ग्रहों के अधिपति हैं भगवान भास्कर
भागलपुर। समस्त सृष्टि को प्रकाशित करने वाले भगवान भास्कर को सनातन धर्म में भगवान एवं देवता की संज्ञा
भागलपुर। समस्त सृष्टि को प्रकाशित करने वाले भगवान भास्कर को सनातन धर्म में भगवान एवं देवता की संज्ञा दी गई है। सूर्यदेव में भगवान विष्णु की वेदत्रयी वैष्णवी शक्तिया सन्निहित होकर सूर्य देव को प्रत्यक्ष रूप से ब्रह्मड में सर्वशक्तिमान बना दिया है। भगवान सूर्यदेव की शक्ति व क्षमता प्रत्यक्ष रूप से सर्व विदित है। समस्त सृष्टि के पालनकर्ता भी वही हैं। उनकी कृपा के बिना पेड़-पौधे एवं जीव-जंतुओं का अस्तित्व ही संभव नहीं है।
ज्योतिषशात्र में भी सूर्य को ग्रहों का अधिपति माना गया है। सभी ग्रह सूर्य की ही परिक्रमा करते हैं। सूर्य दिव्य शक्ति, आत्मबल, आत्मज्ञान, विजय, यश-प्रतिष्ठा, नेत्र, मस्तिष्क, हृदय, धन-वैभव, पुरुषार्थ, सफलता, पिता के सुख एवं आरोग्य का कारक ग्रह हैं। अत: सूर्य की अनुकूलता से जातक को सभी क्षेत्र में मनचाहे फल की प्राप्ति संभव है। शास्त्रीय मत है कि-आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने-दिने। जन्मान्तर सहस्त्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते। अत: सूर्य उपासना के क्रम में नित्य प्रात: यथासंभव सूर्य दर्शन, सूर्य नमस्कार व अर्घ्यदान करना चाहिए।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को होती है पूजा
प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्यदेव की तिथि है। सूर्यदेव की विशेष पूजा के क्रम में कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत-पूजन व अस्ताचलगामी सूर्य तथा सप्तमी तिथि को उदीयमान सूर्यदेव को विधिवत अर्घ्यदान किया जाता है। इस पावन पर्व को सूर्यषष्ठी व्रत या छठ व्रत कहते हैं। आस्था-विश्वास व पवित्रता का पर्व छठ चार दिनों का है। प्रथम दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, खरना के उपरात व्रत रखते हुए तीसरे दिन सायं काल में अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य तथा पुन: अगले दिन सूर्योदय काल में दूसरा अर्घ्यदान किया जाता है।
द्रौपदी व पांडवों ने भी की थी सूर्यदेव की विशेष पूजा :
सूर्य देव की आराधना प्राचीन काल से ही होती आ रही है जिसका वर्णन पुराणों में भी है। द्रौपदी व पाडवों ने भी कष्ट निवारणार्थ भगवान सूर्य की विशेष आराधना की थी जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। छठ व्रत के दौरान नदी या सरोवर में कमर तक जल में खड़े होकर ताम्रपात्र से सूर्य देव को अर्घ्यदान करना चाहिए। अर्घ्यदान में जल, गाय का दूध, लाल चंदन, रोली, अक्षत, लाल या पीला पुष्प व गुड़, फल, ईख, सभी ऋतु फल, कन्द-मूल व विशेष प्रकार के पकवान का उपयोग किया जाता है।
अर्घ्यदान का मंत्र :
एहि सूर्य सहस्त्रशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मा देव गृहाणार्घ्य दिवाकर। शुद्धता व श्रद्धापूर्वक पूजन से सूर्य देव प्रसन्न होकर व्रती को मनोवाछित फल प्रदान करते हैं।
विशेष योग संयोग :
अर्घ्यदान का दिन रविवार सूर्यदेव का दिन है। नक्षत्र उत्तराषाढ़ है, जिसके स्वामी सूर्य ही हैं। साथ ही सप्तमी तिथि भी सूर्यदेव की अपनी तिथि है। प्रथम व द्वितीय दोनों ही अर्घ्यदान के समय सवार्थसिद्धि योग विद्यमान रहेगा। इस प्रकार उत्तम योग संयोग युक्त यह छठ विशेष फलदायी है।
खरना आज :
पंचाग के अनुसार 5 नवंबर शनिवार को खरना अर्थात संध्या में खीर भोजन, रविवार 6 नवंबर को सायंकालीन प्रथम अर्घ्य, दूसरे दिन 7 नवंबर सोमवार को अरुणोदय काल में दूसरा अर्घ्यदान करना शास्त्र सम्मत रहेगा।
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