षक राजेन्द्र यादव कहते हैं कि पुरानी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए समाज के सभी लोगों को आगे आना होगा। पुराने रीति-रिवाज से नई पीढ़ी के बच्चे अगर अवगत नहीं हुए तो समाज का क्या होगा। बच्चे तो मंदिरों में जाने के बजाय क्लबों में जाने लगेंगे। इसलिए सनातन संस्कृति की रक्षा में अपनी पुरातन संस्कृति के प्रति लोगों को सजग होना होगा। भोजू यादव के मुताबिक माता काली महारानी मंदिर में अपनी सेवा देने के लिए समाज के युवक हमेशा तैयार रहते हैं। अपने कामों से फुर्सत निकाल कर भी लोग अपनी सेवा दे रहे हैं। गंगा स्नान करने पहुंचने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद माता के मंदिर में पुष्प और जल चढ़ाना नहीं भूलते।

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