एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति
एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति! अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा क
एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति! अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा। मैं पूरे शहर को पीट चुका हूं आगे भी पीटता रहूंगा। बड़े साहब के दफ्तर में भी उनकी मौजूदगी में सब को पीट दिया। पथार-पथार के पीटा। इतना पीटा कि नेता टाइप के लोग भी बिलबिलाने लगे हैं। पहले भी लोकतंत्र के बड़े मंदिर में सवाल उठा था अब फिर उठाने की धमकी दे रहे हैं। पर इससे क्या होगा! मेरा न पहले कुछ बिगड़ा था न अब बिगड़ेगा। क्योंकि एको अहं द्वितीयो नास्ति..!
अपने शहर के सिंघम मेला-महोत्सव के मंच से ज्ञान पिला रहे थे। वे जो कह रहे थे सच ही था। नागरिक भी समझ रहा है- न भूतो, न भविष्यति! सिंघम जारी थे- शुरू में अवैध लोगों को पीटता था तो आप खुश थे और आज कि लगता है चोट आपको ही लगी है! मुझमें इगो नहीं, पर लोगों को पीटने में मुझे मजा आता है। लोकतंत्र अपनी जगह.. मैं फिर से पीटूंगा।
इस 'पीटूंगा' शब्द पर इतना जोर था कि नागरिक हड़बड़ा गया। आंखें खुल गई। मंच गायब.. सिंघम भी गायब। खुद को बिस्तर पर पाया। समझ में आया कि सपने में यह भाषण चल रहा था। ध्यान आया कि भाषण से कुछ क्षण पहले नागरिक ने इसी मुद्दे को लेकर सिंघम का इंटरव्यू भी लिया था। फिर मन सवाल उठा कि अचानक से महोत्सव का मंच सपने में क्यों आया। ध्यान आया कि सिंघम को मंच पर एतिहासिक व्याख्यान देना था। मैडम का प्रोगाम था..। इसमें खलल पड़ी तो खीझ में पीटापट खेलने लगे।
खैर जो हो, अब सपने में हुए इंटरव्यू के कुछ अंश पेश हैं-
नागरिक (ठेठ देहाती अंदाज में)- इ ठंडी में पीटापट करना अच्छी बात है का। जरा सोचिए भी कि पछुआ में केतना दरद हो होगा जिसको लाठी पड़ी। वो बूढ़ी.. गरीब सब..! ऐसे पीट-पीटवा दिए कि सब्भे उग्र विचार वाले घातक किस्म के लोग थे क्या!
सिंघम- अरे आपको भी जानकारी मिल गई। यह उग्र विचारघारा वाले घातक किस्म के लोगों का अटैक ही था। बड़े साहब निशाने पर थे। बड़का साहेब के यहां मीटिंग में भी यह बात उठी थी।
नागरिक- अगर वे उग्र विचारधारा वाले घातक लोग थे तो चार दिन पहले से अनशन की इजाजत कैसे दी गई थी।
सिंघम- नहीं-नहीं अनशनकारियों की आड़ में उग्र विचारधारा वाले लोगों ने अटैक करा दिया था। यह तो हम थे कि समय से चुलबुल पांडेय सब को लेकर आ गए तो संभल गया नहीं तो..!
नागरिक- पर जितनी देर में आपसब मौके पर पहुंचे उतने देर में घातक किस्म के लोग होते तो कुछ भी कर गए होते!
सिंघम- आप लोग भी बाल का खाल निकालने लगते हैं न। प्रशासन की ओर से सरकार को जबाब दिया जाएगा। बस इतना कहेंगे कि कुछ नेता टाइप के लोग राशन-किरासन कार्ड आदि बनाने के नाम पर महिलाओं को बहला-फुसलाकर ले आए थे।
नागरिक- यह तो और भी बड़ा सवाल है? आखिर जरूरतमंदों को प्रशासन ने आजतक वृद्धा पेंशन, राशन कार्ड, लालकार्ड आदि क्यों दिया जो नेताओं को बहलाने-फुसलाने का अवसर मिलता है। क्यों नहीं भूमिहीनों को जमीन उपलब्ध करा दिया जो अनशन की नौबत आई?
सिंघम- जो लोग पिटे हैं वे कुछ बोल नहीं रहे और आपसब हैं कि..! अरे वे सब रोज पिटते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। नेता लोग नेतागिरी करते रहते हैं। आपलोग तिल का ताड़ क्यों बना रहे हैं?
नागरिक- लोगों को लठिया देना तो आपके स्वभाव में है। पिछले दिनों बच्चे के स्कूल में महिला से भिड़ गए तो अगले दिन स्कूल आने वाले सभी अभिभावकों को डिस्टर्ब करा दिया। आपको कोई बीमारी है या पावर का नशा है! ऐसे तो आपका कैरियर दागदार हो जाएगा।
सिंघम- कोई फर्क नहीं पड़ता है मेरे रिश्तेदार सरकार में है।
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